विपक्षी एका का भविष्य: विपक्षी एकता को बल देने के इरादे से दिल्ली पहुंची ममता, समय बताएगा कितना होंगी सफल

ममता बनर्जी की मानें तो बंगाल में चुनाव बाद कोई राजनीतिक हिंसा नहीं हुई और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट फर्जी है। ममता चाहे जो दावा करें वह बंगाल को जिस तरह संचालित कर रही हैं उससे यह नहीं लगता कि वह राष्ट्रीय राजनीति को कोई सही दिशा दे सकेंगी।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 27 Jul 2021 12:16 AM (IST) Updated:Tue, 27 Jul 2021 12:16 AM (IST)
विपक्षी एका का भविष्य: विपक्षी एकता को बल देने के इरादे से दिल्ली पहुंची ममता, समय बताएगा कितना होंगी सफल
क्या जो काम कांग्रेस नहीं कर सकी, उसे तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी कर सकेंगी?

विपक्षी एकता को बल देने के इरादे से दिल्ली आ रहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने इस उद्देश्य में कितना सफल होंगी, यह समय ही बताएगा, लेकिन उन्हें जिस तरह विपक्षी दलों को गोलबंद करने वाली संभावित नेता के तौर पर देखा जा रहा है, वह कांग्रेस की दयनीय दशा को बयान करने के लिए पर्याप्त है। राष्ट्रीय दल होने के नाते विपक्षी एका का जो काम कांग्रेस को करना चाहिए, वह यदि किसी क्षेत्रीय दल को करना पड़ रहा है तो इससे कांग्रेसी नेतृत्व की कमजोरी का ही पता चलता है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस या तो विपक्षी दलों को एकजुट करने में अपना हित नहीं देख रही है या फिर उसमें यह काम करने की साम‌र्थ्य ही नहीं रह गई है। जो भी हो, यह किसी से छिपा नहीं कि उसकी राजनीतिक हैसियत एक क्षेत्रीय दल जैसी होती जा रही है। बड़े राज्यों में उसका वजूद केवल पंजाब और राजस्थान तक ही सीमित है। वह अपने गढ़ों में या तो सिमटती जा रही है या फिर उसकी राजनीतिक जमीन पर क्षेत्रीय दल काबिज होते जा रहे हैं। ऐसा हो रहा है तो उसकी अपनी राजनीतिक अदूरदर्शिता के कारण। वह न तो वास्तविक मुद्दों को उभार पा रही है और न ही ऐसे किसी विमर्श का निर्माण कर पा रही है, जिससे विपक्षी दल उसके नेतृत्व में एकजुट हो सकें और जनता का ध्यान उसकी ओर आकर्षित हो सके। 

क्या जो काम कांग्रेस नहीं कर सकी, उसे तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी कर सकेंगी? इस सवाल का जवाब बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि वह राष्ट्रीय दृष्टिकोण का परिचय दे पाती हैं या नहीं? क्षेत्रीय दलों के नेताओं के साथ यह एक बुनियादी समस्या है कि वे अपने राज्य के आगे और कुछ देख ही नहीं पाते। राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर भी उनका रवैया संकीर्णता से भरा और कई बार तो राष्ट्रहित की अनदेखी करने वाला होता है। इससे भी बड़ी समस्या है उनकी समाजवादी सोच। उन्हें लगता है कि सब कुछ सरकार को करना चाहिए। इस मामले में ममता बनर्जी भी अपवाद नहीं। यह विडंबना ही है कि वह राष्ट्रीय नेता तो बनना चाहती हैं, लेकिन बंगाल में अपने राजनीतिक विरोधियों को खत्म करने का इरादा रखती हैं-ठीक वैसे ही जैसे एक समय वाम दल करना चाहते थे। ममता बनर्जी की मानें तो बंगाल में चुनाव बाद कहीं कोई राजनीतिक हिंसा नहीं हुई और इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट फर्जी है। ममता चाहे जो दावा करें, वह बंगाल को जिस तरह संचालित कर रही हैं, उससे यह नहीं लगता कि वह राष्ट्रीय राजनीति को कोई सही दिशा दे सकेंगी।

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