अमेरिका की मनमानी से मित्र देश मुश्किल में, अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ने लगे कच्चे तेल के दाम

अमेरिका को यह इजाजत कैसे दी जा सकती है कि वह ईरान को दंडित करने के फेर में विश्व अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाने का काम करे?

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 24 Apr 2019 05:31 AM (IST) Updated:Wed, 24 Apr 2019 05:31 AM (IST)
अमेरिका की मनमानी से मित्र देश मुश्किल में, अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ने लगे कच्चे तेल के दाम
अमेरिका की मनमानी से मित्र देश मुश्किल में, अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ने लगे कच्चे तेल के दाम

अमेरिका ने भारत समेत कई अन्य देशों को ईरान से तेल खरीदने के लिए जो रियायत दी थी उसे खत्म करने का फैसला करके अपनी मनमानी का ही परिचय दिया है। इस पर हैरत नहीं कि अमेरिकी की ओर से इस रियायत को खत्म करने की घोषणा होते ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के मूल्य बढ़ने शुरू हो गए। यदि कच्चे तेल के दाम बढ़ने का सिलसिला कायम रहा हो तो देश में पेट्रोलियम पदार्थ महंगे हो सकते हैैं। कहना कठिन है कि ऐसी नौबत आएगी या नहीं, लेकिन यह अजीब है कि कांग्रेस ने आनन-फानन इस नतीजे पर पहुंचना जरूरी समझा कि 23 मई की शाम यानी चुनाव परिणाम आते ही पेट्रोल-डीजल की कीमतें पांच से दस रुपये तक बढ़ाने की तैयारी कर ली गई है।

पता नहीं कांग्रेस ने यह निष्कर्ष कैसे निकाल लिया? जो भी हो, अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम एक सीमा से अधिक बढ़ते हैैं तो उसका बोझ आम जनता पर भी आएगा, लेकिन आखिर इसका क्या मतलब कि चुनावी लाभ के लिए जनता के समक्ष एक डरावनी तस्वीर पेश की जाए? सवाल यह भी है कि क्या अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम स्थिर रखना मोदी सरकार की जिम्मेदारी है? क्या मनमोहन सरकार के समय भारत की सहमति से ही कच्चे तेल के दाम घटते-बढ़ते थे? नाजुक अंतरराष्ट्रीय मसलों पर वैसी सस्ती राजनीति करने का कोई मतलब नहीं जैसी कांग्रेस करती दिख रही है। बेहतर होता कि कांग्रेस के नेता केवल यहीं तक सीमित रहते कि भारत को अमेरिकी फैसले के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।

फिलहाल यह कहना कठिन है कि ईरान से तेल खरीदने पर अमेरिकी रोक के क्या परिणाम सामने आते हैैं, लेकिन इतना तो है ही कि इससे भारत को कुछ न कुछ परेशानी उठानी पड़ सकती है। हालांकि पेट्रोलियम मंत्री का कहना है कि भारत अन्य स्रोतों से अपनी जरूरत का तेल हासिल करने में समर्थ रहेगा, लेकिन अगर अमेरिकी प्रतिबंध के चलते भारत को महंगा तेल खरीदना पड़ता है तो इससे देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है। ऐसा ही असर उन अन्य देशों की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है जो ईरान से तेल खरीद रहे थे।

बेहतर हो कि ये सभी देश जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों के साथ मिलकर अमेरिकी मनमानी का मुखर होकर विरोध करें। आखिर अमेरिका को यह इजाजत कैसे दी जा सकती है कि वह ईरान को दंडित करने के फेर में विश्व अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाने का काम करे? यह सही है कि ईरान विश्व शांति के अनुरूप कदम नहीं उठा रहा है, लेकिन आखिर इसकी क्या गारंटी उसके तेल निर्यात पर रोक लगाने से वह सही रास्ते पर आ जाएगा? अगर ऐसी कोई रोक लगानी ही है तो फिर वह विश्व समुदाय यानी संयुक्त राष्ट्र की ओर से लगाई जानी चाहिए और साथ ही यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि इससे विश्व अर्थव्यवस्था के समक्ष अनावश्यक संकट न पैदा हो। ऐसा लगता है कि अमेरिका यह समझने को तैयार नहीं कि वह पश्चिम एशिया में नए सिरे से अस्थिरता को बढ़ावा देने के साथ अपने मित्र देशों को मुश्किल में डाल रहा है।

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