देश की राजधानी में चोरी-छिपे चल रही फैक्ट्री में लगी भयानक आग ने ली 40 से अधिक जिंदगियां

सुनियोजित विकास विरोधी राजनीति के कारण अवैध बसाहट और व्यावसायिक ठिकानों का बेतरतीब जाल फैलता जा रहा है। यही जाल हादसों को जन्म देता है। y

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 09 Dec 2019 12:29 AM (IST) Updated:Mon, 09 Dec 2019 12:29 AM (IST)
देश की राजधानी में चोरी-छिपे चल रही फैक्ट्री में लगी भयानक आग ने ली 40 से अधिक जिंदगियां
देश की राजधानी में चोरी-छिपे चल रही फैक्ट्री में लगी भयानक आग ने ली 40 से अधिक जिंदगियां

दिल्ली में अवैध रूप से चल रहे एक कारखाने में लगी आग से 40 से अधिक लोगों की मौत वास्तव में नियम-कानूनों की घोर अनदेखी का नतीजा है। इस अवैध कारखाने में आग भले ही शार्ट सर्किट से लगी हो, लेकिन वहां हुई मौतों का जिम्मेदार दिल्ली का प्रशासन भी है। देश की राजधानी में भी अवैध रूप से कारखाने चलना कुशासन की पराकाष्ठा ही है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि कारखाने के मालिक को गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी तो उनकी भी होनी चाहिए जिन पर यह देखने की जिम्मेदारी है कि कोई फैक्ट्री नियम-कानूनों का उल्लंघन करके न चले।

यह अभागी फैक्ट्री केवल चोरी-छिपे ही नहीं चलाई जा रही थी, बल्कि वहां सुरक्षा के न्यूनतम उपाय भी नहीं थे और वह भी तब जब वहां ज्वलनशील उत्पाद निर्मित किए जा रहे थे। वास्तव में इसी कारण इतने अधिक लोग मारे गए। इन मौतों पर अफसोस जताते हुए मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने की घोषणा करना एक तरह से कर्तव्य की इतिश्री करना ही है। इस तरह से कर्तव्य की इतिश्री अर्थात जिम्मेदारी के निर्वहन का दिखावा इसके पहले भी न जाने कितनी बार किया जा चुका है। चंद महीने पहले करोलबाग इलाके में एक होटल में आग लगने से एक दर्जन से अधिक लोग मारे गए थे। उसके पहले बवाना इलाके में एक फैक्ट्री में करीब 20 लोगों की आग में जलने से मौत हो गई थी। अब एक और फैक्ट्री में आग लगने से हुई व्यापक जनहानि यही बता रही है कि पिछली घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया गया।

हाल के वर्षों में दिल्ली में नियम-कानूनों को धता बताने अथवा सुरक्षा उपायों की अनदेखी के कारण आग लगने की इतनी अधिक घटनाएं घट चुकी हैं कि ऐसा लगता है कि राजधानी के हालात अभी भी वैसे ही हैं जैसे तब थे जब उपहार सिनेमाघर में लगी आग ने दर्जनों लोगों की जिंदगी लील ली थी। जब नियमों के अनुपालन के मामले में देश की राजधानी का इतना बुरा हाल है तब इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है कि दूरदराज के इलाकों में कैसी दयनीय दशा होगी। इस दयनीय दशा के प्रमाण आए दिन मिलते भी रहते हैं। ऐसे प्रमाण भ्रष्ट नौकरशाही और साथ ही वोट बैंक की राजनीति की देन हैं।

सुनियोजित विकास विरोधी इसी गंदी राजनीति के कारण अवैध बसाहट और व्यावसायिक ठिकानों का बेतरतीब जाल सारे देश में फैलता जा रहा है। यही जाल तरह-तरह के हादसों को जन्म देता है। ये हादसे केवल लोगों की जान ही नहीं लेते, बल्कि देश की बदनामी भी करते हैं। विडंबना यह कि इसके बावजूद हम विकसित देश बनने का दम भरते हैं।

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