लोगों की जान के लिए गंभीर खतरा बनी किसानों की पराली जलाने की जिद

जिद में आकर पराली जलाई जा रही है। हैरानी नहीं कि पंजाब और हरियाणा में यह जिद कृषि कानून विरोधी आंदोलन की उपज हो। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कुछ किसान संगठन पराली न जलाने के एवज में भारी-भरकम धनराशि की मांग कर रहे हैं।

By TilakrajEdited By: Publish:Mon, 08 Nov 2021 09:39 AM (IST) Updated:Mon, 08 Nov 2021 09:39 AM (IST)
लोगों की जान के लिए गंभीर खतरा बनी किसानों की पराली जलाने की जिद
नि:संदेह राज्य सरकारों को पराली प्रबंधन के और अधिक उपाय करने ही होंगे

एक ऐसे समय जब उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में प्रदूषण की समस्या गंभीर रूप लेती जा रही है, तब यह देखना-जानना दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद है कि पंजाब, हरियाणा समेत अन्य राज्यों में भी पराली यानी फसलों के अवशेष जलाने का सिलसिला तेज हो रहा है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला यह काम तब हो रहा है जब राज्य सरकारों के साथ-साथ किसान भी इससे अच्छी तरह परिचित हैं कि पराली का धुआं वायुमंडल को विषाक्त बनाने का काम करता है। खेतों में पराली जलाए जाने का बेरोकटोक सिलसिला यह बताने के लिए पर्याप्त है कि जहां राज्य सरकारें अपनी जिम्मेदारी समझने से जानबूझकर इन्कार कर रही हैं, वहीं किसान भी यह समझने को तैयार नहीं कि पराली जलाकर वे कितना खराब काम कर रहे हैं।

अब तो ऐसा लगता है कि इसी जिद में आकर पराली जलाई जा रही है। हैरानी नहीं कि पंजाब और हरियाणा में यह जिद कृषि कानून विरोधी आंदोलन की उपज हो। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कुछ किसान संगठन पराली न जलाने के एवज में भारी-भरकम धनराशि की मांग कर रहे हैं। जो कृत्य कानूनन अपराध है और जिससे लोगों की सेहत के लिए गंभीर खतरा पहुंच रहा है उसे न करने के बदले मनमाने पैसे की मांग करना एक तरह की ब्लैकमेलिंग ही है।

नि:संदेह राज्य सरकारों को पराली प्रबंधन के और अधिक उपाय करने ही होंगे, लेकिन इन उपायों को सफलता तभी मिलेगी जब किसान शासन-प्रशासन के साथ सहयोग करने के लिए तैयार होंगे। अभी तो ऐसा लगता है कि वे असहयोग वाला रवैया ही अपनाए हुए हैं। वे अपनी मजबूरी का जिक्र करके न केवल धड़ल्ले से पराली जला रहे हैं, बल्कि संबंधित नियम-कानूनों को भी धता बता रहे हैं। क्या यह विचित्र नहीं कि दिवाली पर पटाखे बेचने-खरीदने वालों के खिलाफ तो कार्रवाई की गई, लेकिन पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ कहीं कोई ठोस कार्रवाई होती नहीं दिख रही है-वह भी तब जब पराली का धुआं पर्यावरण पर कहीं अधिक घातक असर डाल रहा है।

समझना कठिन है कि पंजाब और हरियाणा के साथ देश के कुछ अन्य हिस्सों में पराली जलाए जाने का जो सिलसिला कायम हुआ है वह कब थमेगा, लेकिन यदि खेतों में फसलों के अवशेष को जलाए जाने से रोका नहीं गया तो पर्यावरण को और अधिक गंभीर क्षति पहुंचने वाली है। चिंता की बात यह है कि पिछले कुछ समय से देश के उन हिस्सों में भी पराली जलने लगी है, जहां पहले ऐसा नहीं होता था। यही कारण है कि इस बार बिहार सरकार को ऐसे उपाय करने पड़ रहे हैं कि जिससे पराली को जलाने से रोका जा सके। उचित यह होगा कि पराली जलने से रोकने के उपायों को ठोस रूप देने के लिए केंद्र सरकार भी सक्रिय हो।

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