बेलगाम बर्बरता: किसान नेता लखबीर सिंह की बर्बर हत्या करनेवालों से पल्ला झाड़कर बच नहीं पाएंगे

यदि किसान नेता यह समझ रहे हैं कि वे लखबीर सिंह की बर्बर हत्या करने वालों से पल्ला झाड़कर बच जाएंगे तो ऐसा नहीं होने वाला। वे अपने धरनास्थलों पर बैठे लोगों के कृत्य की नैतिक जिम्मेदारी लेने से बच नहीं सकते।

By TilakrajEdited By: Publish:Mon, 18 Oct 2021 10:29 AM (IST) Updated:Mon, 18 Oct 2021 10:29 AM (IST)
बेलगाम बर्बरता: किसान नेता लखबीर सिंह की बर्बर हत्या करनेवालों से पल्ला झाड़कर बच नहीं पाएंगे
लखबीर सिंह के साथ जो हैवानियत हुई उसकी केवल निंदा-भर्त्सना ही पर्याप्त नहीं

दिल्ली-हरियाणा सीमा पर धार्मिक ग्रंथ का निरादर करने के अपुष्ट-अस्वाभाविक आरोप में दलित युवक लखबीर सिंह को तालिबानी तरीके से मारने वालों ने भरी अदालत में जिस तरह यह धमकी दी कि यदि ऐसा होगा, तो हम फिर यही करेंगे, वह बर्बरता को जायज ठहराने की बेहद खतरनाक कोशिश है। यह खुली धमकी यही बताती है कि कानून हाथ में लेकर मनमानी करने वाले किस तरह बेलगाम होते जा रहे हैं। इसके अलावा यह भी पता चल रहा है कि कृषि कानून विरोधी आंदोलन में किस प्रकार ऐसे तत्व शामिल हो चुके हैं जिन्हें न्याय, कानून, संविधान और देश की सहिष्णु धार्मिक परंपराओं की कहीं कोई परवाह नहीं। वास्तव में इस आंदोलन में पहले दिन से ही ऐसे तत्व शामिल हो गए थे, लेकिन किसान नेताओं ने या तो उनका बचाव किया या फिर उनसे पल्ला झाड़कर अपने कर्तव्य की इतिश्री की।

क्या किसी से छिपा है कि दिल्ली में 26 जनवरी को लाल किले की हिंसा में वैसे भी लोग शामिल थे जैसे लोगों ने लखबीर सिंह को तड़पा-तड़पा कर मारा? जैसा कुछ दिल्ली-हरियाणा सीमा पर हुआ वैसा तो पाकिस्तान में होता है। वहां किसी को भी ईशनिंदा के आरोप में मारा जा सकता है। भारत ऐसे तौर-तरीकों के लिए नहीं जाना जाता। यदि धार्मिक ग्रंथों और प्रतीकों के निरादर का आरोप लगाकर लोगों के खिलाफ खुली हिंसा की जाएगी, तो न केवल कानून एवं संविधान की धच्जियां उड़ेंगी, बल्कि शांति व्यवस्था एवं सद्भाव के लिए भी गंभीर खतरे पैदा हो जाएंगे।

लखबीर सिंह के साथ जो हैवानियत हुई उसकी केवल निंदा-भर्त्सना ही पर्याप्त नहीं है। इस सबके साथ लखबीर को मारने और उसकी निर्मम हत्या को खुले-छिपे स्वरों में जायज ठहराने वालों के विरोध में खुलकर खड़ा होना होगा और उन्हें हरसंभव तरीके से हतोत्साहित करना होगा। यह जिम्मेदारी सबकी है-वह चाहे जिस दल या विचारधारा का हो। यह ठीक नहीं कि कृषि कानून विरोधी आंदोलन को बढ़ावा देने वाले राजनीतिक दल ऐसा करने से बचते हुए दिख रहे हैं। वे इस पर भी कुछ कहने से कतरा रहे हैं कि लखबीर सिंह का सही तरीके से अंतिम संस्कार नहीं होने दिया गया।

दुर्भाग्य से इस आंदोलन के समर्थक बुद्धिजीवी भी मौन धारण किए हुए हैं। यदि किसान नेता यह समझ रहे हैं कि वे लखबीर सिंह की बर्बर हत्या करने वालों से पल्ला झाड़कर बच जाएंगे तो ऐसा नहीं होने वाला। वे अपने धरनास्थलों पर बैठे लोगों के कृत्य की नैतिक जिम्मेदारी लेने से बच नहीं सकते। लखबीर सिंह की नृशंस हत्या के बाद कानून एवं व्यवस्था के साथ शांति एवं सद्भाव को बरकरार रखने की जो चुनौती खड़ी हो गई है, उसका सामना दृढ़ता से करना होगा और इसमें सभी को सहयोग देना होगा।

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