बेनकाब बंगाल सरकार: कलकत्ता हाई कोर्ट ने चुनाव बाद हिंसा की सभी शिकायतों की एफआईआर दर्ज करने का दिया आदेश

संदेह है कि उच्च न्यायालय के आदेश के बाद बंगाल पुलिस अपने दायित्वों को लेकर सजग होगी। जिस पुलिस ने अपने सामने हो रही हिंसा से मुंह मोड़ा हो उससे उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वह उच्च न्यायालय के आदेश पर अपना कर्तव्य पालन सही तरह करेगी।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Fri, 02 Jul 2021 10:06 PM (IST) Updated:Sat, 03 Jul 2021 12:14 AM (IST)
बेनकाब बंगाल सरकार: कलकत्ता हाई कोर्ट ने चुनाव बाद हिंसा की सभी शिकायतों की एफआईआर दर्ज करने का दिया आदेश
उच्च न्यायालय के आदेश के बाद बंगाल पुलिस अपने दायित्वों को लेकर सजग होगी।

कलकत्ता उच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार को चुनाव बाद हिंसा की सभी शिकायतों को प्राथमिकी के रूप में दर्ज करने का आदेश देकर ममता सरकार के इस झूठ की पोल खोल दी कि उनके राज्य में कहीं कोई हिंसा नहीं हुई। कलकत्ता उच्च न्यायालय का फैसला यह भी बताता है कि बंगाल पुलिस ने पीड़ितों की शिकायतों को सुनने से इन्कार किया। देश के राजनीतिक इतिहास में यह शायद पहली बार है जब किसी राज्य सरकार ने अपने ही लोगों के दमन, उत्पीड़न और पलायन का संज्ञान लेने से इन्कार करने के साथ यह झूठ भी फैलाया हो कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। यह अच्छा है कि कुछ देर से सही, ममता सरकार हिंसा की इन भयानक घटनाओं पर पर्दा डालने की जो बेशर्म कोशिश कर रही थी, उसमें नाकाम भी हुई और बेनकाब भी। सबसे शर्मनाक यह रहा कि बंगाल पुलिस भी ममता सरकार के झूठ का साथ देती हुई नजर आई। बंगाल पुलिस के अधिकारियों को इससे लज्जित होना चाहिए कि उन्होंने हिंसा पीड़ित लोगों की मदद करने के बजाय उनकी उपेक्षा की। वास्तव में उन्होंने बिलकुल तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की तरह व्यवहार किया। जिस राज्य की पुलिस सत्तारूढ़ दल के दास की तरह व्यवहार करे, उससे कोई उम्मीद नहीं की जा सकती।

इसमें संदेह है कि उच्च न्यायालय के आदेश के बाद बंगाल पुलिस अपने दायित्वों को लेकर सजग होगी। आखिर जिस पुलिस ने अपने सामने हो रही हिंसा से मुंह मोड़ा हो, उससे यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वह उच्च न्यायालय के आदेश पर अपना कर्तव्य पालन सही तरह करेगी? उचित होगा कि उच्च न्यायालय चुनाव बाद हिंसा की घटनाओं की पुलिस जांच की निगरानी खुद करे। और भी उचित यह होगा कि वह इन घटनाओं की जांच के लिए किसी विशेष जांच दल का गठन करे। यदि वह यह काम नहीं करता तो फिर सर्वोच्च न्यायालय को इस दिशा में पहल करनी चाहिए, क्योंकि बंगाल में चुनाव बाद तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने अपने राजनीतिक विरोधियों के उत्पीड़न और दमन का जो घिनौना अभियान छेड़ा, वह राज्य के माथे पर कलंक से कम नहीं। इस दौरान लोगों को मौत के घाट उतारा गया और घरों-दुकानों में आगजनी के साथ दुष्कर्म भी किए गए। यदि चुनाव बाद हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों और उन्हें संरक्षण देने वालों को जवाबदेह नहीं बनाया गया तो फिर बंगाल में राजनीतिक हिंसा का दुष्चक्र थमने वाला नहीं है। इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि तृणमूल कांग्रेस ने राजनीतिक विरोधियों को डराने-धमकाने और उन्हें कुचलने के मामले में वही तौर-तरीके अपना लिए हैं, जो वाम दलों ने अपना रखे थे।

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