कोरोना पर एक-एक दिन भारी: टीकाकरण युद्धस्तर पर होना चाहिए, टीकों का उत्पादन जल्द ही बड़े पैमाने पर बढ़ाना होगा
सरकारों को न केवल यह देखना होगा कि पर्याप्त चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों की उपलब्धता कैसे बढ़े बल्कि यह भी कि छोटे-बड़े अस्पताल तेजी के साथ कैसे खुलें और उसमें निजी क्षेत्र कैसे आगे बढ़कर हाथ बंटाए? कोरोना वायरस से हाल-फिलहाल छुटकारा मिलने वाला नहीं है।
कोरोना मरीजों के उपचार में उपयोगी मानी जाने वाली 2डीजी नामक दवा का उपलब्ध होना उम्मीद की एक किरण तो है, लेकिन बात तब बनेगी जब इसका जल्द से जल्द बड़े पैमाने पर उत्पादन हो और वह सर्व सुलभ हो। एक अनुमान के अनुसार इस दवा का समुचित उत्पादन जून के पहले हफ्ते में हो सकेगा। जब एक-एक दिन भारी पड़ रहे हैं, तब आवश्यकता के अनुरूप इस दवा का उत्पादन और पहले शुरू करने की हरसंभव कोशिश होनी चाहिए। इसके लिए नए तौर-तरीके अपनाने की संभावनाएं टटोली जाएं, क्योंकि कोरोना का कहर अभी जारी है। भले ही प्रतिदिन कोरोना से संक्रमित होने वालों की संख्या तीन लाख से कम हो गई हो, लेकिन अभी इस पर संतोष नहीं किया जा सकता। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि संक्रमण की तीसरी लहर आने की आशंका है। इसे देखते हुए कम समय में ज्यादा लोगों के टीकाकरण की भी कोशिश होनी चाहिए। यह कोशिश युद्धस्तर पर हो। यह ठीक नहीं है कि जब प्रतिदिन कम से कम 50 लाख लोगों को टीके लगाए जाने चाहिए, तब उसके आधे भी नहीं लग पा रहे हैं। इसका एक कारण टीकों की कमी है तो दूसरा, टीका लगवाने को लेकर हिचकिचाहट। इन दोनों ही समस्याओं का समाधान प्राथमिकता के आधार पर करना होगा।
यह सही है कि केंद्र सरकार राज्यों को टीके उपलब्ध करा रही है, लेकिन उनकी संख्या पर्याप्त नहीं। इसके चलते कहीं-कहीं टीकाकरण केंद्र बंद करने की नौबत आ रही है। ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। इस स्थिति से तभी बचा जा सकता है, जब टीकों का उत्पादन बढ़ाने के लिए लीक से हटकर कुछ उपाय किए जाएंगे। इन उपायों पर ध्यान देने के साथ ही यह भी देखा जाना चाहिए कि क्या आनन-फानन टीकों का आयात संभव है? जो एक और काम युद्धस्तर पर करने की जरूरत है, वह है स्वास्थ्य ढांचे को सुधारने का। यह खेद की बात है कि एक साल का समय मिलने के बाद भी सरकारें स्वास्थ्य ढांचे को ऐसा नहीं बना सकीं कि कोरोना से लड़ने में मदद मिलती। कम से कम अब तो देर नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि ऐसा लगता नहीं कि कोरोना वायरस से हाल-फिलहाल छुटकारा मिलने वाला है। यह अपने रूप बदल-बदलकर लंबे समय तक देश-दुनिया को त्रस्त किए रह सकता है। जब यह स्पष्ट है कि कोरोना से लड़ाई लंबी खिंच सकती है, तब फिर उसका सामना करने के लिए हर मोर्चे को मजबूत करना होगा। सरकारों को न केवल यह देखना होगा कि पर्याप्त चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों की उपलब्धता कैसे बढ़े, बल्कि यह भी कि छोटे-बड़े अस्पताल तेजी के साथ कैसे खुलें और उसमें निजी क्षेत्र कैसे आगे बढ़कर हाथ बंटाए?