अराजकता को प्रोत्साहन: किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली में देश को शर्मसार करने वाली हिंसा को अंजाम देने वालों के प्रति पंजाब सरकार मेहरबान

पंजाब में विधानसभा चुनाव निकट हैं और राज्य सरकार किसानों को रिझाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह लोकलाज छोड़कर अराजकता के आरोपितों के साथ खड़ी नजर आए। ऐसा करना एक बेहद बुरी परंपरा की नींव डालना है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sat, 31 Jul 2021 03:23 AM (IST) Updated:Sat, 31 Jul 2021 03:23 AM (IST)
अराजकता को प्रोत्साहन: किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली में देश को शर्मसार करने वाली हिंसा को अंजाम देने वालों के प्रति पंजाब सरकार मेहरबान
पंजाब में विधानसभा चुनाव निकट हैं और राज्य सरकार किसानों को रिझाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती

कृषि कानून विरोधी आंदोलन के दौरान गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में देश को शर्मसार करने वाली हिंसा को अंजाम देने वालों के प्रति पंजाब सरकार की मेहरबानी हैरान करने वाली भी है और परेशान करने वाली भी। पंजाब सरकार इस हिंसा में शामिल तत्वों को न केवल कानूनी सहायता देने की तैयारी में है, बल्कि उन्हें आर्थिक सहायता देने का भी मन बना रही है। यह और कुछ नहीं अराजकता को प्रोत्साहन देने वाला काम है। इससे खराब बात और कोई नहीं कि अराजक तत्वों को कोई राज्य सरकार इस तरह पुरस्कृत करे। 26 जनवरी को कृषि कानूनों के विरोध के नाम पर दिल्ली में तथाकथित किसानों ने ट्रैक्टर रैली के नाम पर जैसी भद्दी हरकत की थी, उसे देश भूल नहीं सकता। इस पावन दिन दिल्ली में जो कुछ हुआ था, उसे हिंसा के नंगे नाच के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। इस घटना ने यही बताया था कि ट्रैक्टर रैली निकालने वालों के मन में न तो गणतंत्र दिवस के प्रति कोई मान-सम्मान था और न ही संविधान के प्रति। यह घटना इसीलिए हुई थी, क्योंकि किसान नेता अपनी जिद पर उतर आए थे। यह मानने के भी अच्छे-भले कारण हैं कि देश को नीचा दिखाने वाली यह घटना किसान नेताओं के उकसावे पर ही हुई थी।

माना कि पंजाब में विधानसभा चुनाव निकट हैं और राज्य सरकार किसानों को रिझाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह लोकलाज छोड़कर अराजकता के आरोपितों के साथ खड़ी नजर आए। ऐसा करना एक बेहद बुरी परंपरा की नींव डालना है। पंजाब सरकार को कानून के शासन और संवैधानिक मर्यादा की तनिक भी परवाह है तो उसे इस मामले में आगे बढ़ने से बाज आना चाहिए। उसे जितनी जल्दी यह आभास हो जाए तो अच्छा कि इसके नतीजे खुद उसके लिए अच्छे नहीं होंगे। इससे वैसे तत्वों को बल मिलेगा, जो जोर-जबरदस्ती और हिंसा के जरिये अपनी मांगें मनवाने की कोशिश में रहते हैं। यह पहली बार नहीं जब पंजाब सरकार संकीर्ण राजनीतिक कारणों से अराजकता में लिप्त तत्वों का तुष्टीकरण करने की कोशिश करती दिख रही हो। यह जगजाहिर है कि उसने ऐसा ही रवैया तब अपनाया था, जब पंजाब के किसान रेल पटरियों पर बैठे थे या फिर जब मोबाइल टावर नष्ट किए जा रहे थे। दुर्भाग्य से इस मामले में दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार भी पीछे नहीं। यह किसी से छिपा नहीं कि वह किसान आंदोलन से जुड़े मामलों की सुनवाई में किस तरह अपने खास वकील नियुक्त करना चाहती है। इसका मकसद अराजकता के आरोपितों की सहानुभूति हासिल करना और खुद को उनका हितैषी साबित करना ही है।

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