कोरोना संक्रमण में आई गिरावट के चलते आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए दिल्ली समेत कई राज्यों ने दी लाॅकडाउन में छूट

कोरोना से डरने की नहीं बल्कि उससे सावधान रहने की जरूरत है। प्रशासन को लाॅकडाउन में ढील देते समय देखना होगा कि लोग संक्रमण से बचे रहने के लिए जरूरी उपायों पर अमल करें। वास्तव में इसकी जितनी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन पर है उससे कहीं ज्यादा आम लोगों पर है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 30 May 2021 02:44 AM (IST) Updated:Sun, 30 May 2021 02:44 AM (IST)
कोरोना संक्रमण में आई गिरावट के चलते आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए दिल्ली समेत कई राज्यों ने दी लाॅकडाउन में छूट
कोरोना से डरने की नहीं, बल्कि उससे सावधान रहने की जरूरत है।

यह राहत की बात है कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर जितनी तेजी से चढ़ी, उतनी ही तेजी से उतार पर भी आती दिख रही है। स्वाभाविक रूप से इसी के साथ उन राज्यों में लाॅकडाउन में छूट देने पर विचार होने लगा है, जहां संक्रमण तेजी से कम हो रहा है। दिल्ली सरकार के साथ-साथ कुछ और राज्य सरकारों ने ऐसे संकेत दिए हैं कि वे अगले सप्ताह से लाॅकडाउन से बाहर आने का उपक्रम कर सकती हैं। कम से कम उन राज्यों को तो लाॅकडाउन से बाहर निकलने की प्रक्रिया शुरू ही करनी चाहिए, जहां संक्रमण कम होने के साथ ही नियंत्रण में भी दिख रहा है, लेकिन यह प्रक्रिया इतनी धीमी भी नहीं होनी चाहिए कि उससे आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों को कोई बल ही न मिले। लाॅकडाउन में मामूली राहत देकर लोगों को घरों में बंद रहने लायक स्थितियां बनाए रखने का कोई औचित्य नहीं। मामूली राहत से अर्थव्यवस्था को कोई लाभ नहीं मिलने वाला। आज जरूरत ऐसे उपाय करने की है, जिससे आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा मिले। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि तमाम राज्यों में लाॅकडाउन लगे हुए लगभग 40 दिन बीत चुके हैं। इसके चलते करीब-करीब सब कुछ ठप है। ऐसे में यह जरूरी है कि कुछ ऐसे कदम उठाए जाएं, जिससे अर्थव्यवस्था का पहिया घूमता हुआ दिखे।

यदि इन दिनों आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध कराने वाली कुछ दुकानें खुल सकती हैं तो फिर अगले सप्ताह से कुछ शर्तों के साथ अन्य दुकानें खोलने की इजाजत देने में क्या हर्ज है? कल-कारखानों और चुनिंदा बाजारों को खोलने के साथ पटरी दुकानदारों को भी अपनी दुकानें खोलने की अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि लाॅकडाउन से सबसे अधिक वही प्रभावित हुए हैं। इसी तरह सीमित संख्या में ही सही, सार्वजनिक परिवहन के साधनों को भी आवागमन की छूट दी जानी चाहिए। थमा हुआ चक्का ऐसे ही गतिमान होगा। नि:संदेह राज्य सरकारों और उनके प्रशासन को लाॅकडाउन में ढील देते समय यह भी देखना होगा कि लोग संक्रमण से बचे रहने के लिए जरूरी उपायों पर अमल करें। वास्तव में इसकी जितनी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन पर है, उससे कहीं ज्यादा आम लोगों पर है। उन्हेंं सार्वजनिक स्थलों पर सावधानी का परिचय इस तरह देना चाहिए कि वह औरों को भी नजर आए। उस भूल से सबक लिया जाना चाहिए, जो इस वर्ष के प्रारंभ में की गई और जिसके चलते संक्रमण की दूसरी लहर ने प्रचंड रूप धारण कर लिया। अच्छा होगा कि लोग अपने आचरण से यह सुनिश्चित करें कि कोरोना को नए सिरे से सिर नहीं उठाने देना है। यह समझा जाना चाहिए कि कोरोना से डरने की नहीं, बल्कि उससे सावधान रहने की जरूरत है।

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