सियासी लाभ लेने की सूरत में कांग्रेस ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ मोदी सरकार को घेरा

भले ही पूर्वोत्तर में नागरिकता कानून का विरोध हो रहा हो लेकिन इसका यह मतलब नहीं हो सकता कि कांग्रेस जो कह रही है वही सही है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sat, 14 Dec 2019 11:53 PM (IST) Updated:Sun, 15 Dec 2019 12:38 AM (IST)
सियासी लाभ लेने की सूरत में कांग्रेस ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ मोदी सरकार को घेरा
सियासी लाभ लेने की सूरत में कांग्रेस ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ मोदी सरकार को घेरा

दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित कांग्रेस की भारत बचाओ रैली ने यही बताया कि पार्टी एक साथ कई मसलों पर मोदी सरकार को घेरना चाह रही थी। सोनिया गांधी से लेकर प्रियंका गांधी और मनमोहन सिंह से लेकर पी चिदंबरम तक ने जिन तमाम मसलों पर अपनी चिंता जाहिर की उनमें नागरिकता कानून सर्वोपरि दिखा तो शायद इसी कारण कि उसके जरिये कुछ राजनीतिक लाभ मिलने की सूरत दिख रही है। देखना है कि ऐसा हो पाता है या नहीं, क्योंकि बहुत कुछ सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा। नि:संदेह इस पर भी निर्भर करेगा कि नागरिकता संबंधी इस संशोधित कानून को आम जनता किस रूप में ले रही है?

भले ही पूर्वोत्तर में इस कानून का विरोध हो रहा हो, लेकिन इसका यह मतलब नहीं हो सकता कि कांग्रेस जो कह रही है वही सही है। इसमें संदेह है कि मोदी सरकार नागरिकता कानून पर कांग्रेस की आपत्ति को महत्व देने वाली है, लेकिन उसे अर्थव्यवस्था की खराब हालत पर कांग्रेसी नेताओं की चिंता पर गंभीरता दिखाने के लिए तैयार रहना चाहिए। आर्थिक सुस्ती का माहौल एक सच्चाई है और उस पर विपक्ष को अपनी चिंता जताने और साथ ही सरकार को कठघरे में खड़ा करने का अधिकार है। वह अपने इस अधिकार का इस्तेमाल इसलिए भी कर रहा है, क्योंकि आर्थिक सुस्ती के बीच महंगाई भी सिर उठाती दिख रही है। यह सही है कि सरकार अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए एक के बाद एक कदम उठा रही है, लेकिन अभी हालात बदलते नहीं दिख रहे हैैं और इसी कारण विपक्ष को टीका-टिप्पणी करने का अवसर मिल रहा है।

पता नहीं कांग्रेस इसका आकलन करेगी या नहीं कि भारत बचाओ रैली कितनी असरकारी रही, लेकिन उसे और खासकर राहुल गांधी को यह समझ आए तो बेहतर कि उन्हें यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं थी कि मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं हैै। यह साफ है कि उन्होंने भाजपा पर निशाना साधने के फेर में ऐसा कहा, लेकिन निशाना उस शिवसेना पर भी लगा जिसकी सरकार को कांग्रेस समर्थन दे रही है। राहुल गांधी ने भले ही सावरकर का उल्लेख यह जताने के लिए किया हो कि वह अपने किसी बयान के लिए माफी नहीं मांगने वाले, लेकिन सबको पता है कि राफेल मामले में वह सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लिखित तौर पर माफी मांग चुके हैैं। आखिर वह अपनी इस लिखित माफी को इतनी जल्दी कैसे भूल सकते हैैं? उन्हें इसका भी आभास होना चाहिए कि अगर आए दिन उनके बयान चर्चा में आ जाते हैैं तो इसका यह अर्थ नहीं कि वह अपनी बातों से लोगों को आश्वस्त करने में सफल हो जाते हैैं।

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