मनमानी पर लगाम लगे: सूचना-संवाद एवं अभिव्यक्ति के डिजिटल प्लेटफॉर्म चलाने वाली कंपनियां भारत में मनमानी करने पर आमादा

क्या ट्विटर एक डिजिटल प्लेटफॉर्म के साथ पुलिस और न्यायाधीश भी है? यदि नहीं तो उसने कैसे जान लिया कि उक्त ट्वीट में तथ्यों की अनदेखी हुई है? सवाल यह भी है कि क्या वह सभी ट्वीट के तथ्य जांचता है?

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 26 May 2021 01:54 AM (IST) Updated:Wed, 26 May 2021 01:54 AM (IST)
मनमानी पर लगाम लगे: सूचना-संवाद एवं अभिव्यक्ति के डिजिटल प्लेटफॉर्म चलाने वाली कंपनियां भारत में मनमानी करने पर आमादा
डिजिटल प्लेटफॉर्म चलाने वाली कंपनियां टकराव के मूड में हैं।

फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर सरीखे सूचना-संवाद एवं अभिव्यक्ति के डिजिटल प्लेटफॉर्म चलाने वाली कंपनियां भारत में किस तरह मनमानी करने पर आमादा हैं, इसका उदाहरण है उनकी ओर से सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करने से इन्कार करना। इन दिशानिर्देशों के तहत इन कंपनियों को आपत्तिजनक सामग्री हटाने, शिकायत निवारण की व्यवस्था बनाने और सक्षम अधिकारियों के नाम-पते देने को कहा गया था। स्थिति यह है कि किसी भी कंपनी ने किसी निर्देश का पालन करने की जरूरत नहीं समझी। यह देश के शासन और उसके नियम-कानूनों की खुली अनदेखी का प्रमाण ही है कि ये कंपनियां शिकायतों के निपटारे के लिए अधिकारियों की नियुक्ति करने तक को तैयार नहीं। कायदे से मंगलवार तक सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इसका मतलब है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म चलाने वाली कंपनियां टकराव के मूड में हैं। इसका संकेत इससे मिलता है कि उन्होंने यह बताने की भी जहमत नहीं उठाई कि वे ऐसा क्यों नहीं कर रही हैं? उनके पास ले-देकर यही बहाना है कि वे अमेरिका स्थित अपने मुख्यालयों के निर्देश की प्रतीक्षा कर रही हैं। यह भारत सरकार की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं, क्योंकि ये कंपनियां यूरोपीय देशों के समक्ष न केवल नतमस्तक हो जाती हैं, बल्कि उनके कानूनों के हिसाब से संचालित भी होती हैं।

इसका कोई औचित्य नहीं कि कोई विदेशी कंपनी भारत में काम करे, लेकिन भारतीय कानूनों का पालन करने से साफ इन्कार करे। यह एक किस्म की दादागीरी है और इसका सख्त जवाब दिया जाना चाहिए- इसलिए और भी, क्योंकि इंटरनेट मीडिया कंपनियों की मनमानी बढ़ती जा रही है। बतौर उदाहरण फेसबुक, वाट्सएप के लिए भारत में निजता संबंधी उस नीति पर अमल नहीं करना चाहता, जिसे वह यूरोपीय देशों में इस्तेमाल कर रहा है। इसी तरह ट्विटर बेशर्मी के साथ दोहरे मानदंडों पर चल रहा है। इसका ताजा उदाहरण टूलकिट विवाद में भाजपा नेता संबित पात्रा के एक ट्वीट को इस रूप में चिन्हित करना है कि उसमें तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। इस मामले की जांच पुलिस कर रही है और अभी यह साफ नहीं कि उक्त टूलकिट किसकी शरारत है, लेकिन ट्विटर पता नहीं कैसे फौरन इस नतीजे पर पहुंच गया कि संबित पात्रा की ओर से किए गए ट्वीट में तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा गया है। क्या ट्विटर एक डिजिटल प्लेटफॉर्म के साथ पुलिस और न्यायाधीश भी है? यदि नहीं तो उसने कैसे जान लिया कि उक्त ट्वीट में तथ्यों की अनदेखी हुई है? सवाल यह भी है कि क्या वह सभी ट्वीट के तथ्य जांचता है?

chat bot
आपका साथी