विपक्षी दलों के गठबंधन का एजेंडा मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए ही बना है

मोदी सरकार सभी मोर्चे पर देश की अपेक्षाओं के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सकी है और वह अपने उन तमाम आश्वासनों के संदर्भ में जवाबदेह भी है जो उसने सत्ता में आने के समय दिए थे।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 20 Jan 2019 08:45 PM (IST) Updated:Mon, 21 Jan 2019 05:00 AM (IST)
विपक्षी दलों के गठबंधन का एजेंडा मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए ही बना है
विपक्षी दलों के गठबंधन का एजेंडा मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए ही बना है

यह अच्छा है कि विपक्षी दलों ने अंतत: महसूस किया कि मोदी सरकार हटाने का नारा देने के साथ ही देश के लिए कोई एजेंडा पेश करना भी आवश्यक है। यह ठीक नहीं कि अभी तक उनकी ओर से केवल यही सुनने को मिला है कि मोदी सरकार को हटाना है। इसी आधार पर वे अपनी एकजुटता को मजबूती देने में लगे हुए हैं। बीते दिनों कोलकाता में ऐसा ही किया गया। ममता बनर्जी की पहल पर विपक्ष के तमाम नेता जब कोलकाता में उपस्थित हुए तो इस दौरान उनका सारा जोर यह प्रचारित करने में रहा कि मोदी सरकार के कारण देश गढ्डे में जा रहा है। यह साबित करने की कोशिश में कई नेताओं की ओर से उल्टे-सीधे बयान भी दिए गए।

किसी को लोकतंत्र और संविधान से खिलवाड़ होता दिखा तो किसी को संविधान और चुनाव प्रक्रिया ही खत्म होती नजर आई। ऐसी बातें करके तालियां तो बटोरी जा सकती हैं, लेकिन देश की जनता को भरोसे में नहीं लिया जा सकता। आम जनता यह जानना चाहेगी कि आखिर विपक्षी दलों का गठबंधन मोदी सरकार को हटाकर करेगा क्या? इतना ही नहीं, जनता यह भी जानना-समझना चाहेगी कि विपक्षी दलों का गठबंधन किस रूप में आकार लेगा और इसमें कांग्रेस की भूमिका क्या होगी? विपक्षी दलों के मन में कुछ भी हो, जनता यह विस्मृत नहीं कर सकती कि कांग्रेस के बाहरी समर्थन से देवेगौड़ा और गुजराल ने किस तरह की सरकारों का संचालन किया था और उसके कैसे दुष्परिणाम सामने आए थे? आज बिना कांग्रेस और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता की कल्पना कोई बेहतर उम्मीद नहीं जगाती।

यदि कांग्रेस सचमुच विपक्षी एकता का हिस्सा है तो क्या कारण है कि उत्तर प्रदेश में वह सपा और बसपा के मेल-मिलाप में हिस्सेदार नहीं बन सकी? क्या कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कोलकाता इसलिए नहीं गए, क्योंकि खुद उनकी रैली में ममता बनर्जी भी दिल्ली नहीं आई थीं? इसी तरह क्या मायावती इसलिए कोलकाता नहीं गईं, क्योंकि वह भी प्रधानमंत्री पद की वैसे ही दावेदार हैं जैसे कि ममता बनर्जी हैं? इन सारे सवालों के जवाब में केवल यह कहते रहने से बात बनने वाली नहीं है कि प्रधानमंत्री पद के दावेदार का फैसला चुनाव बाद होगा। यह और कुछ नहीं, राजनीतिक सौदेबाजी का मंच और माहौल तैयार करना है।

विपक्षी दल यह भी याद रखें तो बेहतर है कि राजनीतिक दलों से इतर देश का भी अपना एक एजेंडा होता है और उसे हर-हाल में आगे बढ़ाया जाना आवश्यक होता है। यदि नोटबंदी के फैसले को अलग रख दें तो मोदी सरकार ने करीब-करीब उसी एजेंडे को आगे बढ़ाया है जो मनमोहन सरकार लेकर चल रही थी। सच्चाई यह भी है कि मनमोहन सरकार ने भी वाजपेयी सरकार के एजेंडे को ही आगे बढ़ाने की कोशिश की। यह सही है कि मोदी सरकार सभी मोर्चे पर देश की अपेक्षाओं के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सकी है और वह अपने उन तमाम आश्वासनों के संदर्भ में जवाबदेह भी है जो उसने सत्ता में आने के समय दिए थे, लेकिन यह भी नहीं कहा जा सकता कि जनवरी 2019 में देश वहीं खड़ा है जहां मई 2014 में था।

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