चीन बातचीत से सीमा विवाद सुलझाने का इच्छुक नहीं, भारत को उसी की भाषा में देना होगा जवाब

भारत इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकता कि चीन एक अर्से से सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य ढांचा मजबूत करने के साथ अपने बुनियादी ढांचे को भी विस्तार दे रहा है। वह इन क्षेत्रों में सड़क रेल और हवाई नेटवर्क बढ़ाने के साथ लोगों को भी बसा रहा है।

By TilakrajEdited By: Publish:Fri, 19 Nov 2021 12:41 PM (IST) Updated:Fri, 19 Nov 2021 12:41 PM (IST)
चीन बातचीत से सीमा विवाद सुलझाने का इच्छुक नहीं, भारत को उसी की भाषा में देना होगा जवाब
इस समय चीन बेलगाम है और विश्व समुदाय उसका मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं दिखता

सीमा विवाद हल करने के लिए भारत और चीन के बीच अगले दौर की बातचीत के ठीक पहले ऐसी खबरें आना शुभ संकेत नहीं कि चीन ने डोकलाम के निकट भूटान की सीमा पर चार गांव बसा लिए हैं। वस्तुस्थिति क्या है, यह शीघ्र सामने आना चाहिए- न केवल भूटान सरकार की ओर से, बल्कि भारत सरकार की ओर से भी। इसी के साथ उस दावे की भी पड़ताल होनी चाहिए, जिसके तहत यह कहा जा रहा है कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश सीमा पर भी एक गलियारा विकसित कर लिया है। कहीं यह गलियारा भी उसी तरह भारत से छीनी गई जमीन पर तो नहीं, जैसे वह गांव है, जिसका जिक्र अभी हाल में अमेरिकी रक्षा विभाग की एक रिपोर्ट में किया गया?

सच जो भी हो, भारत को इस नतीजे पर पहुंचने में और देर नहीं करनी चाहिए कि चीन बातचीत से सीमा विवाद को सुलझाने का इच्छुक नहीं और वह इंच दर इंच भारतीय सीमा की ओर बढ़ने के साथ विवादित क्षेत्रों में निर्माण कार्य करने में लगा हुआ है। उसके इस खतरनाक इरादों की भनक उसकी ओर से बनाए गए भूमि सीमा कानून से मिलती है। भले ही इस कानून का उद्देश्य सीमांत क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास करना बताया जा रहा हो, लेकिन उसका असल मकसद अपने कब्जे वाले इलाकों में अपना दखल बढ़ाना है। इस कानून का असर भारत-चीन सीमा विवाद पर भी पड़ सकता है।

भारत इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकता कि चीन एक अर्से से सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य ढांचा मजबूत करने के साथ अपने बुनियादी ढांचे को भी विस्तार दे रहा है। वह इन क्षेत्रों में सड़क, रेल और हवाई नेटवर्क बढ़ाने के साथ लोगों को भी बसा रहा है। नि:संदेह भारत भी चीन से लगती सीमा पर अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के साथ अपनी सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ कर रहा है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना शेष है। यह शेष काम तेजी से करने में जरूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय दिए जाने के बाद भी संसाधनों की कमी आड़े आ रही है।

स्पष्ट है कि चीन इसका ही लाभ उठा रहा है। यदि उसे उसी की भाषा में जवाब नहीं दिया गया तो फिर उसका दुस्साहस और अधिक बढ़ना तय है। वैसे भी इस समय वह बेलगाम है और विश्व समुदाय उसका मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं दिखता। इसी कारण वह एक ओर जहां तिब्बत में अपना दखल बढ़ा रहा है, वहीं दूसरी ओर ताइवान पर भी कब्जा करने के मूड में है। चीन जैसी शरारत पर आमादा है और जिस तरह शत्रु राष्ट्र जैसा व्यवहार कर रहा है, उसे देखते हुए यह साफ है कि रक्षात्मक रवैये के सहारे उससे नहीं निपटा जा सकता।

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