CBI Raids: जिन पर भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी है, वही भ्रष्ट आचरण करने में लगे हुए हैं

उन क्षेत्रों में निजी कंपनियों की भागीदारी क्यों नहीं हो सकती जहां सरकार का सक्रिय रहना आवश्यक नहीं है? हमारे नीति-नियंताओं को इससे अनभिज्ञ नहीं होना चाहिए कि सरकारों की ओर से होटल और उद्योग चलाने के नतीजे अच्छे नहीं हुए।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 17 Jan 2021 11:19 PM (IST) Updated:Mon, 18 Jan 2021 12:23 AM (IST)
CBI Raids: जिन पर भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी है, वही भ्रष्ट आचरण करने में लगे हुए हैं
भ्रष्टाचार में लिप्त अफसरों के खिलाफ सीबीआइ की छापेमारी।

भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो की छापेमारी बड़ी खबर भले ही बनती हो, लेकिन यह कहना कठिन है कि इस तरह की कार्रवाई से भ्रष्ट तत्वों पर लगाम लगती है। गत दिवस सीबीआइ ने रेलवे के एक अफसर को एक करोड़ रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया। सीबीआइ ने इसी सिलसिले में जिस तरह देश के 20 अलग-अलग ठिकानों पर छापेमारी की, उससे यही पता चलता है कि एक अकेले अफसर का भ्रष्टाचार कितना व्यापक रूप लिए हुए था? भ्रष्टाचार में लिप्त अफसरों के खिलाफ सीबीआइ की छापेमारी कोई नई-अनोखी बात नहीं। चंद दिनों पहले सीबीआइ को अपने ही कुछ अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी थी। इसका मतलब है कि जिन पर भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी है, वही भ्रष्ट आचरण करने में लगे हुए हैं। यह गंभीर स्थिति है, लेकिन इसका निवारण मौजूदा तौर-तरीकों से नहीं हो सकता। यदि नौकरशाही के काम करने के तौर-तरीकों में कोई बुनियादी परिवर्तन नहीं लाया जाता तो इसमें संदेह है कि सीबीआइ की छापेमारी से उसके भ्रष्टाचार को नियंत्रित किया जा सकता है। भ्रष्ट अफसरों के यहां छापेमारी और उनकी गिरफ्तारी जैसे कदम इसलिए प्रभावी नहीं साबित हो रहे हैं, क्योंकि एक तो ऐसे तत्वों को मुश्किल से ही कोई सजा मिलती है और दूसरे, सजा मिलने में इतनी देर हो जाती है कि उसकी कोई अहमियत नहीं रह जाती।

यह सही है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद शासन के उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार एक हद तक काबू में आया है, लेकिन अन्य स्तरों पर उसमें कमी आती नहीं दिखती। यही स्थिति राज्यों में भी है। यदि सरकार नौकरशाही के भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगाना चाहती है तो एक तो उसे पारदर्शिता एवं जवाबदेही के दायरे को बढ़ाना होगा और दूसरे सेवा क्षेत्र में सरकारी तंत्र की भूमिका को कम करना होगा। समय आ गया है कि सरकार जो तमाम काम कर रही है, उन्हेंं निजी क्षेत्रों को सौंपे और सक्षम नियामक तंत्र स्थापित कर यह सुनिश्चित करे कि वे अपना काम सही तरह करें। दुनिया के अनेक देशों ने इसी तरह न केवल भ्रष्टाचार पर नियंत्रण पाया है, बल्कि सेवाओं की गुणवत्ता को बेहतर करने में सफलता भी हासिल की है। इसी रास्ते पर भारत को चलना होगा। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि संचार और उड्डयन क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी से हालात बदले हैं। आखिर उन क्षेत्रों में निजी कंपनियों की भागीदारी क्यों नहीं हो सकती, जहां सरकार का सक्रिय रहना आवश्यक नहीं है? हमारे नीति-नियंताओं को इससे अनभिज्ञ नहीं होना चाहिए कि सरकारों की ओर से होटल और उद्योग चलाने के नतीजे अच्छे नहीं हुए।

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