सीबीआइ की समस्या, केंद्र सरकार करे विसंगति को दूर

विभिन्न मामलों की जांच में सीबीआइ का रिकार्ड भी कोई बहुत अच्छा नहीं है और शायद इसी कारण पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह उसके कामकाज की समीक्षा करेगा। पता नहीं ऐसा कब होगा और उससे हालात सुधरेंगे या नहीं।

By TilakrajEdited By: Publish:Mon, 20 Sep 2021 10:05 AM (IST) Updated:Mon, 20 Sep 2021 10:05 AM (IST)
सीबीआइ की समस्या, केंद्र सरकार करे विसंगति को दूर
सीबीआइ का गठन दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत एक प्रशासनिक आदेश से किया गया था

केंद्रीय जांच ब्यूरो को लेकर राज्यों और खासकर गैर भाजपा शासित राज्यों के रवैये पर केंद्र सरकार का असहाय महसूस करना स्वाभाविक है, लेकिन उसकी ओर से अपनी विवशता प्रकट करना समस्या का हल नहीं है। केंद्र सरकार को उन कारणों पर गौर करना होगा, जिनके चलते एक के बाद एक राज्य सरकारें सीबीआइ को अपने यहां के मामलों की जांच करने से रोक रही हैं। यह ठीक नहीं कि ऐसे राज्यों की संख्या बढ़ती जा रही है जो सीबीआइ को अपने यहां प्रवेश करने और किसी मामले की जांच करने की अनुमति नहीं दे रहे हैं। ज्यादातर राज्य सरकारें यह कहकर सीबीआइ को बिना अनुमति अपने यहां प्रवेश पर पाबंदी लगा रही हैं कि उसका दुरुपयोग भी होता है और राजनीतिक इस्तेमाल भी।

आम तौर पर ऐसे आरोपों पर केंद्र सरकार का यह तर्क होता है कि सीबीआइ एक स्वायत्त जांच एजेंसी है और उसके काम में उसका कोई राजनीतिक दखल नहीं होता, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इस जांच एजेंसी को सुप्रीम कोर्ट ने पिंजरे में बंद तोता करार दिया था। इसके अलावा यह भी एक तथ्य है कि अतीत मे इस एजेंसी के कामकाज में राजनीतिक दखल होता रहा है। कई बार तो यह दखल नजर भी आया है। इसके चलते सीबीआइ की प्रतिष्ठा पर आंच आई है और उसकी वैसी विश्वसनीयता नहीं कायम हो सकी जैसी होनी चाहिए।

विभिन्न मामलों की जांच में सीबीआइ का रिकार्ड भी कोई बहुत अच्छा नहीं है और शायद इसी कारण पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह उसके कामकाज की समीक्षा करेगा। पता नहीं ऐसा कब होगा और उससे हालात सुधरेंगे या नहीं। उचित यह होगा कि केंद्र सरकार यह महसूस करे कि एक बड़ी खामी सीबीआइ के गठन के तरीके में है। इस एजेंसी का गठन दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत एक प्रशासनिक आदेश से किया गया था। इस विसंगति को दूर किया जाना चाहिए।

आखिर जब इस एजेंसी को वांछित संवैधानिक दर्जा ही हासिल नहीं है तो फिर उसे वास्तविक स्वायत्तता कैसे मिल सकती है। यह भी समझने की जरूरत है कि जिस प्रशासनिक आदेश के तहत सीबीआइ का गठन किया गया उसके प्रविधान ही राज्यों की सहमति को अनिवार्य बनाते हैं। राज्य अपने इस अधिकार का भी मनमाना इस्तेमाल कर रहे हैं। किसी मामले में तो वे खुद ही सीबीआइ जांच की मांग करते हैं और किसी मामले में ऐसी मांग को ठुकराते हुए इस जांच एजेंसी को राजनीतिक हथियार बता देते हैं। एक ऐसे समय जब सीबीआइ की जांच का दायरा बढ़ता जा रहा है और देश में भ्रष्टाचार एवं गंभीर मामलों की छानबीन के लिए किसी सक्षम केंद्रीय एजेंसी का होना आवश्यक है तब फिर उन कारणों का निवारण किया जाना चाहिए जिनके चलते राज्य सरकारें सीबीआइ जांच में अड़ंगा लगाने में सक्षम हैं।

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