किसानों का आधारहीन विरोध: नए कृषि कानूनों के खिलाफ उठाए गए मुद्दे निराधार और तथ्यों के विपरीत हैं

किसान नए कृषि कानूनों के प्रावधानों को सही तरह समझें और किसी के बहकावे में आने से बचें। दिल्ली आ धमके किसान अपने पक्ष में चाहे जो दावे करें सच्चाई यह है कि वे आढ़तियों रूपी कॉरपोरेट जगत के हाथों का खिलौना बने हुए हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 30 Nov 2020 11:09 PM (IST) Updated:Tue, 01 Dec 2020 12:40 AM (IST)
किसानों का आधारहीन विरोध: नए कृषि कानूनों के खिलाफ उठाए गए मुद्दे निराधार और तथ्यों के विपरीत हैं
नए कृषि कानूनों के विरोध में सड़कों पर उतरे किसान सरकार की बातों को सुनने के लिए तैयार नहीं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में एक समारोह को संबोधित करते हुए एक बार फिर नए कृषि कानूनों को लेकर उपजीं मिथ्या धारणाओं को ध्वस्त करने का काम किया। संसद से नए कृषि कानूनों को मंजूरी मिलने के बाद से प्रधानमंत्री के साथ-साथ अन्य अनेक केंद्रीय मंत्री लगातार यह कहते चले आ रहे हैं कि नए प्रावधानों के खिलाफ जो भी मुद्दे उठाए जा रहे हैं वे निराधार और तथ्यों के विपरीत हैं। इसके बावजूद कई राजनीतिक एवं गैर-राजनीतिक संगठन किसानों कोे बरगलाने के अपने अभियान में जुटे हैं। इसी अभियान के तहत पहले पंजाब के किसानों को सड़कों और रेल पटरियों पर उतारा गया और अब उन्हें दिल्ली ले आया गया है। यदि नए कृषि कानूनों के विरोध में सड़कों पर उतरे किसान संगठन केंद्रीय मंत्रियों के साथ-साथ प्रधानमंत्री की बातों को सुनने-समझने के लिए तैयार नहीं तो इसका सीधा मतलब है कि वे वस्तुस्थिति को जानबूझकर स्वीकार नहीं करना चाहते।

यह एक तरह से खुद को गुमराह रखने की कोशिश है। यही कारण है कि एक तो केंद्र सरकार से बातचीत से इन्कार किया जा रहा है और दूसरे उसके लिए तरह-तरह की शर्तें लगाई जा रही हैं। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि जो लोग दिल्ली घेरने पर आमादा हैं या उन्हें उकसाने का काम कर रहे हैं वे एक खास विचारधारा से प्रेरित हैं और उनके लिए किसानों का हित नहीं, बल्कि केंद्र सरकार का अंध विरोध प्राथमिकता में है।

यदि किसानोें को अनाज बेचने की नई व्यवस्था स्वीकार नहीं तो वे उसे ठुकराने के लिए स्वतंत्र हैं। आखिर किसने कहा है कि नई व्यवस्था उनके लिए बाध्यकारी है? यदि उन्हें पुरानी व्यवस्था सही जान पड़ती है तो वे उसी का पालन क्यों नहीं करते? आखिर ऐसा तो है नहीं कि नई व्यवस्था यह कहती हो कि पुरानी व्यवस्था को भंग किया जा रहा है। नि:संदेह यह भी निराधार है कि मंडियों को खत्म करने की कोशिश की जा रही है। एक झूठ को सौ बार दोहराने से वह सच मेंं तब्दील नहीं हो सकता। दिल्ली आ धमके किसान अपने पक्ष में चाहे जो दावे करें, सच्चाई यह है कि वे आढ़तियों रूपी कॉरपोरेट जगत के हाथों का खिलौना बने हुए हैं।

क्या ये विचित्र नहीं कि वे एक किस्म के व्यापारियों का तो विरोध कर रहे हैं, लेकिन आढ़तियों रूपी व्यापारियों की ढाल बने हुए हैं? किसानों को यह समझने की जरूरत है कि वे जिन आढ़तियों के हाथों का खिलौना बन रहे हैं वे वास्तव में उनके समक्ष कॉरपोरेट जगत का हौवा खड़ाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। बेहतर यही है कि किसान नए कृषि कानूनों के प्रावधानों को सही तरह समझें और किसी के बहकावे में आने से बचें।

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