पटाखों पर पाबंदी: दिवाली पर पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगाकर वायु प्रदूषण की समस्या का सही समाधान नहीं

केवल दिवाली के आसपास पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगाकर वायु प्रदूषण की विकराल होती समस्या का सही समाधान नहीं किया जा सकता। यह खेद की बात है कि तमाम प्रयासों के बाद भी पराली यानी फसलों के अवशेष जलाने के सिलसिले को नहीं रोका जा सका।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 02 Nov 2020 11:13 PM (IST) Updated:Tue, 03 Nov 2020 12:38 AM (IST)
पटाखों पर पाबंदी: दिवाली पर पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगाकर वायु प्रदूषण की समस्या का सही समाधान नहीं
दिवाली के दौरान पटाखों का इस्तेमाल वायुमंडल को और जहरीला बना देता है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय समेत दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सरकारों से यह जो सवाल पूछा कि क्यों न सात से 30 नवंबर तक पटाखों के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया जाए, उस पर उन्हें सकारात्मक रुख अपनाना चाहिए। ऐसी किसी पहल को उत्सवधर्मिता को हतोत्साहित करने की कोशिश के बजाय प्रदूषण से बचने के उपाय के तौर पर देखा जाना चाहिए। यह सही है कि दिवाली पर पटाखे जलाने की परंपरा है और उनकी बिक्री पर पाबंदी से कुछ लोगों को शिकायत हो सकती है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि पटाखे प्रदूषण बढ़ाने का काम करते हैं। बीते कई वर्षों से यह देखने में आ रहा है कि दिवाली के दौरान पटाखों का इस्तेमाल वायुमंडल को और जहरीला बना देता है। आखिर जब अभी वायु प्रदूषण खतरनाक रूप ले चुका है, तब फिर इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है कि पटाखों के इस्तेमाल के बाद कैसी सूरत बनेगी?

इस बार तो पटाखों के उपयोग से इसलिए भी बचा जाना चाहिए, क्योंकि कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा अभी टला नहीं है। इससे किसी को अनजान नहीं होना चाहिए कि वायु प्रदूषण कोरोना वायरस से उपजी महामारी कोविड-19 के प्रकोप को बढ़ाने का काम कर सकता है। तथ्य यह भी है कि दिल्ली सरकार पटाखा विरोधी अभियान शुरू करने जा रही है और राजस्थान सरकार ने भी पटाखों की बिक्री पर रोक लगाने का फैसला कर लिया है। पटाखों की बिक्री पर रोक को प्रभावी रूप देने की आवश्यकता है, क्योंकि बीते वर्षों में दिल्ली-एनसीआर में पटाखों पर पाबंदी के बाद भी उनकी खरीद-बिक्री देखने को मिली। इसका एक कारण यह था कि पर्यावरण के अनुकूल माने जाने वाले ग्रीन पटाखों की उपलब्धता का अभाव रहा। यदि पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरा बनने वाले हानिकारक पटाखों को चलन से रोकना है तो ग्रीन पटाखों की उपलब्धता पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इस दौरान यह भी देखा जाना चाहिए कि ग्रीन पटाखे पर्यावरण के अनुकूल ही हों।

नि:संदेह यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि केवल दिवाली के आसपास पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगाकर वायु प्रदूषण की विकराल होती समस्या का सही समाधान नहीं किया जा सकता। यह खेद की बात है कि तमाम प्रयासों के बाद भी पराली यानी फसलों के अवशेष जलाने के सिलसिले को नहीं रोका जा सका। इसी प्रकार वायु प्रदूषण को बढ़ाने वाले अन्य कारणों, जैसे सड़कों एवं निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल और ट्रैफिक जाम के चलते वाहनों के खतरनाक उत्सर्जन को नियंत्रित करने के भी कोई प्रभावी उपाय नहीं किए जा सके हैं।

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