उत्तराखंड में एक और आपदा, हिमखंड टूटने से नदियां उफान पर, ऋषिगंगा नदी पर निर्माणाधीन प्रोजेक्ट तबाह

उत्तराखंड के चमोली जिले में हिमखंड टूटने से जो तबाही हुई उसने सात साल पहले केदारनाथ में आई उस भीषण आपदा की याद दिला दी जिसने बड़े पैमाने पर विनाश किया था। यह संतोषजनक है कि बचाव और राहत का काम युद्धस्तर पर जारी है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 07 Feb 2021 09:33 PM (IST) Updated:Mon, 08 Feb 2021 12:36 AM (IST)
उत्तराखंड में एक और आपदा, हिमखंड टूटने से नदियां उफान पर, ऋषिगंगा नदी पर निर्माणाधीन प्रोजेक्ट तबाह
उत्तराखंड के चमोली जिले में हिमखंड टूटने से तबाही।

उत्तराखंड के चमोली जिले में हिमखंड टूटने से जो तबाही हुई, उसने सात साल पहले केदारनाथ में आई उस भीषण आपदा की याद दिला दी, जिसने बड़े पैमाने पर विनाश किया था। फिलहाल यह कहना कठिन है कि हिमखंड टूटने से पहाड़ी नदियों में जो विकराल बाढ़ आई, उससे जान-माल का कहां-कितना नुकसान हुआ, लेकिन ऋषिगंगा नदी पर निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजना और तपोवन परियोजना को जिस तरह क्षति पहुंची, उससे अच्छा-खासा नुकसान होने की आशंका है। इस आशंका के बीच राहत की बात यह है कि तबाही में फंसे कई लोग बचा लिए गए और लापता लोगों की तलाश जारी है। यह दुखद है कि इस आपदा की चपेट में आए सभी लोग भाग्यशाली नहीं निकले, लेकिन यह संतोषजनक है कि बचाव और राहत का काम युद्धस्तर पर जारी है। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि इस बार राहत और बचाव का अभियान तत्काल शुरू करने में सफलता मिली। इस अभियान में विभिन्न बल जिस तरह आनन-फानन जुटे, वह उल्लेखनीय है। यह इस बात को रेखांकित करता है कि समय के साथ वह तंत्र सुगठित हुआ है, जो अचानक आई किसी आपदा के वक्त राहत-बचाव का काम करने के लिए मुस्तैद होना चाहिए। व्यापक असर वाली इस आपदा से हुई क्षति को लेकर लगाए जा रहे अनुमान के बीच यही उम्मीद की जाती है कि अधिक से अधिक लोगों को बचा लिया जाएगा।

उत्तराखंड के एक और आपदा से दो-चार होने के बाद इसकी भी उम्मीद की जाती है कि उन कारणों का गहन विश्लेषण किया जाए, जिनके चलते इस त्रासदी का सामना करना पड़ा। चूंकि इस मौसम में हिमखंड टूटने की आशंका नहीं रहती इसलिए ऐसा होने के कारणों का पता लगाना और भी आवश्यक है, ताकि भविष्य के लिए जरूरी सबक सीखे जा सकें। उत्तराखंड में विकास योजनाओं और खासकर जल विद्युत परियोजनाओं एव बांधों के निर्माण की जरूरत को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। कम से कम अब तो इन सवालों के जवाब खोजे ही जाने चाहिए। इसके साथ ही हिमखंडों के अध्ययन का काम भी प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए। इस क्रम में इस पर गौर अवश्य किया जाए कि इस हिमालयी क्षेत्र के हिमखंड कहीं जलवायु परिवर्तन का शिकार तो नहीं बन रहे हैं? ध्यान रहे कि विभिन्न अध्ययनों में इसकी आशंका जताई जा चुकी है कि जलवायु परिवर्तन का तेज चक्र हिमालय के हिमखंडों के लिए खतरा बन सकता है। वस्तुस्थिति क्या है, इसका आकलन अब अनिवार्य हो गया है। नि:संदेह इसी के साथ यह भी देखा जाना चाहिए कि पर्वतीय क्षेत्रों में विकास इस तरह से हो कि वह वहां के पारिस्थितिकी तंत्र पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न डाले।

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