कांग्रेस की एक और करारी हार के बाद खुद में व्यापक बदलाव की जरूरत

कांग्रेस को एक और करारी हार के बाद खुद में व्यापक बदलाव के लिए कमर कसनी होगी। यह बदलाव आत्ममंथन से ही संभव होगा न कि दरबारी संस्कृति का परिचय देने से।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Sat, 25 May 2019 05:05 AM (IST) Updated:Sat, 25 May 2019 05:05 AM (IST)
कांग्रेस की एक और करारी हार के बाद खुद में व्यापक बदलाव की जरूरत
कांग्रेस की एक और करारी हार के बाद खुद में व्यापक बदलाव की जरूरत

आम चुनाव के अंतिम नतीजे आने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि विपक्ष की अगुआई कर रही कांग्रेस इस बार भी लोकसभा में नेता विपक्ष का पद हासिल नहीं कर सकेगी। भले ही कांग्रेस के खाते में पिछली बार से आठ सीटें अधिक दिख रही हों, लेकिन कुल मिलाकर उसका प्रदर्शन उसकी दयनीय दशा को ही बयान कर रहा है। यदि एक क्षण के लिए केरल और तमिलनाडु में सहयोगी दलों के सहारे उसके प्रदर्शन को किनारे कर दें तो उसकी हैसियत क्षेत्रीय दल जैसी ही दिखेगी।

सबसे पुरानी और लंबे समय तक केंद्र में शासन करने वाली कांग्रेस की ऐसी दुर्दशा इसलिए ठीक नहीं, क्योंकि लोकतंत्र एक मजबूत विपक्ष की भी मांग करता है और आज के दिन कोई क्षेत्रीय दल इस मांग को पूरा करने में समर्थ नहीं। वह कर भी नहीं सकता, क्योंकि ऐसे दल राष्ट्रीय महत्व के मसलों पर संकीर्ण रवैया अपनाते हैं। इस पर हैरत नहीं कि एक और करारी हार के बाद कांग्रेस में बेचैनी दिख रही है और उसके कई नेता इस्तीफे की पेशकश करने में लगे हुए हैं। ऐसा होना स्वाभाविक है, लेकिन केवल इतने से बात नहीं बनने वाली कि हार के कारणों की समीक्षा होगी।

सबको पता है कि समीक्षा के नाम पर लीपापोती ही होती है। कांग्रेस में तो खास तौर पर घूम-फिर कर इसी नतीजे पर पहुंचा जाता है कि पार्टी को गांधी परिवार के नेतृत्व पर पूरा भरोसा है। आखिर कौन नहीं जानता कि 2014 में पराजय के कारणों की खोज के लिए गठित एंटनी समिति की रपट आज तक बाहर नहीं आ सकी? यदि इस बार भी पिछली बार जैसा होता है तो कांग्रेस का भविष्य गंभीर खतरे में होगा।

कांग्रेस को एक और करारी हार के बाद खुद में व्यापक बदलाव के लिए कमर कसनी होगी। यह बदलाव आत्ममंथन से ही संभव होगा, न कि दरबारी संस्कृति का परिचय देने से। जरूरी केवल यह नहीं कि गांधी परिवार इस संस्कृति में रचे-बसे लोगों को किनारे कर पार्टी को ईमानदारी से आत्ममंथन करने का मौका दे, बल्कि उससे जो हासिल हो उसेस्वीकार भी करे। इससे इन्कार नहीं कि गांधी परिवार के बगैर कांग्रेस का काम नहीं चल पाता, लेकिन सच यह भी तो है कि परिवार के प्रभुत्व के चलते जनाधार वाले सक्षम नेता एक दायरे से ऊपर नहीं उठ पाते। कई बार तो उन्हें जानबूझकर उठने नहीं दिया जाता। गांधी परिवार को यह भी समझना होगा कि मजबूत विपक्ष के साथ ही उसका सकारात्मक होना आवश्यक है।

बीते कुछ समय में कांग्रेस ने जैसी नकारात्मक राजनीति का परिचय दिया उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। सबसे खराब बात यह रही कि नकारात्मक राजनीति की अगुआई खुद राहुल गांधी ने की। वह केवल चौकीदार चोर का नारा ही नहीं उछालते रहे, बल्कि प्रधानमंत्री के प्रति अभद्र भाषा का भी इस्तेमाल करते रहे। कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति को देखते हुए आज की पीढ़ी के लिए इस पर यकीन करना कठिन है कि यह वही कांग्रेस है जिसके नेतृत्व में देश ने आजादी की लड़ाई लड़ी थी। बेहतर होगा कांग्रेस अपने समृद्ध अतीत का स्मरण कर जरूरी सबक सीखने में और देर न करे। 

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