कानपुर मुठभेड़ में आठ साथियों को खोने के बाद पुलिस ने जो कार्रवाई की वह नजीर नहीं नियम बननी चाहिए

कानपुर की भयावह घटना से केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं देश भर की पुलिस को जरूरी सबक सीखने में देर नहीं करनी चाहिए।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sat, 04 Jul 2020 11:10 PM (IST) Updated:Sun, 05 Jul 2020 12:33 AM (IST)
कानपुर मुठभेड़ में आठ साथियों को खोने के बाद पुलिस ने जो कार्रवाई की वह नजीर नहीं नियम बननी चाहिए
कानपुर मुठभेड़ में आठ साथियों को खोने के बाद पुलिस ने जो कार्रवाई की वह नजीर नहीं नियम बननी चाहिए

कानपुर में आतंक का पर्याय बन गए एक कुख्यात अपराधी को गिरफ्तार करने की कोशिश में अपने आठ साथियों को खोने के बाद पुलिस ने जैसी कठोर कार्रवाई शुरू की वह नजीर नहीं नियम बननी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई भी गुंडा-बदमाश उस तरह का दुस्साहस न दिखा सके जैसा विकास दुबे नाम के माफिया सरगना ने दिखाया और पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। ऐसे अपराधी समूची व्यवस्था की उपज होते हैं जिसमें शासन-प्रशासन और राजनीति के साथ समाज भी शामिल है। विकास दुबे के बारे में ऐसे तथ्य सामने आने पर हैरानी नहीं कि उसे राजनीतिक संरक्षण मिला और उसके खिलाफ कानून अपना काम सही तरह नहीं कर सका। यह कानून के शासन और समाज पर एक बड़ा सवाल है कि आखिर जो अपराधी थाने में घुसकर हत्या कर चुका हो वह चुनाव लड़ने और जीतने में समर्थ कैसे रहा? यह भी व्यवस्था की खामी का बेहद शर्मनाक प्रमाण है कि वह जेल में रहते हुए भी अपने गिरोह को चलाने और आपराधिक गतिविधियां अंजाम देने में सक्षम रहा। अपने आतंक के सहारे सक्रिय यह माफिया सरगना किस आसानी से व्यवस्था में छिद्र करने में सफल था, इसका पता इससे चलता है कि उसके लिए काम करने वालों में कई पुलिस कर्मियों के भी नाम सामने आ रहे हैं।

आखिर इससे अधिक लज्जा की बात और क्या हो सकती है कि पुलिस ही अपराधी की ड्यूटी बजाए? इस दुर्दांत अपराधी और उसे सहयोग-संरक्षण देने वालों को किसी कीमत पर बख्शा नहीं जाना चाहिए, लेकिन इसी के साथ जरूरी सबक भी सीखे जाने चाहिए। सबसे बड़ा सबक तो पुलिस को ही सीखना होगा। आखिर यह कैसे हो गया कि एक कुख्यात अपराधी के घर दबिश देने गई पुलिस ने जरूरी सावधानी का परिचय नहीं दिया? समझना कठिन है कि रात के अंधेरे में अपराधी को गिरफ्तार करने गई पुलिस टीम के पास टॉर्च तक क्यों नहीं थी? पुलिस को एक बेलगाम-बेखौफ अपराधी के घर धावा बोलने न केवल पूरी तैयारी से जाना चाहिए था, बल्कि अतिरिक्त सतर्कता भी बरतनी चाहिए थी। आखिर इस तरह की कार्रवाई के मामले में जो स्थापित मानक प्रक्रिया है उसका पालन क्यों नहीं किया गया? एक सवाल यह भी है कि वह आधुनिक हथियारों से लैस क्यों नहीं थी? पुलिस प्राथमिक सुरक्षा बल ही नहीं, देश की संपदा है। उसकी क्षति राष्ट्रीय क्षति है। कानपुर की भयावह घटना से केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश भर की पुलिस को जरूरी सबक सीखने में देर नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उस पर किसी भी तरह का हमला विधि के शासन पर चोट करने के साथ आम जनता के मनोबल पर भी विपरीत असर डालता है।

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