जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए हटने से हमने क्या खोया क्या पाया इसका अवलोकन होना चाहिए

निसंदेह कश्मीर सही रास्ते पर है लेकिन अभी उसे लंबा सफर तय करना है। कश्मीर में बचे-खुचे आतंक पर लगाम लगाने की सख्त जरूरत है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 04 Aug 2020 12:01 AM (IST) Updated:Tue, 04 Aug 2020 12:01 AM (IST)
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए हटने से हमने क्या खोया क्या पाया इसका अवलोकन होना चाहिए
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए हटने से हमने क्या खोया क्या पाया इसका अवलोकन होना चाहिए

जम्मू-कश्मीर को अन्याय और अलगाववाद के पोषक अनुच्छेद 370 के साथ ही 35-ए की जकड़न से मुक्त हुए एक वर्ष होने जा रहा है। इस अवसर पर न केवल इसका अवलोकन किया जाना चाहिए कि इस दौरान क्या कुछ हासिल किया गया, बल्कि यह भी देखा जाना चाहिए कि इस नए केंद्र शासित प्रदेश को सुव्यवस्थित करने के लिए और क्या कदम उठाए जाने की आवश्यकता है? इसका आकलन जम्मू-कश्मीर के साथ ही केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए लद्दाख के संदर्भ में भी किया जाना चाहिए। इससे इन्कार नहीं कि बीते एक साल में इन दोनों केंद्र शासित राज्यों में बहुत कुछ बदला है, लेकिन बीते तीन दशकों में वहां और खासकर कश्मीर घाटी के हालात इतने खराब हो गए थे कि उन्हेंं सुधारने में समय लगेगा।

इसका संकेत एक तो छिटपुट आतंकी हमलों से लगता है और दूसरे, कई नेताओं की नजरबंदी कायम रहने से भी। आम तौर पर ये वे नेता हैं जो परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से अलगाववाद की पैरवी करते थे और इस कुविचार को छद्म कश्मीरियत की आड़ में हवा देते थे कि कश्मीर भारत से सर्वथा अलग कोई ऐसा हिस्सा है जिसकी विशिष्ट महत्ता है। देश-दुनिया को बरगलाने के लिए कश्मीरियत के साथ ही जम्हूरियत और इंसानियत का जिक्र तो खूब किया जाता था, लेकिन इससे मुंह चुराया जाता था कि आखिर कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के लिए कोई स्थान क्यों नहीं है और वहां इस्लामिक स्टेट सरीखी जिहादी हरकतें क्यों जारी है?

जब तक कश्मीरी पंडित घाटी लौटने और वहां बिना किसी भय के रहने में समर्थ नहीं हो जाते तब तक यह कहना कठिन होगा कि कश्मीर के हालात सामान्य हो गए हैं। कश्मीर के हालात दुरुस्त करने के लिए वहां के उन वर्गों को मुख्यधारा में लाने का काम और तेज किया जाना चाहिए जो या तो उपेक्षित रहे या फिर जिनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं होती थी। ऐसा इसीलिए होता था, क्योंकि मुख्यधारा के राजनीतिक दल भी इन उपेक्षित वर्गों की अनदेखी करने के साथ ही पाकिस्तानपरस्त एवं अलगाववादी तत्वों को संतुष्ट करने के फेर में रहते थे।

इसी कारण वहां अलगाववाद ने एक धंधे का रूप ले लिया था। इस धंधे का पूरी तौर पर खात्मा करने के साथ ही कश्मीर में बचे-खुचे आतंक पर लगाम लगाने की भी सख्त जरूरत है। इस जरूरत की पूर्ति तब होगी जब आतंकवाद की खुली पैरवी कर रहे पाकिस्तान पर और दबाव बनाया जाएगा। पाकिस्तान अपनी हरकतों के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग अवश्य पड़ा है, लेकिन उसकी आतंकी गतिविधियां अभी भी जारी हैं। नि:संदेह कश्मीर सही रास्ते पर है, लेकिन अभी उसे लंबा सफर तय करना है।

chat bot
आपका साथी