World Population Day 2020: देश की बढ़ती बेलगाम आबादी के लिए बने सख्त कानून

सभी राजनीतिक दल को जाति धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में एक सख्त जनसंख्या नियंत्रण कानून को बनवाने में मदद करें।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 11 Jul 2020 09:43 AM (IST) Updated:Sat, 11 Jul 2020 09:52 AM (IST)
World Population Day 2020: देश की बढ़ती बेलगाम आबादी के लिए बने सख्त कानून
World Population Day 2020: देश की बढ़ती बेलगाम आबादी के लिए बने सख्त कानून

डॉ. कुलदीप मलिक। विश्व की आबादी आज साढ़े सात अरब को पार कर चुकी है, लेकिन 11 जुलाई 1987 को जब यह आंकड़ा पांच अरब हुआ तो लोगों के बीच जनसंख्या संबंधी मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के लिए विश्व जनसंख्या दिवस की नींव रखी गई। इसमें कोई संदेह नहीं कि आज बढ़ती जनसंख्या पूरे विश्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है, लेकिन भारत की दृष्टि से यदि इस खतरे की बात करें तो यह बहुत गंभीर एवं चिंतनीय है। इस खतरे को भांपते हुए चीन जैसे देश दशकों पहले इसका समाधान जनसंख्या नियंत्रण कानून के रूप में निकालकर लाए जो आज विश्व की दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था के रूप में हम सभी के सामने है।

वर्तमान में भारत विश्व का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला -लगभग 137 करोड- देश है। विश्व में चीन पहले स्थान पर है। आजादी के बाद 34 करोड़ से बढ़कर हम लगभग 137 करोड हो गए हैं। प्रतिवर्ष एक करोड़ साठ लाख लोग बढ़ रहे हैं और जानकार बताते हैं कि अगले कुछ वर्षों में भारत चीन को पछाड़ कर विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा और हमारी आबादी डेढ अरब को पार कर जाएगी। हमारे सभी बडे प्रदेश की जनसंख्या दुनिया के किसी ना किसी देश के बराबर है। आबादी के हिसाब से उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य है जिसकी आबादी ब्राजील के बराबर है।

दुनिया की लगभग 18 प्रतिशत जनसंख्या भारत में निवास करती है, जबकि दुनिया की केवल 2.4 फीसद जमीन, चार फी़सद पीने का पानी और 2.4 फीसद वन ही भारत में उपलब्ध हैं। इसलिए भारत में जनसंख्या-संसाधन अनुपात असंतुलित है जो एक बहुत ही चिंतनीय विषय है। यह विषय तब और गंभीर हो जाता है, जब जनसंख्या लगातार बढ़ रही हो और संसाधन लगातार कम होते जा रहे हों। बेरोजगारी से लेकर गरीबी तक, अनाज की उपलब्धता से लेकर शिक्षा तक और स्वास्थ्य सुविधाओं से लेकर यातायात व्यवस्था के भार से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों के तमाम आंकड़ों से यह आसानी से समझा जा सकता है कि आबादी की चुनौती कितनी बड़ी है। प्रकृति के सभी साधनों की एक सीमा है, परंतु भारत की जनसंख्या बढ़ने की कोई सीमा नहीं है।

पेयजल का गहराता संकट : नीति आयोग ने पानी की समस्या के संबंध में विस्तृत रिपोर्ट देकर इस समस्या की गंभीर होती परिस्थिति से देश को सावधान कर महत्वपूर्ण काम किया है। रिपोर्ट में कहा गया कि साठ करोड़ भारतवासी पीने के पानी की भयंकर समस्या से जूझ रहे हैं। दो लाख लोग प्रतिवर्ष साफ पानी की कमी के कारण मर जाते हैं। पानी की गुणवत्ता की दृष्टि से विश्व के 122 देशों में भारत बहुत नीचे 120 वें स्थान पर है। 84 फीसद ग्रामीण घरों में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। यह भी कहा गया है कि 21 प्रमुख नगरों में, जिनमें दिल्ली, मुंबई और हैदराबाद जैसे महानगर भी शामिल हैं, इनमें आगामी कुछ वर्षों बाद पानी उपलब्ध नहीं होगा। इस उच्च स्तरीय संस्था की यह रिपोर्ट भारत के भविष्य की एक डरावनी तस्वीर पेश करती है।

परिवार नियोजन पर पॉलिसी : यह हैरानी की बात है कि भारत उन देशों की सूची में शामिल है जिसने सबसे पहले बढ़ती जनसंख्या और परिवार नियोजन पर पॉलिसी बनाई, लेकिन वह बुरी तरह फेल हो गई। करीब चार दशक पहले बढ़ती जनसंख्या देश में एक मुद्दा था, लेकिन आपातकाल में जबरन नसबंदी अभियान के बाद राजनीतिक दलों एवं अन्य नीति-नियंताओं के एजेंडे से यह मामला ऐसे बाहर हुआ कि फिर इसकी सुध नहीं ली गई। क्या यह अजीब नहीं कि चार दशक पहले जब देश की आबादी महज 55 करोड़ थी, तब देश की बढ़ती जनसंख्या इस देश के राजनेताओं के लिए एक गंभीर मुद्दा था, लेकिन आज जब यह बढ़कर लगभग 137 करोड़ हो गई है तब भी कोई राजनीतिक दल इसके नियंत्रण की बात खुलकर नहीं करता। देश के प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति बढ़ती जनसंख्या पर अपनी चिंता व्यक्त तो कर चुके हैं, लेकिन इसे नियंत्रित करने के लिए कानून बनाने की बात नहीं करते। आजादी के सात दशक से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी कोई राजनीतिक दल बढ़ती जनसंख्या जैसे गंभीर मुद्दे को आज तक अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल नहीं कर सका है।

इस संदर्भ में एक शुभ संकेत यह है कि पिछले कई वर्षों से देश में अलग-अलग जगहों पर कई सारे सामाजिक संगठन अलग-अलग तरीके से बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण करने के लिए जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग कर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। इसी कड़ी में अब लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला देश का मीडिया भी इस मुद्दे पर गंभीरता दिखाता हुआ नजर आ रहा है जो आने वाले समय के लिए एक शुभ संकेत है। वर्तमान कोरोना काल में भी देश के लोगों को बढ़ती जनसंख्या और घटते संसाधन पर सोचने को मजबूर किया है।

आज के समय की सबसे बडी आवश्यकता है कि तमाम देशवासी देश की बढ़ती जनसंख्या के खिलाफ एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद करें और सभी राजनीतिक दल को जाति, धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में एक सख्त जनसंख्या नियंत्रण कानून को बनवाने में मदद करें, ताकि जनता को बेरोजगारी, स्वास्थ्य, पर्यावरण और शिक्षा समेत अन्य प्रकार की समस्याओं से छुटकारा मिल सके।

[प्रोफेसर, आइटीएस इंजीनियरिंग कॉलेज, ग्रेटर नोएडा]

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