जब बालासाहब ठाकरे ने नि:संकोच कहा था- महाराष्ट्र सरकार का ‘रिमोट कंट्रोल’ मेरे हाथ में है

Maharashtra Politics Crisis सरकार के हर छोटे-बड़े निर्णय के लिए शिवसेना के मुखिया को ‘सिल्वर ओक’ की शरण लेनी ही पड़ेगी क्योंकि रिमोट कंट्रोल अब ठाकरे परिवार के हाथ में नहीं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 20 Nov 2019 09:53 AM (IST) Updated:Wed, 20 Nov 2019 03:42 PM (IST)
जब बालासाहब ठाकरे ने नि:संकोच कहा था- महाराष्ट्र सरकार का ‘रिमोट कंट्रोल’ मेरे हाथ में है
जब बालासाहब ठाकरे ने नि:संकोच कहा था- महाराष्ट्र सरकार का ‘रिमोट कंट्रोल’ मेरे हाथ में है

मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। Maharashtra Politics Crisis: वर्ष 1995 की एक दोपहर ‘मातोश्री’ यानी शिवसेना संस्थापक बालासाहब ठाकरे के बांद्रा स्थित आवास के बाहर मजमा लगा था। शिवशाही सरकार के मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा होनेवाली थी। रेस में कई नाम शामिल थे। सबको मालूम था कि बालासाहब ठाकरे खुद यह जिम्मेदारी नहीं उठाने वाले। इसलिए मनोहर जोशी, सुधीर जोशी आदि में से किसी एक के नाम पर अटकलें लगाई जा रही थीं।

सरकार के ज्यादातर महत्वपूर्ण निर्णय ‘मातोश्री’ में होते थे

‘मातोश्री’ के अंदर घंटों चली बैठक के बाद मनोहर जोशी का नाम नए मुख्यमंत्री के रूप में सामने आया और कुछ दिन बाद उन्हें शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलवाई गई। उसके बाद से मुख्यमंत्री तो सचिवालय में बैठते थे, लेकिन सरकार के ज्यादातर महत्वपूर्ण निर्णय ‘मातोश्री’ में होते थे, और बालासाहब ठाकरे इतराते हुए निस्संकोच कहते थे कि सरकार का रिमोट कंट्रोल मेरे हाथ में है। उन दिनों कोंकण के दाभोल में लग रही एनरॉन परियोजना इसका ज्वलंत उदाहरण रही।

एनरॉन परियोजना की भारत में उदारीकरण की शुरुआत

उस समय शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे ने सत्ता में आने से पहले कई बार बयान दिया था कि यदि सरकार में आए तो एनरॉन परियोजना को अरब सागर में फेंक देंगे। एनरॉन भारत में उदारीकरण की शुरुआत के बाद यहां निवेश करने जा रही पहली बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी थी। उसे गोपीनाथ मुंडे के कोप से बचाने के लिए जब उसकी एक बड़ी अधिकारी रेबेका मार्क भारत आईं, तो वे गोपीनाथ मुंडे से मिलने के बजाय शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे से मिलने ‘मातोश्री’ पहुंचीं।

महाराष्ट्र ने रिमोट कंट्रोल से चलनेवाली राजनीति का अनुभव

बाबरी ढांचा ढहाए जाने के बाद हुए मुंबई दंगों की जांच के लिए गठित श्रीकृष्ण आयोग की रिपोर्ट को सदन में खारिज करने का मामला हो, या एक दिन अचानक मनोहर जोशी को हटाकर नारायण राणे को मुख्यमंत्री बना देना, सरकार का रिमोट कंट्रोल सदैव ठाकरे के हाथ में ही रहा, और महाराष्ट्र ने रिमोट कंट्रोल से चलनेवाली राजनीति का अनुभव बखूबी ले रखा है। अब कुछ-कुछ वैसा ही रिमोट कंट्रोल ब्रीच कैंडी के पास स्थित ‘सिल्वर ओक’ बंगले में स्थापित होता दिखाई दे रहा है। यह बंगला मराठा छत्रप शरद पवार का है, जो न सिर्फ चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, बल्कि राज्य की हर समस्या और सियासत के रेशे-रेशे से बखूबी परिचित हैं। पिछले महीने विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद जब शिवसेना ने अचानक मुख्यमंत्री पद को लेकर अपने तेवर कड़े कर लिए, तो माना जा रहा था कि शिवसेना सत्ता संतुलन की स्थिति में है, इसलिए ऐसे तेवर दिखा रही है।

कांग्रेसराकांपा विधायकों के समर्थन का इंतजार

यह भी माना जाने लगा था कि सत्ता की चाबी अब शिवसेना के हाथ में है। उसकी मर्जी के बिना अब कोई सरकार नहीं बन सकती। लेकिन यह भ्रम उस दिन दूर हो गया, जब राज्यपाल से मिली 24 घंटे की अवधि के भीतर अपना संख्या बल दिखाने राजभवन पहुंची शिवसेना के प्रतिनिधिमंडल को निर्धारित अवधि के भीतर न तो कांग्रेस का समर्थन पत्र मिला, न ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का। शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे सहित उनके साथ गए सभी नेताओं को मुंह लटकाए खाली हाथ ‘मातोश्री’ लौटना पड़ा। वह दिन है, और करीब एक सप्ताह बाद आज का दिन। शिवसेना अपने मुख्यमंत्री को शपथ दिलवाने के लिए कांग्रेसराकांपा विधायकों के समर्थन का इंतजार ही कर रही है। उद्धव ठाकरे तो इस घटना के दिन ही शरद पवार से मुंबई के एक पांच सितारा होटल में मिल चुके थे।

संभवत: उस दिन पवार ने उन्हें शाम तक समर्थन पत्र भिजवाने का आश्वासन भी दिया होगा। तभी तो उन्होंने बड़े भरोसे के साथ अपने पुत्र को राजभवन भेजा। लेकिन कांग्रेस तो छोड़िए, राकांपा का भी समर्थन पत्र 11 नवंबर की शाम साढ़े सात बजे तक राजभवन नहीं पहुंचा। बाद में तो यह चर्चा भी सामने आई कि उस दिन सोनिया गांधी तो समर्थन का पत्र भेजने वाली थीं, लेकिन शरद पवार की तरफ से ही उन्हें यह सुझाव दिया गया कि शिवसेना की सरकार बनवाने से पहले हर पहलू पर विस्तार से चर्चा हो जानी चाहिए।

निश्चित रूप से यह एक परिपक्व सियासी निर्णय था। इतना ही नहीं, जब शिवसेना के कुछ समर्थक उनसे यह आग्रह करने पहुंचे कि स्व. बालासाहब ठाकरे की सातवीं पुण्यतिथि 17 नवंबर से पहले वह शिवसेना के मुख्यमंत्री को शपथ दिलवाने की घोषणा कर दें। तब पवार ने उन्हें दोटूक उत्तर दिया कि सरकार बनाने में अभी वक्त लगेगा।

कभी बात-बात पर भाजपा के शीर्ष नेताओं को ‘मातोश्री’ पर घुटने टेकवाने वाली शिवसेना की अब शरद पवार पर निर्भरता सिर्फ सरकार बनाने तक सीमित नहीं रहनेवाली। वैसे तो कांग्रेस और राकांपा, दोनों दलों में एक बड़ा वर्ग अब भी शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने का विरोध कर रहा है। क्योंकि इसका नुकसान उन्हें महाराष्ट्र और शेष देश में साफ दिख रहा है।

लेकिन यदि महाराष्ट्र में कांग्रेस-राकांपा-शिवसेना के गठबंधन महाशिवआघाड़ी की सरकार बन भी जाय और पहले मुख्यमंत्री बनाने का मौका शिवसेना को दे दिया जाए, तो भी शिवसेना की निर्भरता शरद पवार पर कम नहीं होगी। बल्कि सरकार के हर छोटे-बड़े निर्णय के लिए शिवसेना के मुख्यमंत्री अथवा उसके मुखिया को ‘सिल्वर ओक’ की शरण लेनी ही पड़ेगी, क्योंकि रिमोट कंट्रोल अब ठाकरे परिवार के किसी सदस्य के हाथ में नहीं, बल्कि मराठा छत्रप के हाथ में होगा।

[मुंबई ब्यूरो प्रमुख]

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