West Bengal Assembly Elections 2021: भीषण दौर में बंगाल की सत्ता का संग्राम

बंगाल भाजपा के लिए अहम है। उससे कहीं अधिक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए। आठ में से चार चरण के चुनाव के बाद अब अधिसंख्य लोग चुनावी बाजी को बराबरी का मानने लगे हैं। अगले चरणों का चुनाव बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में होना है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 15 Apr 2021 09:36 AM (IST) Updated:Thu, 15 Apr 2021 09:37 AM (IST)
West Bengal Assembly Elections 2021: भीषण दौर में बंगाल की सत्ता का संग्राम
बंगाल के सिलीगुड़ी में एक जनसभा को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। फाइल

डॉ. चंदन शर्मा। नंदीग्राम में दीदी की स्कूटी ‘गिराने’ के प्रमुख मकसद से कांथी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विशाल चुनावी सभा हो चुकी थी। मोदी जा चुके थे। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, नंदीग्राम में दीदी को चुनौती दे रहे उनके पुराने सिपहसालार सुवेंदु अधिकारी समेत राष्ट्रीय स्तर के कुछ नेता आराम कर रहे थे। प्रसंग छिड़ा कि लोकसभा चुनाव के दौरान गृहमंत्री अमित शाह की सभा के लिए सामान्य चासी (किसान) सुशील दास ने अपनी जमीन देने का ‘अपराध’ किया तो उन पर करीब 42 केस हुए।

इतनी यातना सहने के बावजूद विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने नरेंद्र मोदी की सभा के लिए न केवल अपनी जमीन दी, बल्कि दो दर्जन से अधिक रैयतों की जमीन के उपयोग की अनापत्ति भी दिलाई। सुशील पर जब केस हुए थे तब सुवेंदु अधिकारी ने तृणमूल के टिकट से लोकसभा का चुनाव लड़ा था। यह सुन सुवेंदु मुस्कुरा दिए। कैलाश विजयवर्गीय के मुख से अनायास निकल पड़ा, सुशील दास जैसे लाखों लोग हैं, जिनके लिए व्यक्ति नहीं, विचारधारा महत्वपूर्ण है। विचारधारा के प्रति समर्पण का यही भाव भाजपा की राह बना रहा है।

सचमुच। नंदीग्राम से लगभग आठ सौ किमी दूर भूटान और बिहार के बीच आबाद कूचबिहार में प्रधानमंत्री गए तो हर तरफ जयश्रीराम का उद्घोष सुनाई देता रहा। सब बेखौफ। प्रधानमंत्री ने यहां स्पष्ट तौर पर दोहराया, सबका साथ सबका विकास। कूचबिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देख लोग गद्गद् होते हुए नारा लगा रहे थे- दो मई दीदी गई। बहरहाल, बंगाल में अब तक हुए चार चरणों में 135 विधानसभा सीटों पर मतदान के बाद भाजपा ने यह भाव जरूर बना दिया है कि वह शासन के लिए तैयार है। दरअसल बंगाल में नरेंद्र मोदी ही ऐसा चेहरा हैं जो भगवा आंधी को तूफान में बदलने में कामयाब रहे हैं। कवि गुरु की तरह दिखता उनका चेहरा, उनके कथन, उनकी भाव भंगिमा, उनका अंदाज, सब कुछ बंगाल के चुनावी महाभारत में भाजपा के विजय रथ को गति दे रहा है। बंगाल में पीएम की इतनी सभाएं अनायास नहीं हैं।

दीदी का एक पांव घायल जरूर है, मगर भाजपा के रणनीतिकारों को पता है कि बंगाल के गांव-गांव में दीदी के सियासी पांव अंगद की तरह गड़े हुए हैं। उन्हें हिलाना अश्वमेघ यज्ञ जीतने के बराबर है। इसलिए तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, धर्मेद्र प्रधान, मुख्तार अब्बास नकवी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे दर्जनों राष्ट्रीय चेहरे सभाएं कर रहे हैं। 

चुनावी लड़ाई इंटरनेट मीडिया पर भी हो रही है। भाजपा के आइटी सेल ने बंगाल के सुदूर गांवों तक ऐसे संदेश पहुंचा दिए हैं, जो एकबारगी सोचने को मजबूर कर दें। तृणमूल के एक प्रदेश स्तरीय नेता कहते हैं, इंटरनेट मीडिया वाकई हमें तनाव दे रहा है। लगातार ऐसे पोस्ट आ रहे हैं, जिन पर संवाद को आगे बढ़ाया जा रहा है तो धाíमक ध्रुवीकरण अनायास बढ़ रहा है। इस मसले पर पीके (प्रशांत किशोर) की टीम वाकई फेल है। भाजपा के आइटी सेल का कमाल देखिए कि उसने बंगाल में तृणमूल के प्रमुख रणनीतिकार पीके को भी बैकफुट पर धकेल दिया। अपनी विश्वसनीयता कायम रखने के लिए प्रशांत किशोर दावा कर रहे हैं कि बंगाल में भाजपा 100 सीटों का आंकड़ा पार नहीं करेगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो, प्रशांत किशोर का भी सबकुछ दांव पर है।

पांच से आठवें चरण तक उत्तर 24 परगना, दार्जिलिंग, कलिम्पोंग, जलपाईगुड़ी, नदिया, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर, मालदा, मुर्शीदाबाद, दक्षिण कोलकाता, उत्तर कोलकाता, पश्चिम बर्धमान, पूर्व बर्धमान और बीरभूम जिले की 159 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है। कुछ जिलों में तृणमूल सबल है तो कुछ इलाकों में भाजपा का दावा प्रबल है। चुनाव आयोग के लिए अगले चरणों का चुनाव कराना उतना ही चुनौतीपूर्ण है, जितना कठिन राजनीतिक दलों के लिए यह सियासी रण है। चुनाव आयोग के पास शिकायतों का अंबार लग चुका है। चार चरणों का चुनाव होने के बावजूद जिलाधिकारी तक बदले जा रहे हैं।

चुनाव आयोग ने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक को नोटिस थमाया है। दीदी का जवाब भी काबिलेगौर है, ‘ऐसे दस नोटिस के लिए तैयार हैं।’ ममता दीदी ने निचले स्तर तक कार्यकर्ताओं और समर्थकों को संदेश देने की कोशिश की है कि चुनाव आयोग का रवैया निष्पक्ष नहीं है। ममता कहती हैं, चुनाव आचार संहिता नहीं, बल्कि मोदी आचार संहिता लागू की जा रही है। तृणमूल नेतृत्व अपने समर्थकों को यह संदेश देने में लगा है कि चुनाव आयोग से किसी मदद की उम्मीद नहीं रख अपनी तैयारी करें।

ऐसी परिस्थिति में चुनाव आयोग के लिए सबसे कठिन चुनौती है, हिंसामुक्त चुनाव। कूचबिहार में मतदान के दिन सीआइएसएफ की गोलियों से चार लोग मारे गए। सत्ता के इस रण में किसी का सिंदूर मिट गया, किसी की गोद उजड़ गई। उससे क्या। बंगाल का इतिहास चुगली करता है कि यह रुकने वाला नहीं है। हिंसा में जो लोग मरे, वह राजनीतिक विमर्श के केंद्र में नहीं है। चुनावी मुद्दा यह बन चुका है कि हिंसा का कारण दीदी का भाषण है अथवा अमित शाह का इशारा। कूचबिहार कांड के बाद भी हिंसा की तैयारी थमी नहीं है। बंगाल की चुनावी राजनीति का रक्तरंजित इतिहास पुराना है। छह दशक पहले हिंसा का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह थम नहीं रहा। एक दशक पहले वाम मोर्चा सरकार से दीदी ने सत्ता छीनी थी, उस वक्त भी खूब हिंसा हुई थी। ऐसे संकेत मिल रहे हैं, मुकाबला जितना नजदीकी होगा, हिंसा उतनी बढ़ेगी। हिंसा की आशंका को देखते हुए चुनाव आयोग ने दर्जनों कंपनी अर्धसैनिक बलों को भेजा है। देखना है, आगे क्या होता है।

बंगाल भाजपा के लिए अहम है। उससे कहीं अधिक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए। आठ में से चार चरण के चुनाव के बाद अब अधिसंख्य लोग चुनावी बाजी को बराबरी का मानने लगे हैं। अगले चरणों का चुनाव बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में होना है। अंतिम तीन चरणों में जहां चुनाव होने हैं, वे ऐसे इलाके हैं जहां पहले से ही भाजपा अपेक्षाकृत अधिक मजबूत है। लोकसभा चुनाव के नतीजे भी इसकी तस्दीक करते हैं। ममता बनर्जी को भी इन इलाकों की सियासी तासीर का भली-भांति भान है। ऐसे में यह स्वाभाविक है कि आगे का रण महाभीषण होगा।

[वरीय समाचार संपादक, धनबाद]

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