नक्सलियों से निर्णायक लड़ाई की प्रतीक्षा: नक्सली नरमी के हकदार नहीं, बरतनी होगी सख्ती

नक्सलियों का सफाया तभी होगा जब उन्हें आदिवासियों को बरगलाने-भरमाने से रोका जा सकेगा। इसके अलावा नक्सलियों को वैचारिक खुराक देने वाले कथित बुद्धिजीवियों पर भी लगाम लगानी होगी। नक्सली आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 11 Apr 2021 01:18 AM (IST) Updated:Sun, 11 Apr 2021 09:36 AM (IST)
नक्सलियों से निर्णायक लड़ाई की प्रतीक्षा: नक्सली नरमी के हकदार नहीं, बरतनी होगी सख्ती
नक्सलियों की ताकत को कम करके नहीं आंका जा सकता।

[ संजय गुप्त ]: छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सलियों ने जवानों की एक टुकड़ी को जिस तरह घेरकर निर्ममता से मारा, उससे यह सवाल फिर सतह पर आ गया कि आखिर नक्सली आतंक पर अंकुश कब लगेगा? बीजापुर की घटना के पहले नक्सलियों ने ऐसे ही एक हमले में राज्य के नारायणपुर इलाके में पांच जवानों को बम विस्फोट के जरिये निशाना बनाया था। बीजापुर की घटना एक तरह से भारत सरकार के नक्सलियों के सफाए के संकल्प को दी जाने वाली सीधी चुनौती है। बीजापुर में सीआरपीएफ, डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड, स्पेशल टास्क फोर्स और कोबरा बटालियन के करीब दो हजार जवान नक्सलियों की तलाश में निकले थे, लेकिन वे खुद उनके निशाने पर आ गए। हालांकि पुलिस अधिकारियों ने खुफिया या सुरक्षा संबंधी चूक से इन्कार किया है, लेकिन किसी न किसी स्तर पर तो गफलत हुई ही है।

नक्सलियों की ताकत को कम करके नहीं आंका जा सकता

क्या विभिन्न बलों के जवानों में पर्याप्त समन्वय नहीं था या फिर उन्होंने जरूरी सावधानी नहीं बरती अथवा नक्सलियों ने खुद उन्हें धोखे से अपने इलाके में बुला लिया? ये वे सवाल हैं, जिनके जवाब सामने आने चाहिए। आखिर 22 जवानों के बलिदान का मामला है। नक्सलियों के इस हमले में करीब 30 जवान घायल भी हुए हैं। यह मामूली बात नहीं कि नक्सली करीब दो हजार जवानों की घेराबंदी का दुस्साहस जुटा लें। यह दुस्साहस यही बताता है कि नक्सली एक बड़ा खतरा बने हुए हैं और उनकी ताकत को कम करके नहीं आंका जा सकता। दशकों से यह देखने को मिल रहा है कि वे बार-बार खुद को एकजुट करने और हथियारों से लैस करने में सक्षम हो जाते हैं।

नक्सली एक अरसे से सुरक्षा बलों को बना रहे हैं निशाना

यह पहली बार नहीं, जब नक्सलियों ने सुरक्षा बलों को इस तरह निशाना बनाया हो। वे इस तरह की घटनाएं एक अरसे से अंजाम देते चले आ रहे हैं। इसके पहले अप्रैल 2017 में नक्सलियों की ओर से घात लगाकर किए गए हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान मारे गए थे। 2013 में उन्होंने सुकमा के जंगलों में कांग्रेसी नेताओं समेत कई जवानों को भी निशाना बनाया था। 2010 में तो अलग-अलग हमलों में सौ से अधिक जवान नक्सलियों का निशाना बने थे। आखिर कौन भूल सकता है दंतेवाड़ा का वह हमला, जिसमें नक्सलियों ने सीआरपीएफ के 76 जवानों को मार डाला था? नक्सलियों के सफाए की बात बीते दो दशक से की जा रही है।

नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई छेड़ी जाएगी: अमित शाह

बीजापुर की घटना के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई छेड़ी जाएगी और जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा, लेकिन यह समय ही बताएगा कि नक्सली संगठनों पर पूरी तरह अंकुश लग पाता है या नहीं?

नक्सलियों को मिलने वाला संरक्षण और समर्थन को समाप्त किए बिना उनका सफाया संभव नहीं

नक्सलियों का सफाया तब तक संभव नहीं, जब तक उन्हें स्थानीय स्तर पर मिलने वाला संरक्षण और समर्थन समाप्त नहीं होता। यह किसी से छिपा नहीं कि स्थानीय आदिवासी अज्ञानता या भयवश नक्सलियों का साथ देते हैं। यह मानने के भी अच्छे-भले कारण हैं कि उन्हेंं स्थानीय नेता भी समर्थन देते हैं। नक्सली लोकतंत्र और चुनावों के विरोधी हैं, लेकिन कई नेता चुनाव के समय उनका साथ लेने में समर्थ हो जाते हैं। कहीं नक्सलियों के फलने-फूलने में स्थानीय नेताओं का भी हाथ तो नहीं? इस सवाल की तह तक जाने की जरूरत है। इस सवाल का जवाब भी तलाशा जाना चाहिए कि आखिर नक्सली इतनी बड़ी संख्या में हथियार और विस्फोटक कहां से हासिल कर रहे हैं?

आधुनिक हथियारों से लैस नक्सली पैसा वसूलने में समर्थ 

खुद को गरीब कहने वाले नक्सली आधुनिक हथियारों से लैस हैं तो इसका मतलब है कि या तो कोई उनकी मदद कर रहा है या फिर वे उगाही-वसूली के जरिये मोटा पैसा एकत्र करने में सक्षम हैं। जंगली इलाकों में नक्सलियों का आतंक इतना अधिक है कि वे सरकारी ठेका हासिल करने वालों से भी पैसा वसूलने में समर्थ हैं। उनकी मर्जी के बगैर आदिवासी इलाकों में सड़क, पुल, अस्पताल, स्कूल आदि बनना संभव नहीं। वे वन एवं खनिज संपदा का दोहन करने वालों से भी वसूली करते हैं। साफ है कि नक्सली संगठन लूट और उगाही करने वाले गिरोहों में तब्दील हो गए हैं।

नक्सली संगठन की खतरनाक विचारधारा

नक्सली संगठन माओ, लेनिन और मार्क्स की जिस विचारधारा का नेतृत्व करते हैं, वह पूरी दुनिया में हाशिये पर जा रही है, लेकिन देश के आदिवासी बहुल इलाकों में बंदूक के बल पर फल-फूल रही है। यह एक खतरनाक विचारधारा है। इस हिंसक, खूनी और सभ्य समाज विरोधी विचारधारा वालों का दमन निर्ममता से किया जाना चाहिए। वैसे भी अब नक्सली जंगल के लुटेरों से अधिक नहीं रह गए हैं। नक्सलवाद के नाम पर वे लूट, हत्या और उगाही का ही काम कर रहे हैं। वे जिन आदिवासियों के हितैषी होने का दावा कर रहे हैं, उनका न केवल शोषण कर रहे हैं, बल्कि उन्हें विकास से वंचित भी किए हुए हैं।

नक्सलियों के खिलाफ वैसी सख्ती बरतनी होगी, जैसी कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ बरती जाती है

नक्सलियों के प्रति कई बार यह कहकर नरमी दिखाई गई है कि वे हमारे अपने अथवा भटके हुए लोग हैं और उन्हें मुख्यधारा में लाने की जरूरत है, लेकिन अभी तक ऐसी बातों से बात बनी नहीं है। नक्सली बातचीत से समस्या समाधान के इच्छुक ही नहीं। वे बातचीत के लिए इस तरह शर्तें रखते हैं, जैसे कि कोई अलग देश हों। यह ठीक है कि उनकी गोली का जबाव केवल गोली से देते रहने से बात नहीं बनेगी, लेकिन उन्हें भटके हुए लोग मानना भी सही नहीं। चूंकि नक्सलियों ने जो आतंक फैला रखा है, उसमें और सीमा पार के आतंक में कोई विशेष अंतर नहीं है, इसलिए उनके खिलाफ वैसी ही सख्ती बरती जानी चाहिए, जैसी कश्मीर में आतंकियों अथवा पूर्वोत्तर के उग्रवादी संगठनों के खिलाफ बरती जाती है। नक्सली किसी भी तरह की नरमी के हकदार नहीं हैं। यह सामान्य बात नहीं कि वे देश के 50 से अधिक जिलों में सक्रिय हैं।

नक्सली आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा

हालांकि उनकी ताकत में कुछ कमी आई है, लेकिन तथ्य यही है कि अभी भी वे आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। बीजापुर की घटना इस पर मुहर ही लगाती है। नक्सलियों का सफाया तभी होगा, जब उन्हें आदिवासियों को बरगलाने-भरमाने से रोका जा सकेगा। इसके अलावा नक्सलियों को वैचारिक खुराक देने वाले कथित बुद्धिजीवियों पर भी लगाम लगानी होगी। ये अर्बन नक्सल इस या उस बहाने केवल नक्सलियों की पैरवी ही नहीं करते, बल्कि कई बार तो उनकी हिंसा को जायज भी ठहराते हैं। इनके विरुद्ध वैसी ही कार्रवाई होनी चाहिए, जैसी नक्सलियों के खुले समर्थकों और संरक्षकों के खिलाफ होती है। बुद्धिजीवी या मानवाधिकारों के मसीहा का चोला पहने नक्सलियों के ये ढके-छिपे समर्थक कम खतरनाक नहीं।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]

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