Bihar Assembly Election 2020: वर्चुअल मार्ग काफी हद तक मौजूदा दौर में संक्रमण के खतरे को कम करेगा

Bihar Assembly Election 2020आमने-सामने रैलियां रोड शो या अन्य भौतिक शैली के संवादों-सम्मेलनों के इतर वाया वर्चुअल मार्ग काफी हद तक मौजूदा दौर में संक्रमण के खतरे को कम करेगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 04 Jul 2020 10:22 AM (IST) Updated:Sat, 04 Jul 2020 10:25 AM (IST)
Bihar Assembly Election 2020: वर्चुअल मार्ग काफी हद तक मौजूदा दौर में संक्रमण के खतरे को कम करेगा
Bihar Assembly Election 2020: वर्चुअल मार्ग काफी हद तक मौजूदा दौर में संक्रमण के खतरे को कम करेगा

कमलेश कुमार सिंह। Bihar Assembly Election 2020 महज चंद दिनों के अंतराल के बीच वैश्विक स्तर पर जो एक सबसे बड़ा बदलाव देखने को मिला है, वह है भौतिक से वर्चुअल यानी आभासी माध्यम की ओर बढते कदम। कोरोना महामारी के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो खबरें आ रही हैं, उनमें से एक है राजनीति के तौर-तरीके में बदलाव की। डिजिटल लोकतंत्र के लिए कोरोना वायरस एक उत्प्रेरक के तौर पर भी सामने आया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये संवाद। केंद्रीय कैबिनेट की वर्चुअल बैठक। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का अपने पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के साथ विभिन्न वर्चुअल प्लेटफॉर्म के जरिये संवाद। ऐसे उदाहरण केवल केंद्रीय स्तर तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि राज्य व पंचायत स्तर पर भी राजनीति के लिए वर्चुअल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया जा रहा है। यानी अब तक राजनीति को वाया सड़क मार्ग माना जाता रहा, वह एक हद तक वाया वर्चुअल मार्ग में तब्दील होती दिख रही है।

महामारी के इस दौर में सियासत की बिसात भी डिजिटल स्पेस में बिछने लगी है। फिलहाल सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म वाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, इंस्टाग्राम आदि के माध्यम से राजनीति के तीर चलाए जा रहे हैं। मौजूदा हालात को देखते हुए कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में राजनीतिक रैलियां, रोड शो, धरना-प्रदर्शन आदि नहीं होने वाले। आने वाले एक साल के भीतर बिहार, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम और केरल में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। कई राज्यों में स्थानीय व निकाय चुनाव भी होने हैं। इन सबमें सबसे पहले अक्टूबर-नवंबर में ही बिहार विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। चुनावी अभियान में संभावित बदलावों के मद्देनजर लगभग सभी दल अंदरखाने तैयारी को अंतिम रूप दे रहे हैं। राजनीतिक तौर-तरीकों में बदलाव का हालिया उदाहरण आंध्र प्रदेश से आया है। चंद्र बाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलगु देशम पार्टी ने अपना वार्षिक सम्मेलन वर्चुअल तरीके से आयोजित किया है।

दक्षिण कोरिया का चुनावी मॉडल : कोरोना काल में दक्षिण कोरिया में आयोजित आम चुनाव अपने देश के लिए अनुकरणीय साबित हो सकता है। सख्त सुरक्षा इंतजामों के बीच वहां अप्रैल में सफलता के साथ चुनाव संपन्न हुए। मतदान केंद्रों को सैनिटाइज करने के बाद उन्हें सुबह खोला गया। मतदाताओं को मास्क और दस्ताने पहनना आवश्यक किया गया। मतदान केंद्र पर पहुंचने के बाद पहला काम मतदाताओं का तापमान जांचा गया। मतदाताओं को कतार में एक-एक मीटर की दूरी पर खड़ा किया गया। वहीं क्वारंटाइन किए गए लोगों को सामान्य मतदान का समय शाम में समाप्त होने के बाद मतदान करने दिया गया। चुनाव प्रचार अभियान के दौरान भी काफी एहतियात बरते गए।

फिलहाल निकट भविष्य में अपने देश में मतदान की प्रक्रिया में शारीरिक दूरी और अन्य सुरक्षात्मक उपायों के दक्षिण कोरिया वाला मॉडल अपनाने के अलावा किसी बड़े बदलाव जैसे ऑनलाइन मतदान की गुंजाइश नहीं दिखती। वैसे बिहार चुनाव के मद्देनजर कुछ बदलाव भी किए गए हैं। मसलन 65 साल से अधिक उम्र के व्यक्तियों और कोरोना संक्रमित या फिर होम क्वारंटाइन में रहने वाले लोग अपना मत पोस्टल बैलट से डाल सकेंगे। वहीं अधिकांश चुनावी जानकारों का मत है कि यदि ऑनलाइन मतदान का विकल्प अपनाया जाए तो भी इसके लिए कई स्तरों पर तैयारी करनी होगी। देश में इंटरनेट और डिजिटल साक्षरता की व्यापक कमी है। हां, एक हद तक प्रचार अभियान सोशल मीडिया के जरिये जरूर चलाया जा सकता है।

स्टेटिस्टा के अनुसार, देश में लगभग 68 करोड़ सक्रिय इंटरनेट यूजर्स हैं। इनमें से 63 करोड़ स्मार्टफोन के माध्यम से इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। वहीं 40 करोड़ लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। इंटरनेशनल डाटा कॉरपोरेशन के मुताबिक देश में 90 करोड़ स्मार्टफोन व फीचर फोन यूजर्स हैं। इंटरनेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक, देश के ग्रामीण इंटरनेट यूजर्स की संख्या शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ज्यादा हो गई है। देश में लगभग 30 करोड़ फेसबुक और 20 करोड़ वाट्सएप यूजर्स हैं। लगभग साढे तीन करोड़ लोग ट्विटर पर हैं। अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट के यूजर्स भी करोड़ों में हैं। हरेक चुनाव में बड़ी संख्या में नए मतदाता जुड़ते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि पहली दफा बने वोटर की राजनीतिक समझ परिवार के अन्य सदस्यों की तुलना में काफी अलग होती है। अपने परिवार में ऐसा युवा अधिक सूचनाग्राही व तकनीकी कौशल वाले होते हैं। लिहाजा हरेक राजनीतिक दल की नजर युवाओं को लुभाने पर केंद्रीत होती है। देश में 18 से 65 वर्ष आयु वर्ग के करीब 27 करोड़ लोग फेसबुक का उपयोग करते हैं। अगर इसे वोटर के आधार पर देखें तो लगभग 36 फीसद वोटर तक राजनीतिक पार्टियां इस प्लेटफॉर्म का उपयोग कर अपनी पहुंच बना सकती हैं। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि हम एक ऐसे राजनीतिक युग में प्रवेश कर चुके हैं, जहां वोटरों को लुभाने के लिए सबसे दमदार माध्यम सोशल मीडिया बन चुका है। अंग्रेजी की भाषाई सीमा को लांघ कर सोशल मीडिया में हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का इस्तेमाल भी तेजी से बढ रहा है।

कोरोना काल में मतदाता और राजनेता के बीच एक नए रचनात्मक, विश्वसनीय, तर्कसाध्य और प्रभावशाली संबंध बनाने के लिए डिजिटल साक्षरता की गति को तेज करने के साथ ही वर्चुअल माध्यम की पहुंच को आवश्यक विस्तार देना होगा। आमने-सामने, रैलियां, रोड शो या अन्य भौतिक शैली के संवादों-सम्मेलनों के इतर वाया वर्चुअल मार्ग काफी हद तक मौजूदा दौर में संक्रमण के खतरे को कम करेगा।

[स्वतंत्र पत्रकार]

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