Corona Vaccine News: लोगों तक पहुंचने से पहले बर्बाद हो रहा टीका, तय हो जवाबदेही

देश के ग्रामीण और दूरदराज इलाकों तक कोरोना रोधी टीका पहुंचाने के लिए बड़ी संख्या में उपयुक्त डिलीवरी वैन का इंतजाम करना होगा ताकि वैक्सीन की बर्बादी न्यूनतम हो। इसकी बर्बादी के सभी कारणों को समझते हुए उनका समाधान सुनिश्चित करना होगा। फाइल

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 18 May 2021 09:58 AM (IST) Updated:Tue, 18 May 2021 10:38 AM (IST)
Corona Vaccine News: लोगों तक पहुंचने से पहले बर्बाद हो रहा टीका, तय हो जवाबदेही
टीकाकरण की बर्बादी के लिए जवाबदेही भी तय होनी चाहिए।

लालजी जायसवाल। कोरोना के बढ़ते प्रकोप के साथ देशभर में टीकाकरण की प्रक्रिया भी तेजी से आगे बढ़ रही है। विज्ञानियों ने कयास लगाया है कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर अपने अवसान के समीप है और तीसरी लहर की शुरुआत होने वाली है, जिसमें बच्चों के अत्यधिक संक्रमित होने की चिंता जताई गई है। इसी आशंका से सरकार टीकाकरण को गति देने पर जोर दे रही है। यही वजह है कि एक मई से सरकार ने 18 की उम्र को पार कर चुके लोगों के लिए भी टीकाकरण का रास्ता खोल दिया है। देश में टीके की कमी के बीच पिछले दिनों केंद्र सरकार ने निर्णय लिया कि अगस्त से दिसंबर के बीच पांच महीनों में देश में दो अरब से अधिक खुराक उपलब्ध कराई जाएंगी, जो पूरी आबादी का टीकाकरण करने के लिए पर्याप्त हैं। लेकिन उससे पहले टीके की बढ़ती बर्बादी को कम करने पर काम करना होगा।

बहरहाल, देश में अब तक लगभग 18 करोड़ वैक्सीन की डोज लगाई जा चुकी है। जहां अभी भी देश की एक बड़ी आबादी का टीकाकरण करना बड़ी चुनौती है, वहीं लगातार टीके की बर्बादी सरकार के लिए चिंता का कारण है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीकों की बर्बादी रोकने के लिए केरल की तारीफ की और कहा कि कोरोना के खिलाफ जंग को मजबूत करने के लिए वैक्सीन की बर्बादी कम करना सबसे अहम है। यह पहला ऐसा अभियान है, जिसके तहत समूची वयस्क आबादी का टीकाकरण होना है। देश में कोविड टीके की औसतन 6.5 फीसद खुराक बर्बाद हो रही है। पिछले दिनों हरियाणा में 2.29 लाख लोगों को लगाई जा सकने वाली वैक्सीन बेकार चली गई। दुख की बात है कि वैक्सीन बर्बादी के मामले में तमिलनाडु, हरियाणा, असम, पंजाब, मणिपुर और तेलंगाना सबसे आगे हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों से यह जानकारी मिली है कि तमिलनाडु वैक्सीन बर्बादी की सूची में शीर्ष पर है। यहां अब तक सबसे ज्यादा 12.1 फीसद वैक्सीन की डोज बर्बाद हुई है। इसके बाद हरियाणा का नंबर आता है, जहां अब तक 9.7 प्रतिशत डोज की बर्बादी हो चुकी है। पंजाब में 8.1 प्रतिशत, मणिपुर में आठ प्रतिशत और तेलंगाना में 7.5 प्रतिशत, जबकि राजस्थान में 5.5 प्रतिशत और बिहार में 4.9 प्रतिशत और मेघालय में 4.2 फीसद कोविड वैक्सीन बर्बाद हो चुकी हैं। वहीं सबसे कम वैक्सीन बर्बाद करने वालों में अंडमान एवं निकोबार, दमन एवं दीव, गोवा, हिमाचल प्रदेश, केरल और मिजोरम शामिल हैं। अन्य राज्यों को इन राज्यों से सीख लेनी चाहिए।

सवाल उठता है कि आखिर ये वैक्सीन बर्बाद क्यों हो रही है? एक तरफ निरंतर वैक्सीन की कमी की खबरें आ रही हैं, जिसकी वजह से एक मई से 18 वर्ष से अधिक उम्र वालों के लिए टीकाकरण प्रभावित हो रहा है, तो दूसरी ओर इसकी बर्बादी। आखिर क्या कारण है? दरअसल वैक्सीन की एक शीशी में 10 से अधिक डोज आती है और अगर शीशी एक बार खुल जाती है, तो सिर्फ चार घंटे के अंदर उसका इस्तेमाल करना जरूरी होता है। अगर ऐसा नहीं होता तो वैक्सीन खराब होने की आशंका बढ़ जाती है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों को टीके के भंडारण के लिए निर्देश जारी किया था कि टीकों को दो से आठ डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच ही रखना जरूरी होगा। इसका सही अनुपालन न होना भी टीका बर्बादी का कारण बन रहा है।

राज्यों में टीकाकरण की ताजा समीक्षा रिपोर्ट में पता चला है कि देश में कोरोना टीकाकरण के दौरान विभिन्न राज्यों में टीके की 58 लाख से भी अधिक खुराकें बर्बाद हुई हैं। केंद्र सरकार ने प्रति खुराक 150 रुपये की दर से इन्हें खरीदा था। इस हिसाब से टीकाकरण के लगभग 90 दिनों के भीतर ही सरकार को 87 करोड़ से अधिक का नुकसान हो चुका है। गौरतलब है कि सर्वाधिक प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में ही अब तक दी गईं 1.06 करोड़ खुराकों में से 95 लाख का इस्तेमाल हुआ, जबकि पांच लाख से अधिक खुराकें नष्ट हो गईं। इस वजह से करीब साढ़े सात करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इसलिए जरूरी है कि टीके की बर्बादी पर राज्यों की जवाबदेही तय की जाए। यह टीका एक संजीवनी है, जो लोगों के प्राण की रक्षार्थ उपयोग की जा रही है, लेकिन राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन की लापरवाही के कारण टीके की बर्बादी जारी है, जो अधिक चिंता का विषय बनता जा रहा है।

टीके की बर्बादी रोकने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों एवं स्थानीय प्राधिकरणों की है। अगर स्थानीय प्रबंधन मजबूत बनाया जाए तो इसमें कमी अवश्य लाई जा सकती है। छोटे टीकाकरण केंद्रों को भी मजबूत करने की जरूरत है। टीके की बर्बादी का एक प्रमुख कारण लोगों द्वारा समय लेने के बावजूद टीका लगवाने न पहुंचना है। विशेषज्ञों ने वैक्सीन की बर्बादी को रोकने के लिए एक तरीका सुझाया है, जिसमें टीकाकरण केंद्रों के पास एक किमी के दायरे में रह रहे लोगों का डाटा तैयार किया जाना चाहिए ताकि वे फोन कर लोगों को वैक्सीन लगवाने के लिए बुला सकें। खुराकों को फेकने से बेहतर गैर-पात्र लोगों को वैक्सीन लगाना है। इससे बर्बाद होने वाली खुराकों को बचाया जा सकेगा। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि यदि दिन के अंत में, शीशी में कुछ खुराकें बाकी हैं तो उन्हें जरूरतमंद लोगों को दिया जाए। भले ही ऐसे व्यक्ति टीकाकरण के लिए निर्धारित श्रेणी में नहीं आते हों। वास्तव में इस उपाय को राज्य सरकारों को लागू करना चाहिए, क्योंकि ये टीके अमूल्य हैं। टीके की बर्बादी कम होने से अधिक लोगों का टीकाकरण किया जा सकेगा। सभी राज्यों की सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस संबंध में जाने अनजाने किसी भी तरह की लापरवाही न हो। सवाल केवल दवा की कुछ खुराक के खराब होने का नहीं है, यह लोगों के जीवन से जुड़ा मसला है।

कोरोना से बचाव के लिए देशभर में टीकाकरण के दायरे में सभी वयस्कों को शामिल कर लिया गया है, लेकिन उपलब्धता के अभाव में समूची आबादी के टीकाकरण में कई माह का समय लग सकता है। ऐसे में उपलब्ध वैक्सीन की प्रत्येक डोज का इस्तेमाल सुनिश्चित होना चाहिए। कई कारणों से वैक्सीन की काफी डोज की बर्बादी हो रही है। ऐसे में यह निर्धारित किया जाना चाहिए कि इस संबंध में किसी भी तरह की लापरवाही न हो। इसकी बर्बादी के लिए जवाबदेही भी तय होनी चाहिए।

[शोधार्थी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय]

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