वैक्सीन की महत्ता के संदर्भ में देश भर में जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत

समय आ गया है कि सरकार टीकों की महत्ता के संदर्भ में जागरूकता अभियान चलाए। कोरोना ने हमें समझा ही दिया है कि बीमारी किस हद तक जीवन को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से प्रभावित कर सकती है।

By TaniskEdited By: Publish:Sat, 15 Aug 2020 02:22 PM (IST) Updated:Sat, 15 Aug 2020 02:22 PM (IST)
वैक्सीन की महत्ता के संदर्भ में देश भर में जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत
वैक्सीन की महत्ता के संदर्भ में देश भर में जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत

प्रणति तिवारी मुखर्जी। कोरोना संक्रमण के दौर में वैक्सीन शब्द ट्रेंड में चल रहा है। रोजाना लाखों की तादाद में लोग इस शब्द को या तो गूगल पर सर्च कर रहे हैं या इससे जुड़ी तमाम अपडेट्स अखबारों के माध्यम से ले रहे हैं। किस देश ने कोविड-19 के वैक्सीन पर किस स्तर तक टेस्टिंग की और कितनी सफलता मिली, यह हर घर में चर्चा का विषय है।

संक्रमण को लेकर समाज में दहशत है। लोग हर मामले में जागरूक होना चाह रहे हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि वैश्वीकरण के इस दौर में कोरोना संक्रमण के अलावा भी हमारे आसपास कई ऐसे वायरस और जानलेवा बीमारियां पहुंच चुकी हैं जो आसानी से आपकी या आपके अपनों की जान ले सकता है। हालांकि, इनसे बचाव के लिए वैक्सीन उपलब्ध हैं, लेकिन पर्याप्त जानकारी के अभाव में हम इस मामले में अबोध ही हैं।

 उन वयस्कों का क्या जिन्हें टीका कभी लगा ही नहीं

दुनिया भर में सेहत पर काम करने वाली बड़ी संस्था सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन के मुताबिक हम नवजात शिशुओं और बच्चों को तो टीका लगाकर एक सुरक्षा कवच के अंदर ले आते हैं, लेकिन उन वयस्कों का क्या जिन्हें इबोला, रूबेला, इनफ्लूएंजा, डिप्थीरिया, काला खांसी, हैपेटाइटिस बी जैसी जानलेवा बीमारियों से बचने का टीका कभी लगा ही नहीं। इस पीढ़ी के लोग आसानी से इन रोगों की चपेट में आ सकते हैं।

वयस्कों में टीकाकरण की दर महज एक से दो प्रतिशत 

एम्स जोधपुर की एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में वयस्कों में टीके यानी बीमारी से पहले टीकाकरण की दर महज एक से दो प्रतिशत के बीच है, जो निराशाजनक है। यही नहीं टिटनस और रैबीज जैसे अनिवार्य पोस्ट एक्सपोजर टीकाकरण के प्रति भी लोगों में जागरूकता का अभाव है। लिहाजा देश भर में टिटनस टीके का प्रयोग मात्र 40 प्रतिशत ही किया जा रहा है, जबकि किसी जानवर के काटने पर होने वाली जानलेवा बीमारी रैबीज का टीका 28 प्रतिशत लोग ही लेते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण लोगों में इस बारे में जानकारी का अभाव है।

वयस्क को टीडी वैक्सीन जरूर लगाना चाहिए

लंबे समय से इस विषय पर काम कर रहे शोधकर्ताओं का मानना है कि डॉक्टरों को वयस्कों की सेहत से संबंधित इन टीकों की जानकारी जरूर रखनी चाहिए और जहां तक हो सके उनके पास आने वाले मरीजों को भी इसकी जानकारी देनी चाहिए। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि हर वयस्क को टीडी वैक्सीन जरूर लगाना चाहिए, ताकि उन्हें टिटनस और डिप्थीरिया से अगले एक दशक तक सुरक्षा कवच मिली रहे।

टीकों से जुड़ी तमाम जानकारियां डॉक्टर से लेनी ही चाहिए

इसके अलावा उम्र के आधार पर बात की जाए तो 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को भी इनफ्लूएंजा, एचपीवी, टीडी वैक्सीन से संबंधित टीकों से जुड़ी तमाम जानकारियां डॉक्टर से लेनी ही चाहिए। यही नहीं, घर के बुजुर्ग जो 60-70 साल तक के हो चुके हैं, उनके लिए भी उपलब्ध पीपीएसवी 23, पीसीवी 13 जैसे महत्वपूर्ण टीकों की जानकारी लेनी चाहिए। ये टीके बुजुर्गो को कई तरह की सेहत संबंधी समस्याओं से दूर रखने के साथ उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत करते हैं।

सरकार इन टीकों की महत्ता के संदर्भ में देश भर में जागरूकता अभियान चलाए

समय आ गया है कि सरकार इन टीकों की महत्ता के संदर्भ में देश भर में जागरूकता अभियान चलाए। कोरोना काल ने हमें यह तो समझा ही दिया है कि एक बीमारी किस हद तक हमारे जीवन को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रभावित कर सकती है। ऐसे में हमें भी चाहिए कि हम खुद को वैश्विक बीमारियों से जहां तक हो सके सुरक्षित रखें और घर के बच्चों के अलावा वयस्कों को भी घातक जानलेवा बीमारियों से बचने के लिए सुरक्षा कवच प्रदान करें। हमें यह जानकारी रखनी चाहिए कि दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत में भी ये तमाम टीके उपलब्ध हैं। लेकिन जागरूकता के अभाव में हर साल लाखों लोग इन बीमारियों की चपेट में आकर जान गंवाते हैं। ऐसे में हमें आज इन बीमारियों से आजादी का संकल्प भी लेना चाहिए।

[ लेखक स्वतंत्र पत्रकार है] 

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