अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे से सामरिक मोर्चे को मिली और मजबूती

भारत दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी भारत के लिए अनौपचारिक स्तर पर प्रशंसा के पुल बांध दिए जिससे यह समझा जा सकता है कि अमेरिका के लिए भी भारत की कितनी अहमियत है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 27 Feb 2020 09:55 AM (IST) Updated:Thu, 27 Feb 2020 10:10 AM (IST)
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे से सामरिक मोर्चे को मिली और मजबूती
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे से सामरिक मोर्चे को मिली और मजबूती

विवेक ओझा। भारत और अमेरिका आज 21वीं सदी के उस समय काल में हैं जब दोनों को अपने कई हित और चुनौतियां साझी लगती हैं। वैश्विक आतंकवाद पर निर्मम और निर्णायक प्रहार करने की बात हो, समुद्री व्यापारिक मार्गों की सुरक्षा के लिए एशिया प्रशांत और हिंद प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा की बात हो, चीन को एशिया और विश्व राजनीति और अर्थव्यवस्था में प्रतिसंतुलित करने की बात हो, भारत के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूती देने की बात हो, द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने की बात हो, इन सभी मामलों में दोनों देशों को एक दूसरे की जरूरत है।

लेकिन इस यात्रा के दौरान जिन खास मुद्दों पर संबंधों को नई ऊर्जा देने की कोशिश की गई है, उनमें प्रमुख हैं भारत के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूती देने के लिए किया गया समझौता। तीन अरब डॉलर का प्रतिरक्षा समझौता अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा का प्रमुख आकर्षण और उद्देश्यपूर्ण निर्णय रहा। 80 करोड़ डॉलर की लागत वाले अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन द्वारा निर्मित 24 एमएच-60 रोमियो हेलीकॉप्टरों को भारतीय नौसेना की जरूरतों को ध्यान में रखकर भारत द्वारा खरीदे जाने का निर्णय लिया गया है। ये हेलीकॉप्टर समुद्रों में पनडुब्बियों का पता लगाकर उन्हें तबाह करने में सक्षम माने जाते हैं। हेलीकॉप्टरों की प्रस्तावित बिक्री से भारत अमेरिका के रणनीतिक रिश्ते मजबूत होंगे।

भारत, अमेरिका का बड़ा डिफेंस पार्टनर है। डील से इंडो-पैसिफिक और दक्षिण एशिया में स्थायित्व-शांति बनाए रखने में मदद मिलेगी। वहीं, रोमियो हेलीकॉप्टरों से भारतीय फौजों की एंटी-सरफेस (जमीन) और एंटी-सबमरीन सुरक्षा क्षमता में इजाफा होगा। इसके अलावा 80 करोड़ डॉलर लागत वाले अपाचे हेलीकॉप्टर भी खरीदने का फैसला भारत ने किया। इनके अलावा ट्रंप ने दुनिया के आधुनिक और उच्च कोटि के अमेरिकी हथियारों जिसमें एयर डिफेंस सिस्टम, मिसाइल, रॉकेट से लेकर नौसैनिक जहाज आदि शामिल हैं, उन्हें भारत को देने की भी घोषणा की।

आतंकवाद से लड़ने पर जोर और सामरिक संबंध : ट्रंप ने कहा कि भारत अमेरिका संबंध 21वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण साझेदारी में हैं और इसलिए दोनों देशों ने आपसी संबंधों को कॉम्प्रिहेंसिव ग्लोबल स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप के स्तर पर ले जाने का निर्णय लिया है। आतंक के समर्थकों को जिम्मेदार ठहराने के लिए मिल कर कार्य करने का फैसला लिया गया है। दोनों देशों के मध्य ड्रग तस्करी, नार्को-आतंकवाद और संगठित अपराध जैसी गंभीर समस्याओं के बारे में एक नए मेकैनिज्म पर भी सहमति हुई है। कुछ ही समय पहले दोनों देशों के मध्य स्थापित स्ट्रैटेजिक एनर्जी पार्टनरशिप सुदृढ़ होती जा रही है और इस क्षेत्र में आपसी निवेश बढ़ा है। तेल और गैस के लिए अमेरिका भारत का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत बन गया है।

अमेरिकी संसद ने पिछले वर्ष भारत को नाटो देशों के समान दर्जा देने वाले प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। इसके चलते अब रक्षा संबंधों के मामले में अमेरिका भारत के साथ नाटो के अपने सहयोगी देशों, इजरायल और दक्षिण कोरिया की तर्ज पर ही डील करेगा। यहां यह भी जानना जरूरी है कि दोनों देशों को इस तरह के प्रतिरक्षा संबंध और सहयोग तक पहुंचाने के लिए किन बातों ने भूमिका निभाई। वर्ष 2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर तालिबानी आतंकी हमले के बाद रातों-रात अमेरिका की विदेश नीति वैश्विक आतंकवाद उन्मूलन केंद्रित हो गई।

अमेरिका के नेतृत्व में नाटो देशों के सैनिकों से बनी अंतरराष्ट्रीय फौजों की ऑपरेशन एनड्योरिंग फ्रीडम के जरिये अफगानिस्तान में तैनाती हुई। नाटो ने इसके लिए अपने सामूहिक सुरक्षा प्रावधान (अनुच्छेद 5) के जरिये 9/11 की आतंकी घटना का प्रतिकार किया। यह प्रावधान कहता है कि नाटो के किसी एक सदस्य पर किया गया हमला पूरे नाटो पर किया गया हमला माना जाएगा और नाटो उसका जवाब देगा। नाटो की सेनाओं के अलावा अमेरिका के नेतृत्व में ग्लोबल काउंटर टेररिज्म फोरम का गठन किया गया और इस 30 देशों वाले फोरम का सदस्य भारत भी है। इसके अलावा अमेरिका ने अपने भूक्षेत्र में आतंकियों को रोकने के उद्देश्य से फॉरेन टेररिस्ट ट्र्रैंकग टास्क फोर्स का गठन किया था।

अटल बिहारी वाजपेयी और बिल क्लिंटन के दौर में रिश्तों की नींव : पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय भारत-अमेरिका में अच्छे रिश्तों की शुरुआत की नींव रखी गई और भारत अमेरिका का स्वाभाविक सहयोगी बना। वर्ष 2001 के बाद दोनों सामरिक साझेदार बन गए। 2004 में सामरिक साझेदारी के अगले चरण पर समझौता हुआ जिसका मतलब था कि दोनों देशों के बीच असैन्य नाभिकीय सहयोग, मिसाइल प्रतिरक्षा संबंध, असैन्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी सहयोग और उच्च प्रौद्योगिकी व्यापार के क्षेत्र में सहयोग हो सकेगा। वर्ष 2008 में भारत को स्वाभाविक साझेदार का दर्जा मिला। वर्ष 2016 में ग्लोबल स्ट्रैटेजिक पार्टनर और मेजर डिफेंस पार्टनर का दर्जा अमेरिका ने भारत को दिया और प्रतिरक्षा संबंधों को एक नई ऊंचाई मिली।

इन सब कामों के साथ भारत को नाटो से जोड़ने के पीछे अमेरिका के दीर्घकालिक हित काम कर रहे हैं। एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन को प्रतिसंतुलित करने के तरीके अमेरिका लगातार खोज रहा है। चीन के दक्षिण चीन सागर के स्पार्टले और पारासेल द्वीपों और पूर्वी चीन सागर में डियायू अथवा सेनकाकू द्वीपों पर अवैधकब्जे करने का प्रयास, चीन द्वारा पापुआ न्यूगिनी में नौसैनिक अड्डे के निर्माण का प्रस्ताव, वन बेल्ट वन रोड पहल, मैरीटाइम सिल्क रूट, मोतियों की लड़ी की नीति के जरिये समूचे हिंद महासागर को अड्डों का नेटवर्क बनाने का प्रयास, हिंद महासागर में इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी से पॉलिमेटालिक सल्फाइड के निष्कर्षण का ठेका प्राप्त करने जैसी बातें अमेरिका के हित में नहीं है और दूसरी तरफ चीन के साथ व्यापार में अमेरिका को लगातार नुकसान हो रही है। इस दृष्टि से भारत को नाटो से जोड़कर अमेरिका क्वाड्रीलैटरल ग्रुप यानी क्वाड और मालाबार, रिंपैक और युद्ध अभ्यास जैसे संयुक्त अभ्यासों को एशिया पैसिफिक क्षेत्र को बचाने के लिए एक नई ऊर्जा भर सकता है।

अफगानिस्तान से अमेरिका और भारत दोनों के सामरिक हित जुडे़ हैं। भारत को नाटो से जोड़ कर ट्रांसनेशनल इस्लामिक टेरर नेटवर्क से निपटने में आसानी होगी। 2014 में अमेरिका के नेतृत्व में 79 देशों के ‘ग्लोबल कॉएलिशन टू डिफीट आइएस’ का गठन किया गया था, इस गठजोड़ का नाटो भी सदस्य है। आइएस यानी  इस्लामिक स्टेट ने हाल में अफगानिस्तान और अन्य जगहों पर भारतीयों को बंधक बनाया, कश्मीर में नए प्रांत बनाने का दावा भी किया है। इस खतरे से निपटने के लिए नाटो से जुड़ाव कारगर रहेगा। अफगानिस्तान पाकिस्तान और ईरान की सीमाओं पर होने वाले नशीले पदार्थों की तस्करी, अतिवाद, धार्मिक कट्टरता आदि

से निपटना नाटो और भारत दोनों के लिए जरूरी है।

भारत को आज गिलगित बाल्टीस्तान, डोकलाम, तवांग, सरक्रीक की सुरक्षा के लिए जो सैन्य सूचना सहयोग चाहिए, उसका मार्ग नाटो से जुड़ाव से खुल जाएगा। 2016 में भारत को मेजर डिफेंस पार्टनर का दर्जा मिलने और उसके पहले और बाद में किए गए चार प्रतिरक्षा समझौते इस बात को सिद्ध करते हैं कि अमेरिका ने भारत को नाटो से जोड़ने की बात काफी पहले ही सोच ली होगी और सही समय का इंतजार किया भारत को नाटो का सहयोगी बनाने के लिए।

[अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार]

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