आपदा प्रबंधन पर अनावश्यक आक्रामकता: आपदा प्रबंधन में हमेशा कमियां होती हैं, चाहे किसी भी पार्टी की सरकार क्यों न हो

आपदा प्रबंधन में हमेशा कमियां होती हैं चाहे किसी भी पार्टी की सरकार क्यों न हो पर उन कमियों को इंगित करने में संतुलन जरूरी। लाॅकडाउन लगे तो मजदूरों की रोजी-रोटी और अर्थव्यवस्था में गिरावट का आरोप। न लगे तो सरकार पर लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने की तोहमत।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 17 May 2021 02:43 AM (IST) Updated:Mon, 17 May 2021 03:42 AM (IST)
आपदा प्रबंधन पर अनावश्यक आक्रामकता: आपदा प्रबंधन में हमेशा कमियां होती हैं, चाहे किसी भी पार्टी की सरकार क्यों न हो
कोविड जैसी आपदा का प्रबंधन करना भारत जैसे देश के लिए चुनौतीपूर्ण।

[ डॉ. एके वर्मा ]: इन दिनों कोविड आपदा प्रबंधन को लेकर विपक्षी दलों, मीडिया, नेता-अभिनेता, न्यायालयों, राज्य सरकारों, नागरिक संगठनों द्वारा केंद्र सरकार के विरुद्ध अति आक्रामकता दिखाई जा रही है। इसमें कोई शक नहीं कि इस दौरान जनता को दवाओं, ऑक्सीजन, अस्पतालों में बिस्तरों की कमी और कालाबाजारी से रूबरू होना पड़ा। कोरोना की दूसरी लहर में हजारों लोगों की अकाल मृत्य हुई, जिनमें हम सभी के परिजन, मित्र, पड़ोसी और गणमान्य लोग शामिल हैं। यह अभूतपूर्व आपदा और अप्रत्याशित मानवीय क्षति राष्ट्रीय शोक है। इतिहास में कभी-कभार ही ऐसा होता है। संपूर्ण समाज को मिलकर इससे निपटना होता है। इसके लिए किसी सरकार, अभिकरण या नेतृत्व को दोषी ठहरा कर कुछ भी हासिल नहीं होता। हमसे ही तो सरकार है। ऐसी चुनौती के समय हमें उसका मनोबल बढ़ाना होता है, उसका साथ देना होता है। ऐसा हम चीन और पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के वक्त कर चुके हैं। कोविड आपदा भी अदृश्य शत्रु के विरुद्ध युद्ध ही है। एक बार युद्ध खत्म हो जाए, विजय प्राप्त हो जाए, तब इसकी समीक्षा करना उचित होगा कि हमारी तैयारी, रणनीति और प्रबंधन में क्या कमियां थीं तथा उसे और बेहतर कैसे बनाया जा सकता था?

कोविड जैसी आपदा का प्रबंधन करना भारत जैसे देश के लिए चुनौतीपूर्ण

कोई भी सरकार कोविड जैसी भयंकर आपदा के लिए न तो तैयार होती है, न ही कोई स्थाई संरचना बना कर रखती है। आपदा का तो प्रबंधन ही करना पड़ता है। 139 करोड़ जनसंख्या वाले लोकतांत्रिक देश में यह बहुत चुनौतीपूर्ण है। इसकी और देशों से क्या तुलना? भारत के मुकाबले अमेरिका की जनसंख्या एक-चौथाई अर्थात केवल 33 करोड़ है, पर वहां कोविड से छह लाख लोगों की मृत्यु हो चुकी है, जो प्रथम एवं द्वितीय विश्व-युद्ध, वियतनाम युद्ध और 9-11 त्रासदी में मृत कुल अमेरिकियों की संख्या से भी अधिक है। अमेरिका विकसित देश है। वहां तो स्वास्थ्य संबंधी सभी आधारभूत संरचनाएं हैं, फिर भी वहां भारत के मुकाबले तीन गुना मृत्यु कैसे हुई? बावजूद इसके वहां संघीय सरकार के विरुद्ध ऐसी कोई आक्रामकता नहीं दिखाई दी, जैसी हमें अपने देश में देखने को मिली। अपने यहां इस मसले पर जिस तरह केंद्र सरकार का विरोध हो रहा है, उससे न केवल सरकार का मनोबल कम होता है, वरन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि भी खराब होती है, जबकि अनेक देशों की सरकारें और लोग भारत के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर रहे हैं कि उसने उन्हें गाढ़े वक्त में वैक्सीन दे कर बहुत बड़ा उपकार किया तथा वे आपदा की इस घड़ी में दृढ़ता से भारत के साथ हैं।

स्वास्थ्य राज्य-सूची का विषय है, राज्यों ने इस पर कम ध्यान दिया 

स्वास्थ्य राज्य-सूची का विषय है और उससे संबंधित आधारभूत संरचना का विकास करना राज्यों का दायित्व है, लेकिन स्वतंत्रता के बाद राज्यों ने इस पर कम ध्यान दिया। सरकारी अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति ऐसी है कि आम आदमी वहां जाने से कतराता है। अत: देश में प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंग होम्स की बाढ़ आ गई है, जो केवल व्यापारिक प्रतिष्ठानों के रूप में चलाए जाते हैं। उनमें शोषण की शिकायतें आती रहती हैं। भारत क्या है? सभी राज्य मिलकर ही तो भारत हैं। कोई भी कार्य किसी न किसी राज्य में राज्य सरकार की मशीनरी के माध्यम से ही तो होगा। कोविड जैसी आपदा के प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के अंतर्गत राज्यों को निर्देश देने और नियंत्रण के विशेष अधिकार हैं, पर सरकारी मशीनरी तो राज्य सरकारों के नियंत्रण में काम करती है। केंद्र सरकार राज्य सरकारों को मदद और निर्देश दे सकती है, लेकिन अधिकतर राज्यों के मुख्यमंत्रियों को उनके राज्यों में होने वाली अव्यवस्था के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा रहा है। क्या हम भूल गए हैं कि भारत एक संघीय व्यवस्था है, जिसमें राज्यों और राज्य सरकारों की भी जवाबदेही होती है?

सरकार की हर बात का विरोध करना लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं

लोकतंत्र में आलोचना का अधिकार है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि सरकार की हर बात का विरोध किया जाए। ऐसे विरोध की धार कुंद हो जाती है और जनता में विपक्ष की विश्वसनीयता खत्म हो जाती है, जो लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं। क्या आज कोई विपक्षी दल ऐसा है जो राष्ट्रीय स्तर पर जनता को स्वीकार्य हो? हाल में बंगाल चुनावों में कांग्रेस और वाम मोर्चा शून्य पर सिमट गए, जो राष्ट्रीय पार्टियों के घटते जनाधार का सूचक है। यदि सरकार की सही बात को सही और गलत बात को गलत कहा जाए तो जनता में विपक्ष की विश्वसनीयता बढ़ती है, लेकिन ज्यादातर विरोधी दलों ने इस मुद्दे पर वह परिपक्वता, धैर्य और सहयोग नहीं दिखाया जिसकी उनसे अपेक्षा थी। किसी ने भाजपा की वैक्सीन कह कर खिल्ली उड़ाई तो किसी ने वैक्सीन निर्यात पर बेजा प्रश्न उठाए और वह भी तब जब विदेश मंत्री जयशंकर ने स्पष्ट किया कि वैक्सीन का उत्पादन एक साझा वैश्विक प्रयास है। ऐसा नहीं हो सकता कि हम विदेश से वैक्सीन बनाने का कच्चा माल तो लें पर उनको वैक्सीन न दें। विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली और उसमें भी उन्होंने दलगत राजनीति से प्रेरित हो संसद के नए भवन का निर्माण रोकने और कृषि कानून निरस्त करने की मांग दोहराई, जिससे साफ हुआ कि उनके पत्र की मंशा कुछ और थी।

आपदा प्रबंधन में हमेशा कमियां होती हैं, चाहे किसी भी पार्टी की सरकार क्यों न हो 

आपदा प्रबंधन में हमेशा कमियां होती हैं, चाहे किसी भी पार्टी की सरकार क्यों न हो, पर उन कमियों को इंगित करने में संतुलन जरूरी है। लाॅकडाउन लगे तो मजदूरों की रोजी-रोटी और अर्थव्यवस्था में गिरावट का आरोप। न लगे तो सरकार पर लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने की तोहमत। चुनाव हों तो चुनाव आयोग हत्यारा, न हों तो सरकार लोकतंत्र की हत्या की दोषी। लोकतंत्र में सरकार को ऐसी आलोचनाओं से जूझना ही पड़ता है, लेकिन परिपक्व और सहयोगी विपक्ष, निष्पक्ष मीडिया और उचित जन-समर्थन किसी भी सरकार की बहुत बड़ी पूंजी होती है। सरकार को न केवल आपदा प्रबंधन, वरन इस पूंजी को संभालने पर भी समुचित ध्यान देना चाहिए। लोकतंत्र की विवशता है कि बिना जन-सहमति, जन-समर्थन और जन-सहभागिता के अच्छे कार्यों का भी श्रेय सरकार को नहीं मिलता और उसे चुनावों में इसका नुकसान उठाना पड़ता है।

( लेखक सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं )

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