चर्च को मस्जिद में बदलने के तुर्की सरकार के फैसले ने ईसाईयों को आहत करने का किया काम

शांति और सौहार्द मानव सभ्यता की आधारशिला है। इसे संरक्षित रखना सबकी जिम्मेदारी है। यह एकमात्र विकल्प है जो मानव जाति के पास है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 12 Jul 2020 11:46 PM (IST) Updated:Mon, 13 Jul 2020 12:30 AM (IST)
चर्च को मस्जिद में बदलने के तुर्की सरकार के फैसले ने ईसाईयों को आहत करने का किया काम
चर्च को मस्जिद में बदलने के तुर्की सरकार के फैसले ने ईसाईयों को आहत करने का किया काम

[ रामिश सिद्दीकी ]: बीते दिनों तुर्की की सर्वोच्च अदालत ने दुनिया भर में मशहूर हागिया सोफिया को संग्रहालय का दर्जा देने वाले 1934 के फैसले को रद कर दिया। जैसे ही यह फैसला सामने आया, तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने आननफानन राष्ट्र को संबोधित करते हुए यह घोषणा कर दी कि इस इमारत में 24 जुलाई को नमाज पढ़ी जाएगी। उनका संबोधन समाप्त होते ही वहां के टीवी चैनलों पर यह खबर आ गई कि संग्रहालय में अजान दी जा रही है। जल्द ही खबर दुनिया भर में सुर्खियां बन गई। लगभग 1,500 वर्ष पुराने इस स्मारक को ईसाई और मुस्लिम समाज के लोग समान तरीके से आदर देते आए हैं। इस विश्व प्रसिद्ध इमारत के इतिहास से परिचित होना आवश्यक है।

तुर्की सरकार के फैसले के बाद यूनेस्को ने हागिया सोफिया को विश्व धरोहर की सूची में शामिल कर लिया

हागिया सोफिया को ‘चर्च ऑफ द होली विजडम’ भी कहा जाता है। इसके निर्माण का आदेश बायंजटीन सम्राट जस्टिनियन ने दिया था। जो शहर इसे बनाने के लिए चुना गया उसे उस समय कॉन्स्टेनटीनोपल के नाम से जाना जाता था। आज यह इस्तांबुल के नाम से जाना जाता है। इस इमारत को विश्व के सबसे बड़े चर्च के रूप में बनाया गया। 15 वीं शताब्दी में उस्मानी शासक सुल्तान मेहमत द्वितीय के आदेश पर इसे मस्जिद में बदल दिया गया। 20वीं शताब्दी की शुरुआत तक यहां नमाज पढ़ी जाती रही, फिर 1934 में तुर्की गणराज्य के पहले राष्ट्रपति मुस्तफा कमाल पाशा ने इस इमारत को संग्रहालय में बदलने का आदेश दिया। पाशा को आधुनिक तुर्की का निर्माता भी कहा जाता है। उनकी पहचान एक सेक्युलर और प्रगतिशील शासक के रूप में होती है। पाशा के इस फैसले के बाद यूनेस्को ने इस विरासत को विश्व धरोहर की सूची में शामिल कर लिया।

संग्रहालय में परिर्वितत होने के बाद हागिया सोफिया पर्यटकों को आर्किषत करने लगा

संग्रहालय में परिर्वितत होने के बाद से ही हागिया सोफिया दुनिया भर के पर्यटकों को आर्किषत करने लगा। यह तुर्की के सबसे बड़े पर्यटक स्थलों में से एक है। एर्दोगन सरकार के मौजूदा कदम ने विश्वभर में रह रहे ईसाई समाज के लोगों को आहत किया है। ग्रीस ने तो इसे इतिहास के साथ क्रूर मजाक बताया है। यूरोपीय यूनियन ने संग्रहालय को मस्जिद में तब्दील करने के तुर्की सरकार के फैसले की आलोचना की है।

एर्दोगन सरकार के फैसले से ईसाई और इस्लामी जगत में खाई पैदा हुई

अमेरिका और रूस ने भी इस फैसले पर निराशा जताई है। इसके साथ ही यूनेस्को ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई है। आम धारणा है कि इस फैसले से ईसाई और इस्लामी जगत में एक नई खाई पैदा होगी, लेकिन एर्दोगन की सेहत पर कोई असर पड़ने के आसार नहीं। एर्दोगन अपनी राजनीति के शुरुआती दिनों में ही यह कहा करते थे कि यदि उन्हें कभी मौका मिला तो वे हागिया सोफिया को मस्जिद में परिर्वितत कर देंगे। उनकी इस कट्टरपंथी सोच को जनता के एक वर्ग की ओर से सराहा भी जाता था, जबकि वह इससे अवगत थी कि 15वीं शताब्दी में हागिया सोफिया को बलपूर्वक मस्जिद में बदला गया था। यह इस्लाम के मूल सिद्धांतों के विपरीत कार्य था।

दो धर्मों के इबादतघरों को एक-दूसरे से काफी दूरी पर बनाया जाना चाहिए ताकि विवाद न हो

इस्लामिक सिद्धांत के अनुसार दो धर्मों के इबादतघरों को एक-दूसरे से काफी दूरी पर बनाया जाना चाहिए, ताकि कोई विवाद न उठ सके। येरुशलम में मस्जिद-ए-उमर इस्लाम के इस सिद्धांत को दर्शाती है। इस्लाम के दूसरे खलीफा उमर इब्न अल-खत्ताब को येरुशलम शहर के संरक्षक सोफ्रोनियस द्वारा आमंत्रित किया गया। शहर पहुंचने पर उन्होंने चर्च ऑफ द रिसरेक्शन देखने की इच्छा व्यक्त की। जब उमर चर्च पहुंचे तो उनकी नमाज का समय हो चुका था।

सोफ्रोनियस ने कहा- चर्च के अंदर ही नमाज अदा कर लें

उन्होंने सोफ्रोनियस से ऐसी जगह बताने को कहा, जहां वह अपनी नमाज अदा कर सकें। इस पर सोफ्रोनियस ने कहा कि वह चर्च के अंदर ही नमाज अदा कर लें, लेकिन उमर ने मना कर दिया और कहा कि अगर वह आज चर्च के अंदर नमाज अदा करेंगे तो यह एक मिसाल बन जाएगी और मुसलमान इस स्थान पर मस्जिद बनाने के लिए प्रेरित हो सकते हैं। यह कह कर वह चर्च के बाहर आए। एक पत्थर उठाकर फेंका। जहां पत्थर गिरा वहीं उन्होंने नमाज अदा की। उनकी इस पहल से चर्च ऑफ द रिसरेक्शन विवादित स्थल बनने से बच गया।

एर्दोगन ने पवित्र इस्लामी सिद्धांत को दरकिनार कर दिया

बाद में अय्युबिद वंशज के साम्राज्य ने उस स्थल पर मस्जिद बनाई जहां उमर ने नमाज अदा की थी। उसे आज मस्जिद-ए-उमर के नाम से जाना जाता है। जाहिर है कि एर्दोगन ने इस पवित्र इस्लामी सिद्धांत को दरकिनार कर दिया, जबकि इस्लाम के पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने इसी सिद्धांत को बढ़ावा दिया था। उन्होंने अपने जीवनकाल में मिस्न के सेंट कैथरीन मोनेस्ट्री को एक पत्र लिखा था। इसे मुहम्मद का अहदनामे कहा जाता है। इसमें उन्होंने लिखा था कि किसी को भी ईसाइयों के इबादतघर को न तो नुकसान पहुंचाने की अनुमति है और न ही उनके इबादतघरों में रखी किसी वस्तु को लेने की। यह अहदनामा मुसलमानों के मार्गदर्शन के लिए था।

पैगंबर अपने हर कथन को अमल में लाए, लेकिन एर्दोगन बताए रास्ते पर चलने से इन्कार कर रहे हैं

1517 में तुर्क शासकों द्वारा इस अहदनामे को मिस्न से इस्तांबुल ले आया गया ताकि उसे सुरक्षित रखा जा सके, लेकिन विडंबना देखिए कि एर्दोगन ने इसी शहर में इस अहदनामे की सिरे से अनदेखी कर दी। उन्होंने एक ऐसे रास्ते को चुना जो इस्लाम की शिक्षाओं के विपरीत है। इस्लाम के पैगंबर और उनके अनुयायी अन्य धर्मों के सदस्यों के साथ सहिष्णुता, आपसी सम्मान और सह-अस्तित्व के प्रस्तावक थे। पैगंबर अपने प्रत्येक कथन को स्वयं अमल में लाए, लेकिन उनके अनुयायी बनने का दावा करने वाले एर्दोगन जैसे लोग उनके बताए रास्ते पर चलने से इन्कार कर रहे हैं।

शांति और सौहार्द मानव सभ्यता की आधारशिला है, इसे संरक्षित रखना सबकी जिम्मेदारी है

आज जब तुर्की सरकार को अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने पर अपनी ऊर्जा केंद्रित करनी चाहिए थी तब उसने धार्मिक विवाद का दरवाजा खोलने का विकल्प चुना और वह भी ऐसा दरवाजा जो इस्लामी लोकाचार के विरुद्ध है। शांति और सौहार्द मानव सभ्यता की आधारशिला है। इसे संरक्षित रखना सबकी जिम्मेदारी है। यह एकमात्र विकल्प है जो मानव जाति के पास है।

( लेखक इस्लामिक मामलों के जानकार हैं )

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