चंद्रयान-दो अभियान असफल होने पर इसरो प्रमुख के आंसू निकल पड़ना कमजोरी का प्रतीक नहीं हैैं

दुनिया में अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के बनाए यान अपना कार्यकाल पूरा करके जब अनंत की यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो भी उनका निर्माण करने वाले वैज्ञानिक फूट-फूटकर रोने लगते हैं।ldk

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sat, 21 Sep 2019 12:21 AM (IST) Updated:Sat, 21 Sep 2019 12:21 AM (IST)
चंद्रयान-दो अभियान असफल होने पर इसरो प्रमुख के आंसू निकल पड़ना कमजोरी का प्रतीक नहीं हैैं
चंद्रयान-दो अभियान असफल होने पर इसरो प्रमुख के आंसू निकल पड़ना कमजोरी का प्रतीक नहीं हैैं

[ क्षमा शर्मा ]: चंद्रयान-दो अभियान से जुड़े लैंडर विक्रम की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैैंडिंग न हो पाने और फिर ऑर्बिटर से उसका संपर्क टूट जाने बाद इसरो प्रमुख के. सिवन भाव विह्वल हो गए और अपने आंसू रोक नहीं पाए। उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गले लगाकर उनका हौसला बढ़ाया। इस तस्वीर के आते ही लोगों की प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। बहुत से लोगों ने कहा कि यह इन दिनों की सबसे अच्छी तस्वीर है, लेकिन बहुतों ने मजाक भी उड़ाया। वैज्ञानिक वर्षों तक जिस प्रोजेक्ट पर कड़ी मेहनत करते हैं उसमें सफल हो जाएं, यह जरूरी नहीं। इसलिए सिवन का रोना या वैज्ञानिकों का सिर पकड़कर बैठना बहुत स्वाभाविक प्रतिक्रियाएं थीं।

जब पीएम मोदी ने इसरो प्रमुख सिवन को गले लगाया

मनुष्य के सुख-दुख, उसके आंसू, उसकी तमाम भावनाएं जैसे इस एक चित्र में प्रकट हो गई थीं। यह तस्वीर इसलिए भी अनोखी थी कि देश के प्रधानमंत्री का इस तरह से अपने ही देश के वैज्ञानिक को गले से लगाना, उसकी पीठ थपथपाना, उसे ढाढस देना और भविष्य की आशा बंधाना मानवीय अभिभावक होने की गवाही दे रही थी। सिवन ने कहा भी कि मोदी राष्ट्रीय नेता तो हैं ही, हमारे प्रमुख भी हैं। जब देश का प्रधानमंत्री आपको गले लगा रहा हो तो आपको प्रेरणा मिलती है। उन्होंने यह भी कहा कि रॉकेट साइंस में हमेशा कुछ रहस्य बने रहते हैं। वैज्ञानिक प्रयोगों में सफलता की कोई गारंटी नहीं होती, फिर भी सफलता की आशा में नए-नए प्रयोग लगातार चलते रहते हैं। हर बार की गई कोई गलती, हमेशा एक नया सबक देती है।

सिवन के आंसू बहुत लोगों को रास नहीं आए

पता नहीं क्यों सिवन के आंसू बहुत से लोगों को रास भी नहीं आए। कुछ लोग कहने लगे कि ऐसे भी कोई रोता है। किसी ने कहा किसी मुसीबत के वक्त इस तरह से रोना बताता है कि ऐसा आदमी वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व करने लायक ही नहीं। यह भी कहा गया कि दफ्तर में या काम की जगह पर रोना गैर पेशेवराना है। जाहिर है कि बहुतों को पुरुषों का रोना पसंद नहीं आता। जैसे कि पुरुष हाड़-मांस के इंसान नहीं होते, उनकी भावनाएं नहीं होतीं, उन्हें कोई दुख नहीं सालता, उन्हें जीवन में किसी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ता।

सिवन के रोने को लोगों ने अजूबे की तरह देखा

पिछले 50 वर्षों में पुरुष की ऐसी रूढ़िवादी छवि बना दी गई है कि लोग और मीडिया उसके बाहर जाकर उसे देखना ही भूल गए हैं। आखिर पुरुष होकर क्यों कोई नहीं रो सकता? इसलिए कि जिन लोगों ने उनकी क्रूर, स्वार्थी, पत्थर दिल होने की छवि बनाई है, इससे उस छवि को नुकसान पहुंचता है। जबकि सबसे अधिक पुरुष आत्महत्या करते हैं, उन्हें बड़ी संख्या में हृदय रोग और बीमारियां होती हैं। घर-गृहस्थी की चिंता में रात-दिन खटते हैं, मगर इसका कोई श्रेय शायद ही उन्हें कभी दिया जाता है। शायद इसी कारण सिवन के रोने को लोगों ने अजूबे की तरह देखा।

आंसू कमजोरी के प्रतीक नहीं होते

इस तरह की बातों में हमारा वही सदियों पुराना सोच छिपा हुआ है। जो आज भी किसी रोने वाले पुरुष को कमजोर की तरह देखता है। उनकी नजर में रोना औरतों का काम है, क्योंकि औरतें आदमियों से कमजोर होती हैं। जब आदमी रात-दिन काम करता है तो उसे उस काम की सफलता भी चाहिए। इस सोच में कुछ बुरा भी नहीं है। ऐसे में जब एकाएक कोई हादसा हो जाए और आंसू छलक पड़ें तो इन आंसुओं का मजाक उड़ाना नृशंसता को बताता है। आखिर आंसू कमजोरी का प्रतीक क्यों हों?

...जब वैज्ञानिक फूट-फूटकर रोने लगते हैं

दुनिया में अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के बनाए यान अपना कार्यकाल पूरा करके जब अनंत की यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो भी उनका निर्माण करने वाले वैज्ञानिक फूट-फूटकर रोने लगते हैं। यह बिछड़ना ऐसा ही होता है जैसे अपने बच्चे से बिछड़ना। जिसका निर्माण किया, वर्षों तक अंतरिक्ष में पाला-पोसा और जब बिछड़ने का वक्त आया तो आंसू निकल पड़े। इसमें हंसने जैसा क्या है? या फिर आज के दौर में भी पुरुष की वही छवि चाहिए कि मर्द को दर्द नहीं होता। क्या उसकी माचो छवि ही असली छवि होती है?

वैज्ञानिक एक इंसान भी होता है

पुरुष भी दुखी-आहत होते हैं और उनके भी आंसू निकलते हैं, इसे मानने में भला इतनी तकलीफ क्यों? एक वैज्ञानिक सिर्फ वैज्ञानिक नहीं होता है, बल्कि वह एक इंसान भी होता है। सिवन के इस तरह से अफसोस प्रकट करने से यह भी पता चला कि वह चंद्रयान-दो अभियान से भावनात्मक रूप से भी कितने गहरे जुड़े थे। सच तो यह है कि जब तक किसी अभियान से आप भावनात्मक रूप से नहीं जुड़े होते, उसे कभी पूरा नहीं कर सकते। जब अमिताभ बच्चन किसी बात से दुखी होकर पर्दे पर आंसू बहाते हैं तब तो हम खूब तालियां बजाते हैं, मगर जीवन में हमें आंसू नहीं चाहिए।

( लेखिका वरिष्ठ साहित्यकार हैैं )

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