हमारी संस्कृति को समझने के लिए चालबाज चीन को 'ह्वेनसांग' की आंखों से हमें देखना होगा

हमारे लद्दाख में चीनियों की शर्मनाक हरकतों से इनके पूर्वजों की आत्माएं भी शर्मिंदा होती होंगी। चीन का वर्तमान रवैया ह्वेनसांग की भावनाओं का अपमान है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sun, 09 Aug 2020 11:37 AM (IST) Updated:Sun, 09 Aug 2020 11:37 AM (IST)
हमारी संस्कृति को समझने के लिए चालबाज चीन को 'ह्वेनसांग' की आंखों से हमें देखना होगा
हमारी संस्कृति को समझने के लिए चालबाज चीन को 'ह्वेनसांग' की आंखों से हमें देखना होगा

नई दिल्ली, जेएनएन। India China Border Tension Newsआज भारत और चीन के संबंध भले ही व्यापक तनाव में हैं, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया था तो वह भारतीय संस्कृति से बहुत प्रभावित हुआ था। यह चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल की घटना है। ह्वेनसांग ने भारतवर्ष के कई प्रमुख स्थानों की यात्रा की तथा वह लोगों के व्यवहार, भारतीय संस्कृति और परंपराओं से अवगत हुए। हमारे धर्मग्रंथों और इतिहास के प्रति भी उनकी बहुत रुचि थी और उनके पास इनका अच्छा-खासा संग्रह भी था। स्वदेश लौटने से पहले उन्होंने अपने अनुभव सम्राट हर्ष के साथ साझा किए और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।

हर्षवर्धन ने भी उन्हें सम्मानित कर विविध उपहार दिए। साथ ही उनके सकुशल अपने देश पहुंचने हेतु नाव और 20 योद्धा सैनिकों की भी उचित व्यवस्था की। सम्राट ने अपने योद्धाओं से कहा था, इस नौका में कई भारतीय धर्मग्रंथ एवं ऐतिहासिक वस्तुएं हैं जो हमारी संस्कृति का प्रतीक हैं। इनकी रक्षा करना आप सभी का कर्तव्य है। कई दिनों तक उनकी सुखद यात्रा चलती रही, लेकिन एक दिन समुद्र में भयंकर तूफान आया और नौका डोलने लगी। सभी भयभीत हो गए। घबराकर प्रधान नाविक ने कहा, -नौका में भार अधिक हो गया है। शीघ्र ही ये पुस्तकें एवं ऐतिहासिक वस्तुओं को समुद्र में फेंक अपने प्राणों की रक्षा कीजिए।- यह सुनकर सैनिकों के नायक ने कहा,- यह हमारा अग्निपरीक्षा काल है। इन सभी वस्तुओं के रक्षण द्वारा भारतीय संस्कृति की रक्षा करना हमारा प्रधान कर्तव्य है। इन्हीं ग्रंथों से तो लोगों को हमारी सभ्यता और परंपराओं का ज्ञान होगा। इसकी रक्षा के लिए हम अपने प्राण भी समर्पित कर सकते हैं।- अपने नायक के ये वचन सुनते ही कई योद्धाओं ने एक साथ पानी में छलांग लगा दी। अकस्मात हुई इस घटना से ह्वेनसांग हतप्रभ हो गए। संस्कृति की रक्षा हेतु भारतीय वीरों के त्याग और बलिदान को देख उनकी आंखों से अविरल अश्रुधार बहने लगी।

यह मात्र भावविह्वल कर देने वाली कथा भर ही नहीं है, बल्कि यह हमारी प्राचीन संस्कृति और संस्कारों की प्रतिनिधि कहानी के रूप में भी उभरती है। यह इस तथ्य को और सुदृढ़ करती है कि जब-जब संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए अपने जीवन को भी दांव पर लगा देने का अवसर आया है, तब-तब हमारे समर्पित वीरों ने बिना किसी हिचकिचाहट के संस्कृति को ही चुना। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि इस वीर गाथा के साक्षी उस देश के यात्री ह्वेनसांग के आंसू हैं जो देश यानी चीन आज हम पर आंखें तरेरने का दुस्साहस कर रहा है। हम भारतीय अब तक अपने उन संस्कारों को नहीं भूले हैं। हमने हर बार दुश्मन देश से आए लोगों का खुलकर स्वागत किया है और किसी भी वैमनस्यता को पीछे रख, सदैव ही प्रेमपूर्वक दोस्ती का हाथ बढ़ाया है।

उपरोक्त पूरी घटना यह भी सिद्ध करती है कि हमारे देश में अतिथियों को मान देने की परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज तक कायम है। माना कि उस समय हमारा देश सोने की चिड़िया था और घर आए अतिथि को हम बेशकीमती उपहारों से लादकर ही विदा करते थे, लेकिन अतिथि सत्कार का यह भाव आज भी हमारी संस्कृति का उतना ही अहम हिस्सा है। ह्वेनसांग ने अपने देश जाकर नम आंखों से इन तमाम पुस्तकों का अनुवाद किया। चीन ने ह्वेनसांग के आंसुओं से कुछ नहीं सीखा, तभी तो वह बंजर जमीन के टुकड़े के लिए आंखें तरेरने लगा है। उसे सीमा के विस्तार में दिलचस्पी है, भले ही इस प्रक्रिया में उनके दिल सिकुड़ते चले जाएं।

हमारे लद्दाख में चीनियों की शर्मनाक हरकतों से इनके पूर्वजों की आत्माएं भी शर्मिंदा होती होंगी। चीन का वर्तमान रवैया, ह्वेनसांग की भावनाओं का अपमान है, उस संवेदनशील हृदय की अवहेलना है। हमारी संस्कृति को समझने के लिए चीन को ह्वेनसांग की आंखों से हमें देखना होगा। उनसे बहे आंसुओं से सीखना होगा!

(आइचौक डॉट इन से संपादित अंश, साभार)

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