स्वास्थ्य ढांचे में बुनियादी बदलाव का वक्त: एकीकृत स्वास्थ्य नीति यानी वन नेशन वन हेल्थ सिस्टम अपनाने का  सही वक्त

कोरोना महामारी की दूसरी लहर में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच जिस तरह का टकराव सामने आ रहा है उसे देखते हुए भी अब एकीकृत स्वास्थ्य नीति यानी वन नेशन वन हेल्थ सिस्टम अपनाने का यह सबसे अच्छा अवसर है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 20 Apr 2021 01:00 AM (IST) Updated:Tue, 20 Apr 2021 01:00 AM (IST)
स्वास्थ्य ढांचे में बुनियादी बदलाव का वक्त: एकीकृत स्वास्थ्य नीति यानी वन नेशन वन हेल्थ सिस्टम अपनाने का  सही वक्त
स्वास्थ्य जगत की बुनियादी जरूरत: वन नेशन, वन हेल्थ पॉलिसी।

[ डॉ. अजय खेमरिया ]: कोरोना महामारी जैसे संकट के सामने विकसित और धनी राष्ट्र भी टिक नहीं पाए हैं। ऐसे में भारत की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर उठने वाले सवाल बिल्कुल भी अस्वाभाविक या अप्रिय नहीं होने चाहिए। हमारा मौजूदा स्वास्थ्य ढांचा जो प्राथमिक स्वस्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज स्तर का है, वह करीब 77 साल पुराना है। सवाल है कि क्या यह हमारी आवश्यकताओं को पूर्ण कर पाया है? कोरोना के आकस्मिक आक्रमण से परे जा कर बात करें, तब भी हमारा ढांचा न समावेशी है, न पर्याप्त। आखिर गहन संकट के इस दौर का सामना करते हुए हमें ऐसा क्या करना होगा, ताकि सर्वजन आरोग्य के कल्याणकारी लक्ष्य तक हम पहुंच सकें? देखा जाए तो मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में 145 नए मेडिकल कॉलेजों को अनुमति दी है।

2014 में एमबीबीएस की 53,348 सीटें थीं, अब बढ़कर 84,649 हो गईं 

साल 1950 से 2014 के मध्य देश में औसतन छह मेडिकल कॉलेज प्रतिवर्ष निर्मित हुए, वहीं मोदी सरकार के पांच साल में यह आंकड़ा 29 मेडिकल कॉलेज प्रतिवर्ष आता है। 2014 में देश के सभी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की कुल 53,348 सीटें थीं, जिनकी संख्या अब 84,649 हो गई है। पीजी यानी पोस्ट ग्रेजुएट सीटों की संख्या 2014 के 23 हजार के मुकाबले आज 44 हजार है। 16 नए एम्स श्रेणी के कॉलेज भी 2025 तक आरंभ होने जा रहे हैं। आज मेडिकल कॉलेजों में अधिकतम दाखिले की संख्या 150 से बढ़ाकर 250 करने समेत आधारभूत संरचनाओं एवं फैकल्टी के स्तर पर भी तमाम सुविधाजनक प्रविधान अमल में लाए गए हैं। नया कानून राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एमएनसी) के रूप में लाया गया है। होम्योपैथी, आयुष, प्राकृतिक चिकित्सा प्रणालियों के साथ नर्सिंग एवं संबद्ध सेवाओं को भी विनियमित करने के साथ हर जिले में एक सुपर स्पेशियलटी अस्पताल बनाने की पहल हुई है। हालांकि नीतिगत रूप में इन प्रयासों के नतीजे आने में समय लगेगा, क्योंकि स्वास्थ्य समवर्ती सूची का विषय होने के चलते नोडल एजेंसियां तो राज्यों के नियंत्रण में ही हैं। यह तथ्य है कि राज्य अपनी जवाबदेही और प्राथमिकता साबित करने में बुरी तरह नाकाम रहे हैं।

स्वास्थ्य जगत की बुनियादी जरूरत: वन नेशन, वन हेल्थ पॉलिसी 

भारतीय स्वास्थ्य जगत के लिए सबसे बुनियादी आवश्यकता चार मामलों पर काम करने की है। सबसे पहले हमें एक नेशनल हेल्थ सिस्टम की शुरुआत करनी होगी। इसके लिए वन नेशन, वन हेल्थ पॉलिसी पर आगे बढ़ना होगा। भविष्य का पूरा फोकस स्वास्थ्य शिक्षा, प्रशिक्षण, रोजगार और पीजी डिग्री पर करना होगा। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में शहरी अस्पताल भीड़ से भरे दिख रहे हैं, क्योंकि ग्रामीण-कस्बाई क्षेत्रों में न तो विशेषज्ञ डॉक्टर हैं और न ही स्वास्थ्य संसाधन। इसका बेहतर समाधान है-हर जिले में पीजी सीट वाले मेडिकल कॉलेजों की उपलब्धता सुनिश्चित करना, ताकि स्नातक चिकित्सक उन्हीं इलाकों में जम सकें, जो अभी बड़े अस्पतालों के चक्कर में जिलों में नहीं रुकना चाहते। इससे वहां आर्थिक विकास भी होगा, क्योंकि स्वस्थ तन-मन का सीधा संबंध विकास से है। मेडिकल शिक्षा को बुनियादी शिक्षण से जोड़ना भी आवश्यक हो गया है, जैसा कि नई शिक्षा नीति में इसे रेखांकित भी किया गया है। लोक स्वास्थ्य के विचार को आरंभिक शिक्षा के साथ जोड़ा जाना चाहिए, ताकि जागरूकता आरोग्य का कारक बनकर व्यवस्था के बोझ को कम करे।

देश में एकीकृत स्वास्थ्य प्रशिक्षण का कोई तंत्र नहीं

अभी हमारे देश में एकीकृत स्वास्थ्य प्रशिक्षण का कोई तंत्र नहीं है। यानी सेहतमंद रहने के विभिन्न गैर चिकित्सकीय आयामों का कोई प्रशिक्षण हमारे यहां नहीं होता। इसके अलावा पैरा मेडिकल एवं र्नंिसग क्षेत्र के लाखों र्कािमकों को प्रशिक्षण देकर प्राथमिक उपचार उपलब्ध कराने पर विचार करने का यह सबसे उपयुक्त समय है। मेडिकल क्षेत्र में रोजगार का कोई व्यवस्थित तंत्र देश में अभी तक विकसित नहीं हुआ है। डॉक्टर, अस्पताल और मेडिकल स्टोर के अलावा कुछ भी विनियमित नहीं है। हेल्थ सेक्टर देश में फिलहाल 10 फीसद भी रोजगार नहीं देता, जबकि अमेरिका, यूरोप, ब्रिटेन में यह 25 फीसद तक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार देता है। इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर स्टार्टअप क्रांति की जरूरत है।

एकीकृत स्वास्थ्य नीति: जन स्वास्थ्य के ढांचे को नए सिरे से सुगठित करना होगा

एकीकृत स्वास्थ्य नीति को अमल में लाने के लिए जन स्वास्थ्य के ढांचे को नए सिरे से सुगठित किया जाना चाहिए। पोषण (महिला एवं बाल विकास), मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय, लोक स्वास्थ्य, जल जीवन मिशन और समाज कल्याण जैसे महकमों को एक में समाहित किया जाना चाहिए। इनके अंर्तिवरोधों और पृथक कार्यविधि के चलते सरकारी क्षेत्र में वांछित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं। इससे लोक स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारी प्रयास एकरूपता के साथ आगे बढ़ सकेंगे। एकीकृत स्वास्थ्य नीति के तहत अखिल भारतीय चिकित्सा संवर्ग का गठन किया जाना भी आवश्यक है। देश के अलग-अलग चिकित्सा संबंधी महकमे लालफीताशाही का सबब बने हुए हैं। मसलन मेडिकल शिक्षा और लोक स्वास्थ्य राज्यों में दो अलग-अलग विभाग हैं। इन्हेंं एक ही प्रशासनिक नियंत्रण में लाकर मानव संसाधन का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है। देश भर के एक लाख से ज्यादा डिप्लोमा चिकित्सकों को भी ब्रिज कोर्स के माध्यम से विशेषज्ञ का दर्जा देकर न केवल विशेषज्ञ, बल्कि मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी की समस्या को दूर किया जा सकता है। देश के मेडिकल क्षेत्र में अफसरशाही के दखल को भी कम करने का यह सबसे उपयुक्त समय है।

वन नेशन वन हेल्थ सिस्टम अपनाने का यह सबसे अच्छा अवसर

कुल मिलाकर कोरोना महामारी की दूसरी लहर में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच जिस तरह का टकराव सामने आ रहा है, उसे देखते हुए भी अब एकीकृत स्वास्थ्य नीति यानी वन नेशन वन हेल्थ सिस्टम अपनाने का यह सबसे अच्छा अवसर है।

( लेखक लोकनीति विषयों के विशेषज्ञ हैं )

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