बुनियादी विकास कार्यक्रमों के जरिये जिनको रोजगार मिल रहा है, वे अर्थव्यवस्था में मांगकारी असर डालेंगे

जब सरकार समाज के हर वर्ग की जरूरत को मांग के रूप में उत्पन्न करने में सफल हो जाएगी तो वह स्थिति अर्थव्यवस्था के ठहराव को त्वरित रूप से बदलने में काफी मददगार होगी। फिलहाल देखना होगा कि भविष्य में उपभोक्ता बाजार कैसी प्रतिक्रिया करता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 23 Oct 2020 02:04 PM (IST) Updated:Fri, 23 Oct 2020 02:04 PM (IST)
बुनियादी विकास कार्यक्रमों के जरिये जिनको रोजगार मिल रहा है, वे अर्थव्यवस्था में मांगकारी असर डालेंगे
भविष्य में उपभोक्ता बाजार कैसी प्रतिक्रिया करता है।

मनोहर मनोज। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को केंद्रीय कर्मचारियों के लिए जो त्योहारी बोनस देने की जो घोषणा हुई है, उससे सरकार के खजाने पर 3,737 करोड़ रुपये का बोझ जरूर पड़ेगा, लेकिन इससे अर्थव्यवस्था में व्यापक बूस्टअप होगा। इसके पहले भी केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों को जो 10,000 रुपये का फेस्टिवल एडवांस दिया है, इससे भी करीब 73,000 करोड़ रुपये की बाजार में मांग सृजित होने की उम्मीद है। इस तरह इन दोनों उपायों से त्योहारी मौसम के दौरान अर्थव्यवस्था को दो लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का मार्केट बूस्टअप मिल सकता है। फिलहाल देखना होगा कि भविष्य में उपभोक्ता बाजार कैसी प्रतिक्रिया करता है।

दरअसल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) द्वारा किए गए एक आकलन ने कोरोना के मद्देनजर भारत में व्याप्त आर्थिक निराशावाद को गहरा कर दिया है। आइएमएफ ने भारत के चालू वर्ष की आर्थिक विकास दर को लेकर पिछले जून में चार फीसद गिरावट का जो अनुमान लगाया था, उसे अब 10 फीसद तक बढ़ने की बात कही गई है। भारत की अर्थव्यवस्था का जो यह बुरा हाल हमें दिखा है, उसके पीछे देश में बिना व्यापक विचार मंथन, बेहतर पूर्वानुमान तथा दूरदृष्टि के लाया गया संपूर्ण लॉकडाउन भी बहुत हद तक जिम्मेदार है।

दरअसल जब हम विगत की गलतियों को राजनीतिक नफा नुकसान के तराजू पर तौलते हैं, तब उन गलतियों से सीख न लेकर हम या तो अहंकार में डूब जाते हैं या उन गलतियों को बार बार दोहराने का दुस्साहस करते हैं। सवाल यह है कि कोरोना काल के करीब आधे वर्ष बीत जाने के उपरांत करीब करीब वास्तविकताओं में तब्दील हो चुका अर्थव्यवस्था का यह चौतरफा संकट क्या किसी संभावित समाधान की तरफ भी बढ़ सकता है? सरकार गंभीरतापूर्वक और बिना उत्साह अतिरेक का प्रदर्शन किए आर्थिक संकटों की इन वास्तविकताओं को समाधान की व्यावहारिकताओं में तब्दील कर सकती है। इसके लिए सरकार को बिना किसी राजनीतिक औचित्य और अनौचित्य भाव को प्रदर्शित किए आíथक कायाकल्प के लिए चरणबद्ध तरीके से प्रयास करना चाहिए। साथ ही उसे अपने बुनियादी आर्थिक कर्तव्यों को भी बिना किसी संशोधन के जारी रखना चाहिए।

इस क्रम में सरकार को अभी दीर्घकालीन विकास प्रक्रिया के कारकों मसलन बुनियादी संरचना के निर्माण, निवेश प्रोत्साहन, उत्पादन व रोजगार के प्रोत्साहन तत्वों को ज्यादा प्राथमिकता देने के बजाय मांग बढ़ाने के चौतरफा प्रयास करने चाहिए। वास्तव में अभी देश में लॉकडाउन के पूर्व उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं का भारी स्टॉक मौजूद है। लॉकडाउन के चरणबद्ध तरीके से हटाए जाने के बावजूद आज भी देश की समूची आर्थिक व्यापारिक गतिविधि कुछ खास क्षेत्रों को छोड़कर अपरिवíतत है। देश की करीब तीन करोड़ दुकानों व अन्य वस्तु सेवा केंद्रों पर जमा स्टॉक का निष्पादन बहुत कम हुआ है। इसमें एक तो पूंजी फंसी पड़ी है, साथ ही पुरानी पूंजी फंसी होने की वजह से नई कर्ज की मांग या तो बेहद सुस्त है या न के बराबर है। रेपो दर अपने निम्नतम स्तर पर होने और कर्जे की दर बेहद कम होने के बावजूद निवेशक सुस्त हैं।

इस परिस्थिति को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देर से ही सही, परंतु ठीक से समझ लिया है। उन्होंने उपभोग और मांग बढ़ाने को लेकर कुछ नई घोषणाएं की हैं। परंतु उनकी घोषणा केवल सरकारी कर्मचारियों तक सीमित थी, जिन्हें दस हजार रुपये तक का एडवांस और बिना ब्याज के उपभोग ऋण की सहूलियत प्रदान की गई। इस पहल को वे और भी विस्तार दे सकती थीं। मसलन देश में करीब आठ करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड धारक हैं, जिन्हें बिना ब्याज के उपभोग कार्य के लिए बैंक लोन दिया जा सकता था। इसी तरह देश में पीएफ कार्ड धारक कामगारों की संख्या करीब साढ़े चार करोड़ है। इन कार्ड धारकों को बैंकों से बिना ब्याज के सुरक्षित उपभोग ऋण दिया जा सकता है। निजी क्षेत्र में कार्यरत कामगारों को भी उपभोक्ता लोन देने के बारे में सोचा जा सकता है।

जब स्टॉक में पड़ी वस्तुओं व सेवाओं के निष्पादन की प्रक्रिया एक बार शुरू हो जाएगी तो दो-तीन महीने के भीतर अर्थव्यवस्था में दोबारा उत्पादन, निवेश समेत रोजगार का चक्र अपने आप चल पड़ेगा। इसके उपरांत दीर्घकालीन विकास की सतत पक्रिया को स्वयंमेव पंख लग जाएंगे। पहले चरण में फौरी जरूरत की प्रक्रिया शुरू करने के बाद, दूसरे चरण में सरकार को मध्यम अवधि की आíथक जरूरतों, जिसमें लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देने की बात की गई थी, उसे प्राथमिकता देनी चाहिए।

यदि 2021 में कोरोना का कहर समाप्त हो जाता है या वैक्सीन लाकर इसके कहर को कम किया जाता है तो आर्थिक गतिविधियों तेज होंगी और बहुत संभव है कि विकास दर 10 फीसद तक पहुंच जाए। उस दौरान देश की अर्थव्यवस्था में कृषि पर आश्रित जनसंख्या का अन्य उत्पादक क्षेत्रों की तरफ विस्थापन के जरिये आर्थिक विकास पर गुणात्मक प्रभाव डाला जा सकता है। यह सही है कि बुनियादी विकास कार्यक्रमों के जरिये जिनको रोजगार मिल रहा है, वे अर्थव्यवस्था में मांगकारी असर डालेंगे, परंतु समूचे देश में जब तक सामूहिक मांग की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी, तब तक आर्थिक शिथिलता समाप्त नहीं होगी। ऐसे में त्योहारों का सीजन मौजूदा आर्थिक स्थिति में सुधार की राह में बड़ी भूमिका निभा सकता है। - ईआरसी।

[वरिष्ठ पत्रकार]

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