संकट काल की सफलताएं: कोरोना के चलते तमाम बंदिशों के बावजूद देश ने आर्थिक चुनौतियों का डटकर किया सामना

भारत ने बांग्लादेश से सहयोग का हाथ आगे बढ़ाया है और आशा है कि इसका अन्य देशों द्वारा स्वागत किया जाएगा। क्षेत्रीय सद्भाव आज के सामाजिक और भौगोलिक परिवेश में कहीं अधिक महत्व रखता है। इस मुहिम की सफलता के लिए लगातार काम करना होगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sat, 10 Apr 2021 02:18 AM (IST) Updated:Sat, 10 Apr 2021 02:52 AM (IST)
संकट काल की सफलताएं: कोरोना के चलते तमाम बंदिशों के बावजूद देश ने आर्थिक चुनौतियों का डटकर किया सामना
शिक्षा के क्षेत्र में ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था से गाड़ी को पटरी पर लाने की कोशिश।

[ गिरीश्वर मिश्र ]: दक्षिण एशिया के विभिन्न देश अपनी निजी समस्याओं में जिस तरह उलझे हुए हैं, उससे इस क्षेत्र में राजनीतिक स्थिरता और विकास के मोर्चों पर मुश्किलें बढ़ी हैं। कोरोना वायरस से उपजी कोविड महामारी के मुश्किल दौर में इन सभी देशों की आर्थिक गतिविधियां भी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। ऐसे में जब क्षेत्रीय राजनीति और वैश्विक भागीदारी की दृष्टि से पूरे क्षेत्र पर संकट के बादल गहरा रहे थे, तब भारत ने संयम के साथ स्वास्थ्य, अर्थ, शिक्षा, राजनीतिक प्रक्रिया और व्यवस्था के मामलों में साहस और धैर्य से काम लिया। इसकी लगातार कोशिश की जाती रही कि देश की आधार-संरचना की व्यवस्था न चरमराए। इसमें सफलता भी मिली। इसके बावजूद कि आर्थिक चुनौती बड़ी थी, देश ने उसका डटकर सामना किया और संतुलन बनाने की कोशिश की। इसी तरह न्याय, स्वास्थ्य और परिवहन जैसी आम नागरिक सेवाओं पर बड़ा दबाव था।

शिक्षा के क्षेत्र में ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था से गाड़ी को पटरी पर लाने की कोशिश

शिक्षा के क्षेत्र में अध्ययन-अध्यापन की भारी चुनौती खड़ी हुई। धीरे-धीरे इन्हेंं शुरू किया गया और इंटरनेट की सहायता से ऑनलाइन पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था करते हुए गाड़ी को पटरी पर लाने की कोशिश की गई। शिक्षा और परीक्षा, दोनों को बड़े पैमाने पर ऑनलाइन ढंग से करने के लिए जिस व्यवस्था और कौशल की जरूरत थी, उसके लिए पहले से तैयारी तो नहीं थी, परंतु संस्थाओं और सरकारों ने उसे मुस्तैदी से लिया और केंद्रीय सरकार ने अनेक उपक्रम शुरू किए, जिससे विद्यार्थियों और छात्रों को राहत मिली। यह व्यवस्था वास्तविक कक्षा का विकल्प तो नहीं रही, पर खालीपन को भरने और नए कौशलों को सीखने का अवसर देने वाली साबित हुई।

कोरोना काल में काम की दुनिया बदली, घर में एक साथ कार्यालय और विद्यालय

कोरोना काल में काम की दुनिया भी बदली और यथासंभव घर से काम करने की व्यवस्था को स्वीकृति मिली। घर और कार्यालय एक-दूसरे का अतिक्रमण करने लगे। यदि पति-पत्नी कार्यरत हों और बच्चा पढ़ रहा हो तो घर में एक साथ दो कार्यालय और एक विद्यालय का अद्भुत दृश्य उपस्थित होने लगा। लोगों ने इस तरह के बदलाव को मजबूरी में ही सही, स्वीकार किया और जीवन की गाड़ी चलाने की कोशिश की। सामाजिक जीवन को स्थिर बनाए रखने और चुनाव जैसी आंतरिक राजनीति की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को भी बहुत हद तक सफलतापूर्वक संचालित किया गया। यह उल्लेखनीय है कि कोरोना की दूसरी लहर के बीच पांच राज्यों की चुनाव प्रक्रिया आगे बढ़ती रही। इस सबसे यही प्रकट हुआ कि संकट कैसा भी हो, उससे पार पाने की क्षमता इस देश में है। यह क्षमता बनाए रखनी होगी, क्योंकि कोरोना संक्रमण फिर तेजी से बढ़ रहा है।

भारत ने स्वास्थ्य और आर्थिक मामलों में अपनी बात वैश्विक मंचों पर गंभीरता से रखी

राजनयिक दृष्टि से यह भी महत्वपूर्ण रहा कि वैश्विक नेताओं के साथ सार्थक विचार-विमर्श चलता रहा। चीन के साथ सीमा पर लंबे खिंचे विवाद की मुश्किल को बड़े धैर्य और सावधानी के साथ सुलझाने की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई। उम्मीद की जाती है कि लद्दाख में टकराव वाले अन्य क्षेत्रों से सेनाओं की वापसी पर जल्द ही सहमति बनेगी। इसी तरह नया संगठन क्वाड भी सशक्त रूप में आकार लेगा। वैश्विक मंचों पर भारत ने स्वास्थ्य और आर्थिक मामलों में अपनी बात गंभीरता से रखी और उसे महत्व भी दिया गया। यही नहीं कोरोना के गुणवत्ता वाले टीके का अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य मानकों के अनुरूप तेजी से विकास कर भारत ने सबके सामने ऐतिहासिक मिसाल कायम की। इस पूरे प्रयास में प्रधानमंत्री ने व्यक्तिगत रुचि लेकर टीका कार्यक्रम को गति प्रदान की। उन्होंने खुद टीका लगवाकर उस हिचक को तोड़ने का काम किया, जो तमाम लोगों के मन में टीके को लेकर थी।

कोविड महामारी की लंबी अवधि के लॉकडाउन के दौर को सबने मिलकर किया सामना

कोविड महामारी की लंबी अवधि में लॉकडाउन के दौर आए और सबने मिलकर सामना किया। सरकार जनता के साथ लगातार संपर्क में रही और प्रधानमंत्री ने देश को कई बार संबोधित किया। उन्होंने समय-समय पर मुख्यमंत्रियों के साथ भी बैठक की। महामारी का दंश सब कोई झेल रहा है। इसके बाद भी काम-धंधे, औद्योगिक उत्पादन, शिक्षा और प्रतिरक्षा आदि के मोर्चे पर ठहराव से निपटने की मुहिम चलती रही। इस बीच व्यापक हित के लिए अनेक जनोपयोगी योजनाओं को भी लागू किया गया। कोरोना के चलते तमाम बंदिशों के बावजूद देश धीमे-धीमे ही सही, कदम आगे बढ़ाता रहा। समय की मांग है कि ये कदम और तेज होने चाहिए।

भारत ने आगे बढ़कर करोना का असरदार टीका अनेक देशों को उपलब्ध कराया

यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि वैश्विक हित में भारत ने आगे बढ़कर करोना का असरदार टीका अनेक देशों को उपलब्ध कराया, विशेष रूप से पड़ोसी देशों को। यह पहल उदारता, सद्भावना और जिम्मेदारी के साथ सहयोग की मिसाल बनकर एक नए राजनयिक वातावरण का सृजन करने वाली घटना हो गई। इसके द्वारा भारत ने अपने सभी पड़ोसी देशों को यह सकारात्मक संदेश दिया कि आपसी सहयोग से ही प्रगति और उन्नति की राह निकलती है और इसका कोई दूसरा विकल्प नहीं है।

पड़ोसी देशों को विश्वास में लेकर ही आगे बढ़ सकते हैं

पिछले दिनों बांग्लादेश की यात्रा के जरिये प्रधानमंत्री ने क्षेत्रीय सहयोग और विनिमय का मार्ग प्रशस्त किया। इतिहास देखें तो पता चलता है कि सीमा, जल और वाणिज्य के तमाम ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हेंं लेकर दोनों देशों के रिश्तों में व्यवधान खड़े होते रहे हैं। भौगोलिक स्थिति कुछ इस तरह की है कि हमें इस पर लगातार नजर रखनी होगी। कई बार बड़े खट्टे अनुभव भी हुए हैं और मैत्री को धक्का भी लगा है, पर पड़ोसी बदले नहीं जा सकते। इन्हेंं विश्वास में लेकर ही आगे बढ़ने वाली गति संभव हो पाती है। इस सबको ध्यान में रखकर प्रधानमंत्री ने बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान के स्मरण के अवसर को यादगार बना दिया। उन्हेंं गांधी शांति पुरस्कार से नवाज कर और बांग्लादेश की परियोजनाओं को समर्थन देकर उन्होंने कई भ्रमों को तो दूर किया ही, सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण काम किया।

पीएम मोदी का बांग्लादेश दौरा दोनों देशों के बीच सार्थक संवाद और संचार का अवसर बना

बांग्लादेश के मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना तो स्वाभाविक है, पर कभी अखंड भारत की अब पराई हो चुकी धरती पर पहुंचना एक दुर्लभ अवसर था। उनके इस कदम से बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय का मनोबल सुदृढ़ हुआ होगा। इन प्रयासों से दोनों देशों के बीच सार्थक संवाद और संचार का अवसर बना है। भारत ने सहयोग का हाथ आगे बढ़ाया है और आशा है कि इसका अन्य देशों द्वारा स्वागत किया जाएगा। क्षेत्रीय सद्भाव आज के सामाजिक और भौगोलिक परिवेश में कहीं अधिक महत्व रखता है। इस मुहिम की सफलता के लिए लगातार काम करना होगा।

( लेखक प्रोफेसर एवं कुलपति रहे हैं )

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