अड़ंगेबाजी छोड़ें राज्य सरकारें: आवागमन पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार राज्यों को नहीं होना चाहिए

मकान नई गाड़ी और अन्य महंगी वस्तुओं की खरीद टाली जा रही है। ऐसे में कहना कठिन है कि यह दौर कितना लंबा चलेगा?

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 07 Jun 2020 12:02 AM (IST) Updated:Sun, 07 Jun 2020 07:20 AM (IST)
अड़ंगेबाजी छोड़ें राज्य सरकारें: आवागमन पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार राज्यों को नहीं होना चाहिए
अड़ंगेबाजी छोड़ें राज्य सरकारें: आवागमन पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार राज्यों को नहीं होना चाहिए

[ संजय गुप्त ]: केंद्र सरकार की ओर से देश को लॉकडाउन से बाहर निकालने के लिए अनलॉक संबंधी जो दिशानिर्देश जारी किए गए उनका सभी को बेसब्री से इंतजार था, क्योंकि कोरोना वायरस से उपजी महामारी कोविड-19 के चलते जो तमाम पाबंदियां लगाई गई थीं उनके चलते कारोबारी गतिविधियां ठप पड़ गई थीं। इसके कारण बहुत र्आिथक नुकसान हो रहा था। हालांकि सरकार ने कारोबारी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए एक पैकेज घोषित किया है, लेकिन उसका तात्कालिक लाभ मिलता नहीं दिख रहा है। माना जा रहा है कि जब रिटेल कारोबार तेजी पकड़ेगा तभी उद्योग-व्यापार आगे बढ़ेगा। अभी मांग के अभाव में जो उद्योग चालू भी हुए हैं वे आधी-अधूरी क्षमता से ही कार्य कर रहे हैं। रिटेल की कम मांग का कारण मंदी का माहौल है। लोग बेहद जरूरी सामान की ही खरीदारी कर रहे हैं। मकान, नई गाड़ी और अन्य महंगी वस्तुओं की खरीद टाली जा रही है। ऐसे में कहना कठिन है कि यह दौर कितना लंबा चलेगा?

कारोबार को गति देने और तेजी से फैल रहा कोरोना वायरस को रोकने की जरूरत है

कारोबार को गति देने की कोशिश के साथ इस पर भी गौर करने की जरूरत है कि कोरोना वायरस से संक्रमित होने वालों की तेजी से बढ़ती संख्या को कैसे थामा जाए? कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या जिस तेजी से एक लाख से दो लाख पहुंची उससे चिंता बढ़ी है। राहत की बात यह है कि संक्रमित लोगों के ठीक होने की दर बढ़ रही है और अब तक एक लाख से अधिक लोग ठीक भी हो चुके हैं। इसके बाद भी शायद अगले एक-डेढ़ महीने कोरोना संक्रमण में वृद्धि जारी रहे। इसका एक कारण अनलॉक की प्रक्रिया के दौरान आवाजाही का बढ़ना भी है।

शारीरिक दूरी के नियम का पालन करने और मास्क के इस्तेमाल में लापरवाही

हालांकि यदि लोग सावधानी बरतें तो संक्रमण के खतरे को कम किया जा सकता है, लेकिन यह देखने में आ रहा है कि शारीरिक दूरी के नियम का पालन करने के साथ-साथ मास्क के इस्तेमाल में भी लापरवाही का परिचय दिया जा रहा है। यह परिचय दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में भी दिया जा रहा है, जहां कोरोना मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। बड़े शहरों में एक तो आबादी का घनत्व अधिक है और दूसरे काम-धंधे के सिलसिले में आवाजाही भी बढ़ रही है।

घनी आबादी वाले इलाकों में कोरोना संक्रमण का खतरा अधिक 

यह एक सच्चाई है कि अगर आवाजाही बढ़ेगी तो घनी आबादी वाले इलाकों में संक्रमण का खतरा भी बढ़ेगा। इसकी एक वजह यह भी है कि ऐसे इलाकों में अनियोजित विकास के चलते गंदगी अधिक होती है। विडंबना यह है कि हमारे सारे बड़े शहर घनी आबादी वाले हैं। ऐसे शहरों में संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा अधिक होता ही है।

लॉकडाउन के जरिये देश कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकने में सफल रहा

यह गनीमत है कि लॉकडाउन के जरिये देश कोरोना संक्रमण के फैलाव को एक बड़ी हद तक रोकने में सफल रहा, लेकिन अब जैसे-जैसे जांच बढ़ रही है उसी अनुपात में कोविड-19 के मरीज बढ़ रहे हैं। सरकारी आंकड़ों में उसे ही कोविड-19 से ग्रस्त बताया जाता है जिसकी जांच हुई हो और जो संक्रमित पाया गया हो। कोरोना के बढ़ते मरीज चिंता का विषय अवश्य हैं, लेकिन अप्रत्याशित नहीं। अन्य देशों में भी ऐसा ही हुआ है। कोरोना संक्रमण के भय से हाथ पर हाथ रखकर बैठने से काम चलने वाला नहीं है।

कोरोना के साये में जीवन को संचालित करने की जरूरत है 

कोरोना के साये में जीवन को संचालित करने की जरूरत है। कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या से डरने नहीं, बल्कि सावधानी बरतने की आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति से ही समस्याओं का समाधान होगा। इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि यदि कोरोना मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं तो वे तेजी से ठीक भी हो रहे हैं। जिन देशों ने ज्यादा टेस्ट किए है वहां कोविड-19 के मरीज भी अधिक सामने आना स्वाभाविक है। चूंकि अमेरिका में सबसे अधिक जांच हुई इसलिए वहां पर मरीजों की संख्या भी अधिक है।

देश में कोरोना संक्रमण सामुदायिक स्तर पर पहुंच गया: स्वास्थ्य विशेषज्ञ 

अपने देश में अमेरिका, स्पेन, इटली की तरह से बड़ी संख्या में लोगों के टेस्ट तो नहीं हुए, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि पर्याप्त संख्या में टेस्ट नहीं हो रहे हैं। यह समझने की जरूरत है कि भारत सरीखे विशाल आबादी और कमजोर स्वास्थ्य ढांचे वाले देश में केवल उनका ही टेस्ट किया जा सकता है जिनमें संक्रमण का लक्षण हो या फिर जिनके बारे में यह संदेह हो कि वे संक्रमित हो सकते हैं। मुश्किल यह है कि तमाम लोग ऐसे भी हैं जिनमें संक्रमण के कोई लक्षण नहीं दिखते। कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि कोरोना संक्रमण सामुदायिक स्तर पर पहुंच गया है। वस्तुस्थिति जो भी हो, यह चिंतित करने वाली बात है कि कुछ राज्य अनलॉक की प्रक्रिया का पालन अपनी-अपनी तरह से करने में लगे हुए हैं।

कोरोना के चलते आवाजाही रोकने से लोगों को परेशानी और कारोबारी गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं

यह ठीक नहीं कि कोरोना संक्रमण के भय से कई राज्य दूसरे राज्यों से आवाजाही को रोक रहे हैं। इससे न केवल लोगों को परेशानी हो रही, बल्कि कारोबारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने में भी मुश्किल पेश आ रही है। आवाजाही में सबसे अधिक परेशानी दिल्ली-एनसीआर के लोग उठा रहे हैं। यहां कभी दिल्ली सरकार आवाजाही को नियंत्रित करती है, कभी उत्तर प्रदेश और कभी हरियाणा सरकार। इससे अफरातफरी का माहौल बन रहा। यह मामला उच्चतम न्यायालय गया तो उसने तीनों राज्यों से आवाजाही के मामले में एक समान नीति बनाने का निर्देश देते हुए यह भी कहा कि आने-जाने वालों को एक ही पास दिया जाना चाहिए। पास की व्यवस्था ठीक नहीं। पास जारी करने का मतलब होगा आवाजाही पर नियंत्रण।

आवाजाही को सुगम बनाने के उपाय किए जाएं

उचित यही है कि आवाजाही को सुगम बनाने के उपाय किए जाएं, न कि पास के जरिये उसे सीमित अथवा नियंत्रित करने के। इसका कोई मतलब नहीं कि एक राज्य दूसरे राज्य के लोगों को अपने यहां आने से रोके।

आवागमन पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार राज्यों को नहीं होना चाहिए 

वास्तव में किसी राज्य को न तो दूसरे राज्य के लोगों के आवागमन पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार होना चाहिए और न ही उनके इलाज के सिलसिले में यह छानबीन करने का कि वे कहां के निवासी हैं? इससे खराब बात और कोई नहीं हो सकती कि कोई अस्पताल मरीज से यह पूछे कि वह किस राज्य का है? कोई कहीं का मरीज हो उसे देश के नागरिक के तौर पर देखा जाना चाहिए।

स्वास्थ्य ढांचे को दुरुस्त करना समय की मांग है

स्वास्थ्य राज्यों का विषय अवश्य है, लेकिन वे अन्य राज्यों के लोगों से भेदभाव नहीं कर सकते। यह समय स्वास्थ्य ढांचे को दुरुस्त करने का है, न कि अड़ंगेबाजी अथवा आरोप-प्रत्यारोप का। इसे उन नेताओं को भी समझना होगा जो कोई सार्थक सुझाव देने के बजाय, सरकारों को कठघरे में खड़े करने में लगे हुए हैं। ऐसा लगता है कि वे केवल चर्चा में बने रहने के लिए अथवा आलोचना के लिए आलोचना का सहारा लेने में लगे हुए हैं।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]

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