सेना के खिलाफ छिछोरी हरकत: चीनी सेना के पीछे लौट जाने के बावजूद आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला कायम

लेह के अस्पताल के जिस कक्ष में प्रधानमंत्री घायल सैनिकों से मिले थे उसी में कुछ दिन पहले सेनाध्यक्ष भी उनसे मिले थे और उसके चित्र भी सार्वजनिक हुए थे।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 08 Jul 2020 12:56 AM (IST) Updated:Wed, 08 Jul 2020 12:56 AM (IST)
सेना के खिलाफ छिछोरी हरकत: चीनी सेना के पीछे लौट जाने के बावजूद आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला कायम
सेना के खिलाफ छिछोरी हरकत: चीनी सेना के पीछे लौट जाने के बावजूद आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला कायम

[ राजीव सचान ]: लद्दाख में चीनी सेना के कदम पीछे खींच लेने के बाद भी सरकार को कठघरे में खड़े करने वाले चैन से नहीं बैठे हैं। इन बेचैन लोगों में सबसे प्रमुख राहुल गांधी हैं। उनका बखूबी साथ दे रही है कांग्रेस की ट्रोल सेना। इस ट्रोल सेना में कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता तो हैं ही, अन्य लंपट, लफंगे और उन्मादी किस्म के लोग भी हैं। राहुल और अन्य कांग्रेसी नेताओं का तर्क है कि विपक्ष को सवाल पूछने का हक है। कपिल सिब्बल ने उदाहरण देकर बताया है कि किस तरह दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देशों में विपक्ष ने उस समय भी अपनी सरकारों को सवालों से घेरा जब वे गंभीर संकट से जूझ रही थीं। वह सही कह रहे हैं, लेकिन सवाल पूछने और शरारत करने में अंतर होता है। राहुल इसी अंतर को बड़े जतन से पाट रहे हैं। शायद यही एक काम उनके पास रह भी गया है।

राहुल गांधी कांग्रेस की अघोषित ट्रोल सेना के स्वयंभू अध्यक्ष के तौर पर अधिक सक्रिय

इन दिनों वह कांग्रेस की अघोषित ट्रोल सेना के स्वयंभू अध्यक्ष के तौर पर अधिक सक्रिय हैं। उन्होंने गलवन की घटना के बाद प्रधानमंत्री को समर्पण मोदी ही नहीं कहा, यह भी सवाल उछाला कि वह छिपे क्यों हैं-चुप क्यों हैं? उन्होंने मोदी के न तो कोई घुसा है... वाले कथन को गलत साबित करने के लिए कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को लद्दाख का आम नागरिक बताकर उनके हवाले से यह कहलवाया कि गलवन के हालात को लेकर सरकार जो कह रही है वह सही नहीं। भाजपा ने राहुल गांधी के इन सब आरोपों का जवाब भी दिया और उनकी घेरेबंदी करते हुए उन पर कई आरोप भी जड़े।

चीनी सेना के पीछे लौट जाने के बावजूद आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला कायम 

चीनी सेना के पीछे लौट जाने की खबरों के बावजूद कांग्रेस और भाजपा में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला कायम है और उसके खत्म होने की कहीं कोई उम्मीद नहीं है। कहना कठिन है कि इस सिलसिले से किसे क्या हासिल होने वाला है, लेकिन यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं कि उसकी चपेट में सेना भी आ जा रही है। बीते शुक्रवार को प्रधानमंत्री के लेह दौरे के बाद सोशल मीडिया पर यह साबित किया जाने लगा कि उनकी घायल सैनिकों से मुलाकत दिखावटी थी और वह सेना के अस्पताल में नहीं, किसी कांफ्रेंस कक्ष में गए थे, जहां कथित स्वस्थ सैनिकों को घायल के तौर पर बैठाया गया। तर्क यह दिया गया कि वहां चिकित्सकीय उपकरण नहीं दिख रहे थे।

कांग्रेस के सौजन्य से सेना को लांछित करने वाली यह छिछोरेबाजी

यह सिर्फ और सिर्फ सेना को लांछित करने की बेहूदा शरारत थी। इस शरारत में कांग्रेसी नेता-कार्यकर्ता भी शामिल थे और वे सब भी जिन्हें मोदी सरकार फूटी आंख नहीं सुहाती। जाहिर है इसमें कई मीडियाकर्मी भी थे। कांग्रेस के अधिकृत सोशल मीडिया एकाउंट से इस किस्म के ट्वीट किए गए-नकली अस्पताल, नकली उद्देश्य, नकली 56 इंची। कांग्रेस के सौजन्य से सेना को लांछित करने वाली यह छिछोरेबाजी इसलिए हो रही थी, ताकि सरकार पर निशाना साधा जा सके।

सोशल मीडिया के विभिन्न मंच लंपटों और लफंगों के पसंदीदा ठिकाने बन गए हैं

सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों और खासकर ट्विटर पर ट्र्रोंलग यानी छिछोरेबाजी नई बात नहीं। सोशल मीडिया के विभिन्न मंच लंपटों और लफंगों के पसंदीदा ठिकाने बन गए हैं। ऐसे तत्वों को सोशल मीडिया कंपनियां संरक्षित ही नहीं, बल्कि प्रोत्साहित भी करती हैं। उनकी ओर से रह-रह कर यह फर्जी दावा भी किया जाता है कि वे फेक न्यूज और हेट स्पीच के खिलाफ लगातार काम कर रही हैं। यह निरा झूठ है। इन कंपनियों की ऐसी कहीं कोई मंशा नहीं। वे दुनिया भर की सरकारों की आंखों में धूल झोंकने का काम कर रही हैं। हकीकत यही है कि सोशल मीडिया फर्जी, अधकचरी और वैमनस्य फैलाने वाली सूचनाओं का सबसे बड़ा और मजबूत गढ़ है।

जनरल अस्पताल में सैनिकों के इलाज पर सवाल

जब लेह के अस्पताल को लेकर सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार हद से अधिक बढ़ा तो सेना ने यह बयान जारी किया, ‘यह दुखद है कि कुछ लोग हमारे जनरल अस्पताल में सैनिकों के इलाज पर सवाल उठा रहे हैं। जहां सैनिकों को रखा गया वह सामान्य अस्पताल का हिस्सा है। जिस कक्ष का इस्तेमाल प्रशिक्षण दृश्य श्रव्य सभागार के रूप में किया जाता था उसे कोरोना संकट के बाद कोविड-19 के मरीजों के उपचार के लिए वार्ड में बदल दिया गया है।’ अच्छा होता कि सेना की ओर से ऐसा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया जाता, क्योंकि इससे लंपट और लफंगे तत्वों और उनके छिछोरेपन को ही महत्व मिला।

सरकार को सोशल मीडिया की मनमानी पर लगाम लगाने के लिए कुछ करना होगा

सेना को असहज करने वाले इस शर्मनाक प्रकरण से यह नए सिरे से स्पष्ट हुआ कि सोशल मीडिया किस तरह विकृत होता जा रहा है? सरकार को उसकी मनमानी पर लगाम लगाने के लिए कुछ करना होगा, अन्यथा वह चाइनीज एप्स की तरह नया सिरदर्द बनेगा। इसी के साथ किसी को इस पर सोचना होगा कि क्या इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और कुछ हो सकता है कि सेना सोशल मीडिया पर सक्रिय लंपट तत्वों की बेहूदगी का जवाब देने के लिए बाध्य हो? चूंकि सेना का स्पष्टीकरण अगले दिन खबरों का हिस्सा भी बना इसलिए आम लोग भी इससे परिचित हो गए कि उस पर कैसे घटिया आक्षेप लगाए गए थे, लेकिन आक्षेप लगाने वालों की ओर से कहीं कोई खेद नहीं जताया गया-न तो कांग्रेसियों की ओर से और न ही मीडियार्किमयों की ओर से।

सेना के प्रति यह कैसा सम्मान कि उस पर बेहूदे लांछन लगाने में संकोच न किया जाए

आखिर सेना के प्रति यह कैसा सम्मान कि उस पर बेहूदे लांछन लगाने में संकोच न किया जाए? क्या सेना के प्रति सम्मान जताने का इससे भोंडा तरीका और कोई हो सकता है कि गलवन में घायल सैनिकों को नकली बताया जाए? नि:संदेह यह ऐसा मामला नहीं जिसकी अनदेखी कर दी जाए या फिर यह कहकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाए कि सोशल मीडिया में तो यह सब चलता ही रहता है। ऐसी हरकतें सहन नहीं की जानी चाहिए और न ही ऐसे किसी सरल नतीजे पर पहुंचा जाना चाहिए कि सरकार से खफा लोगों को कुछ भ्रम हुआ होगा, क्योंकि लेह के अस्पताल के जिस कक्ष में प्रधानमंत्री घायल सैनिकों से मिले थे उसी में कुछ दिन पहले सेनाध्यक्ष भी उनसे मिले थे और उसके चित्र भी सार्वजनिक हुए थे।

( लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं )

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