केंद्रीय विश्वविद्यालयों की एकल प्रवेश परीक्षा, राष्ट्र, छात्र और ज्ञान तीनों के हित में है CUCET

इस साल बारहवीं की परीक्षाओं के रद होने पर सीयूसीईटी यानी सेंट्रल यूनिवर्सिटी कॉमन एंट्रेस टेस्ट((सीयूसीईटी) की जरूरत और भी बढ़ गई है। सेंट्रल यूनिवर्सिटी कॉमन एंट्रेस टेस्ट((सीयूसीईटी) राष्ट्र छात्र और ज्ञान तीनों के ही हित में है।

By Shashank PandeyEdited By: Publish:Fri, 16 Jul 2021 07:59 AM (IST) Updated:Fri, 16 Jul 2021 07:59 AM (IST)
केंद्रीय विश्वविद्यालयों की एकल प्रवेश परीक्षा, राष्ट्र, छात्र और ज्ञान तीनों के हित में है CUCET
सेंट्रल यूनिवर्सिटी कॉमन एंट्रेस टेस्ट((सीयूसीईटी) पर देश में बहस।(फोटो: दैनिक जागरण)

प्रो. निरंजन कुमार। एक अर्से से केंद्रीय विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में प्रवेश का मुद्दा चर्चा में है। समझा जा रहा है कि अकादमिक वर्ष 2021-22 में देश के सभी 49 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए एक कॉमन एडमिशन टेस्ट यानी सेंट्रल यूनिवर्सिटी कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (सीयूसीईटी) कराया जाएगा, पर कोरोना संकट के कारण स्थिति अभी अस्पष्ट है। हालांकि सीयूसीईटी को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है। वैसे विश्वविद्यालयों के लिए कॉमन एंट्रेंस टेस्ट की शुरुआत वर्ष 2010 में ही हो गई थी। पिछले वर्ष भी 14 केंद्रीय विश्वविद्यालयों और चार राज्य विश्वविद्यालयों में प्रवेश इसी तरीके से हुआ था। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए एक कॉमन एंट्रेंस टेस्ट कराने की अनुशंसा है। सीयूसीईटी के पीछे अवधारणा यह है कि विद्यार्थियों को अलग-अलग परीक्षाओं के जंजाल से मुक्ति दिलाई जाए। याद कीजिए, किसी समय मेडिकल-इंजीनियरिंग की कितने तरह की प्रवेश-परीक्षाएं होती थीं। परीक्षा देते-देते छात्र पस्त हो जाते थे। कई बार तो विभिन्न संस्थानों की परीक्षाओं की तिथियों में टकराव हो जाता था और छात्रों के सामने किसी परीक्षा को छोड़ने की नौबत आ जाती थी। इसीलिए भारत सरकार ने पहले मेडिकल और इंजीनियरिंग सहित 22 राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों में भी विधि पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए कॉमन एडमिशन टेस्ट शुरू करा दिया। फिर बीए, बीएससी और बीकॉम आदि स्नातक या विभिन्न स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए छात्रों को इतने सारे विश्वविद्यालयों की परीक्षाओं के जंजाल से कैसे मुक्ति मिले, इसके लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रलय ने एक समिति का गठन किया। उसने जेएनयू और दिल्ली विश्वविद्यालय समेत सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए एकल प्रवेश परीक्षा की अनुशंसा की।

सीयूसीईटी का मुख्य विरोध वैचारिक कारणों से है। चूंकि मोदी सरकार छात्रहित में सीयूसीईटी को विस्तार देना चाहती है तो मोदी विरोध की मानसिकता सीयूसीईटी के विरोध में परिणत हो जाती है। याद रहे कि मनमोहन सरकार के समय भी उनके प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार सीएनआर राव ने अनेक परीक्षाओं के तनाव एवं बोझ से लदे विद्यार्थियों की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने उच्च शिक्षा में प्रगति के लिए मनमोहन सिंह को सौंपी-अनिवार्य कदम: एक सूची’ नामक रिपोर्ट में उच्च शिक्षा के सभी पाठ्यक्रमों में अमेरिकी मॉडल जैसी एक राष्ट्रीय परीक्षा कराने पर जोर दिया था।

नि:संदेह उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में एकल प्रवेश परीक्षा अत्यावश्यक है। इससे छात्रों को अनेक परीक्षाओं से मुक्ति और एक ही परीक्षा से अनेक विश्वविद्यालयों में प्रवेश का विकल्प मिल सकेगा। सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों को इसका विशेष लाभ मिलेगा। इसी तरह देश के दूर-दराज इलाकों जैसे पूवरेत्तर या सुदूर दक्षिण के छात्र कई परेशानियों से बच जाएंगे। एकल प्रवेश परीक्षा लड़कियों के मामले में तो और भी उपयोगी साबित होगी। 12वीं के अंकों के बजाय एकल प्रवेश परीक्षा के आधार पर प्रवेश इसलिए भी उचित है कि देश में सीबीएसई बोर्ड के अतिरिक्त सीआइएससीई बोर्ड और विभिन्न राज्यों के अपने-अपने बोर्ड हैं। सभी बोर्डो में अंक देने की अलग-अलग प्रणाली है। ऐसे में 12वीं के अंकों के आधार पर प्रवेश देने से उन राज्यों के अनेक प्रतिभाशाली छात्र प्रवेश पाने से वंचित रह जाते हैं, जहां अपेक्षाकृत कम अंक मिलते हैं अथवा बहुत कम छात्रों को 90 प्रतिशत अंक मिलते हैं। यह न केवल उन छात्रों के साथ अन्याय है, बल्कि इससे समाज-राष्ट्र की भी हानि होती है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में उल्लिखित समानता के अधिकारों का भी हनन है। इस साल 12वीं की परीक्षाओं के रद होने पर सीयूसीईटी की जरूरत और भी बढ़ गई है। लगभग सभी बोर्डो ने अंक आवंटित करने के लिए अपना एक फॉर्मूला जारी किया है, जिससे अंकों में एक समतुल्यता नहीं होगी। यह एक ऐसा तथ्य है, जिससे सभी अवगत हैं।

अलग-अलग परीक्षा की जगह सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए एकल परीक्षा होने से संसाधनों की बचत भी होगी। हर विश्वविद्यालय इतना साधन संपन्न और सक्षम नहीं कि वह पूरे देश में पर्याप्त केंद्रों पर परीक्षा ले सके। कई विश्वविद्यालयों के परीक्षा केंद्र एक दर्जन शहरों का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाते। इससे छात्रों के साथ-साथ विश्वविद्यालयों को भी हानि होती है। वे पूरे देश के सर्वश्रेष्ठ छात्रों को आकर्षित नहीं कर पाते। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय यानी जेएनयू ही एक विरला विश्वविद्यालय है, जिसकी सवा सौ शहरों में प्रवेश-परीक्षा होती है। जेएनयू की गुणवत्ता का एक प्रमुख कारण है, पूरे देश के प्रतिभाशाली छात्रों का वहां आगमन।

सीयूसीईटी के खिलाफ एक अन्य तर्क है कि इससे स्ट्रीम बदलना मुमकिन नहीं। बारहवीं में विज्ञान पढ़ने वाला, स्नातक स्तर पर कला-मानविकी पढ़ना चाहे तो संभव नहीं होगा, लेकिन इस समस्या का समाधान कठिन नहीं। विज्ञान-विषय से प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले जो छात्र मानविकी-समाज विज्ञान पढ़ना चाहें, उनके डेढ़-दो प्रतिशत अंक कमकर उनकी मेरिट मानविकी-समाज विज्ञान के लिए बनाई जाए। दिल्ली विश्वविद्यालय में अभी यह व्यवस्था लागू है। विरोधियों का एक अन्य तर्क है कि सीयूसीईटी से कोचिंग वाले छात्रों का दबदबा होगा, कमजोर वर्ग अथवा सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र कोचिंग के अभाव में पिछड़ जाएंगे। इस समस्या का समाधान टेक्नोलॉजी के जमाने में कठिन नहीं। एकल प्रवेश परीक्षा से करोड़ों रुपये की जो बचत होगी, उसके कुछ हिस्से से ही एससी, एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस के साथ-साथ लड़कियों और अन्य वंचित वर्ग के लिए तीन-चार महीने की गुणवत्तापूर्ण नि:शुल्क कोचिंग ऑनलाइन तरीके से दी जाए। कोई छात्र किसी कारणवश परीक्षा देने से वंचित न रह जाए, इसके लिए जेईई और नीट की ही तरह सीयूसीईटी भी तीन से चार बार कराई जाए।

कोरोना काल में अगर जेईई और नीट की परीक्षा हो सकती है तो सीयूसीईटी क्यों नहीं? नए शिक्षा मंत्री धर्मेद्र प्रधान से अपील है कि शिक्षा संबंधित किसी भी नीतिगत निर्णय में तीन बिंदुओं को ध्यान में रखा जाए-राष्ट्र-समाज हित, व्यक्ति अर्थात छात्र-हित और ज्ञान का हित। सीयूसीईटी राष्ट्र, छात्र और ज्ञान, तीनों के ही हित में है।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)

chat bot
आपका साथी