आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत केंद्र सरकार का जोर घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने पर

घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार 209 हथियारों एवं रक्षा उपकरणों के आयात पर रोक लगा दी है। रक्षा एक ऐसा सेक्टर है जिसमें पूंजी लगाने पर रिटर्न मिलने में काफी वक्त लगता है तथा इसमें निवेश के लिए एकमुश्त भारी पूंजी की आवश्यकता होती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 24 Jun 2021 09:26 AM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 09:31 AM (IST)
आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत केंद्र सरकार का जोर घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने पर
सरकार चाहती है कि अधिकांश रक्षा उपकरण देश में ही बनाए जाएं।

डॉ. लक्ष्मी शंकर यादव। पिछले दिनों केंद्रीय कैबिनेट ने एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए दो सौ साल से अधिक पुराने ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड यानी आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) को समाप्त करने का निर्णय लिया। ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड की कार्यप्रणाली में बदलाव करने तथा सुधार लाने के लिए पिछले दो दशकों से अध्ययन किया जा रहा था। इसके लिए कई उच्चस्तरीय समितियों का भी गठन किया गया था। अब देश की 41 ऑर्डिनेंस यानी हथियार, गोला-बारूद आदि रक्षा-सुरक्षा उपकरण बनाने वाली आयुध फैक्टियों को सात कॉरपोरेट कंपनियों में तब्दील करने का कार्य किया जाएगा। इनके तकरीबन 70,000 कर्मचारियों को इन कपनियों में समायोजित किया जाएगा।

नई कंपनियों में ओएफबी के कर्मचारियों का समायोजन उनके कार्य के हिसाब से किया जाएगा। समायोजित किए जाने पर शुरुआत में उन्हें दो साल की प्रतिनियुक्ति पर कंपनियों में रखा जाएगा। इससे कर्मचारियों की पेंशन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। ये सभी सात कंपनियां पूरी तरह से सरकारी होंगी। और देश के सार्वजनिक उपक्रमों की तरह काम करेंगी। दरअसल रक्षा उत्पादन से जुड़ी इन कंपनियों को इससे अधिक स्वायत्तता प्राप्त होगी। इनकी कार्य क्षमता में सुधार होगा। जवाबदेही बढ़ेगी। इससे ये ज्यादा प्रतिस्पर्धी बन सकेंगी। इस तरह ये अपने आपको सशस्त्र सेनाओं की रक्षा तैयारियों के मद्देनजर आत्मनिर्भरता के मुख्य आधार के रूप में स्थापित कर सकेंगी।

सात कंपनियों के प्रकार: पहली कंपनी गोला-बारूद और विस्फोटक समूह की होगी जिसमें गोला-बारूद और रिवॉल्वर आदि बंदूकों के उत्पादन होंगे। इस तरह के उत्पादन में लगी सभी आयुध फैक्टियों को इसमें मर्ज कर दिया जाएगा। इसके बाद दूसरी कंपनी वाहन समूह की होगी, जिसमें मुख्य रूप से रक्षा आवाजाही से संबंधित टैंक, ट्रॉल्स, बारूदी सुरंग रोधी वाहन एवं लड़ाकू वाहन बनाने का कार्य होगा। इसमें भी इस तरह का निर्माण कार्य करने वाली सभी फैक्टियों को मर्ज किया जाना है। तीसरी कंपनी अन्य हथियार और सैन्य उपकरणों को बनाने वाली होगी। इसमें छोटे, मध्यम तथा बड़े हथियार बनाने वाली सभी फैक्टियों को समाहित किया जाएगा। चौथी कंपनी सैनिकों से जुड़े प्रमुख साजो-सामान बनाने के लिए होगी। पांचवीं कंपनी समूह का नाम एंसिलरी ग्रुप होगा। छठवीं कंपनी इलेक्ट्रॉनिक्स समूह वाली होगी। सातवीं कंपनी पैराशूट ग्रुप की होगी।

क्या होंगे इसके फायदे : यह फैसला भारत के रक्षा उत्पादन क्षेत्र को बढ़ावा देने के प्रयासों से प्रेरित है। इससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा आवश्यकताएं समय से पूरी हो सकेंगी। इन सुधारों के बाद सातों कंपनियां जब पेशेवर प्रबंधकों के हवाले होंगी तब वे रक्षा उत्पादन में विविधता के जरिये देश-विदेश के बाजारों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने पर फोकस कर सकेंगी। इनका मुख्य उद्देश्य घरेलू रक्षा बाजार में उत्पादों की विविधता को बढ़ाकर विश्व के रक्षा बाजार में अपनी पैठ बढ़ाना है। ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड की इकाइयों के प्रमुख ग्राहकों में अभी तक हमारी थल सेना, वायु सेना और नौसेना हैं। इसके अलावा केंद्रीय अर्धसैनिक बलों जैसे सीआरपीएफ, बीएसएफ आदि हैं। राज्यों के पुलिस बलों के जवानों को भी हथियार और साजो-सामान देना इनका काम है। हथियारों के अतिरिक्त सभी बलों के जवानों को कपड़े, बुलेट प्रूफ वाहन और सुरंग रोधी वाहनों की आपूर्ति करना इन्हीं की जिम्मेदारी है। अब जब इनके द्वारा बनाए गए सैन्य उपकरण दूसरे देशों को निर्यात किए जाएंगे तो देश की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी। भारतीय आयुध निर्माण का इतिहास ब्रिटिश शासन काल से जुड़ा हुआ है। ब्रिटिश शासन काल के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपने आर्थिक लाभ एवं राजनीतिक ताकत को बढ़ाने के लिए सैन्य उपकरणों के निर्माण के लिए आयुध फैक्टियों को स्थापित किया था। आजादी के समय देश में कुल 18 आयुध फैक्टियां थीं। शेष आयुध फैक्टियां स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जरूरत के अनुसार तैयार की गईं। अब यह नया बदलाव एक नया इतिहास बनाएगा।

हथियार उत्पादन में भारत की स्थिति : देश की ऑर्डिनेंस फैक्टियां पहले शस्त्रों एवं रक्षा उपकरणों का निर्यात नहीं करती थीं, बल्कि उनका उत्पादन घरेलू जरूरतों की आपूर्ति तक सीमित रहता था। वर्ष 2015-16 में इनको रक्षा निर्यात की अनुमति प्रदान की गई। 2016-17 में भारत का रक्षा निर्यात 1,521 करोड़ रुपये था, जो साल 2018-19 में बढ़कर 10,745 करोड़ रुपये हो गया। अभी भारत सालाना करीब 17,000 करोड़ रुपये का रक्षा निर्यात कर रहा है। अब केंद्र सरकार ने 2024 तक 35,000 करोड़ रुपये का सालाना रक्षा निर्यात का लक्ष्य रखा है। माना जा रहा है कि साल 2030 तक भारत रक्षा उद्योग में बड़ा खिलाड़ी बनकर उभर सकता है। अभी देश की ऑर्डिनेंस फैक्टियां दुनिया के करीब 42 देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात कर रही हैं। इन देशों में इजरायल, स्वीडन, संयुक्त अरब अमीरात, ब्राजील, बांग्लादेश एवं बुल्गारिया आदि हैं। आने वाले दिनों में यूरोप के कुछ देशों को हथियार बेचे जा सकते हैं।

दरअसल आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार 209 हथियारों एवं रक्षा उपकरणों के आयात पर रोक लगा दी है। अब इन्हें स्वदेशी स्नेतों से ही खरीदा जाएगा। हालांकि भारत वर्तमान में वैश्विक रक्षा कारोबारियों के दिग्गजों के लिए सबसे आकर्षक बाजारों में से एक है। पिछले आठ-दस वर्षो से भारत दुनिया के शीर्ष सैन्य हथियार आयातकों में से एक बना हुआ है। आकलन है कि भारत अपनी सेनाओं के लिए अगले पांच वर्षो में रक्षा खरीद पर 130 अरब डॉलर खर्च करेगा। इसीलिए सरकार चाहती है कि अधिकांश रक्षा उपकरण देश में ही बनाए जाएं।

[सैन्य विज्ञान विषय के जानकार]

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