अपने कर्मों का फल भुगतेगा चीन: क्षतिपूर्ति से कहीं अधिक गहरा होगा कोरोना के कारण चीन की प्रतिष्ठा और छवि पर लगा ग्रहण

वुहान लैब को लेकर अमेरिका की आधिकारिक जांच कोविड के मूल को लेकर स्थिति स्पष्ट करने में चीन पर दबाव बढ़ाएगी। कुल मिलाकर चीन को अपने कर्मों का अंजाम भुगतना ही पड़ेगा। उसकी प्रतिष्ठा और छवि पर जो ग्रहण लगेगा वह किसी भी हर्जाने से कहीं गहरा होगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 07 Jun 2021 03:52 AM (IST) Updated:Mon, 07 Jun 2021 04:22 AM (IST)
अपने कर्मों का फल भुगतेगा चीन: क्षतिपूर्ति से कहीं अधिक गहरा होगा कोरोना के कारण चीन की प्रतिष्ठा और छवि पर लगा ग्रहण
कोविड-19 महामारी पर पर्दा डालने का चीनी प्रयास इस सदी का सबसे बड़ा अपराध माना जाएगा।

[ ब्रह्मा चेलानी ]: बीते कुछ समय से वैश्विक स्तर पर ऐसे स्वर मुखर हुए हैं, जिनका जोर इस परिकल्पना की गहराई से पड़ताल करने पर है कि कोरोना वायरस वुहान लैब से निकला। अगर ऐसा हुआ है तो कोविड-19 महामारी पर पर्दा डालने का चीनी प्रयास इस सदी का सबसे बड़ा अपराध माना जाएगा। विश्व युद्ध की भांति ही यह महामारी भी पूरी दुनिया के लिए निर्णायक बन गई है। जहां से यह महामारी निकली उस देश को छोड़कर उसकी तबाही के वीभत्स निशान दुनिया भर में देखे जा रहे हैं। चीन ही इससे सबसे कम प्रभावित होने वाला देश है। यह तथ्य भी कम अजीब नहीं कि महामारी से उपजी जिस वैश्विक व्यथा को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता, वह चीन के लिए व्यापक आर्थिक लाभ का कारण बनी। महामारी के दौरान उसकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती रही। उसका निर्यात भी चढ़ता गया।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान महामारी की जड़ में जाने के बजाय उसके प्रतिरूपों पर कहीं अधिक

यदि किसी अन्य देश से निकला ऐसा कोई खतरनाक वायरस दुनिया भर में महामारी फैलाकर उथल-पुथल मचाता तो यकीनन वह अंतरराष्ट्रीय कठघरे में खड़ा होता, लेकिन चीन अब तक इस महामारी की जिम्मेदारी से बचता रहा है। इतना ही नहीं वह कोरोना वायरस के उद्गम को लेकर गहन जांच की दिशा को भटकाने में सफल हुआ है। कोरोना की उत्पत्ति को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा गहराई से जांच किए जाने में देरी से दिखाई गई दिलचस्पी के बावजूद अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान महामारी की जड़ में जाने के बजाय विध्वंस मचा रहे उसके विभिन्न प्रतिरूपों पर कहीं अधिक है।

डब्ल्यूएचओ को वुहान में कोविड-19 के बारे में पहली बार सूचना ताइवान में छपी खबर से मिली

वर्ष 2002-2003 में दस्तक देने वाली सार्स महामारी के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने सदस्य देशों के लिए इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशन नाम से एक नियमावली जारी की थी। उसके अनुच्छेद छह में चीन सहित प्रत्येक सदस्य देश के लिए यह बाध्यकारी प्रविधान है कि किसी देश को अपने क्षेत्र में वैश्विक जोखिम बढ़ाने वाली स्वास्थ्य समस्या को लेकर सूचनाएं एकत्र कर डब्ल्यूएचओ को 24 घंटों के भीतर सूचित करना होगा। फिर भी चीन ने इस नियम का उल्लंघन किया। डब्ल्यूएचओ के एक अंतरराष्ट्रीय पैनल ने एक हालिया रिपोर्ट में यह स्वीकार किया कि संगठन को वुहान में कोविड-19 के बारे में पहली बार सूचना ताइवान में छपी खबर और एक ऑटोमेटेड अलर्ट सिस्टम से मिली, जिसने एक अजीबोगरीब न्यूमोनिया के बारे में बताया था। एक और पहलू ने कोरोना की उत्पत्ति पर पर्दा डालने की चीनी कोशिशों में मदद की। दरअसल अमेरिकी सरकार की एजेंसियों ने 2014 से ही वुहान की खतरनाक लैब वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (डब्ल्यूआइवी) को वित्तीय मदद मुहैया कराई।

बाइडन ने चीन को वायरस का स्नोत न मानने को अमेरिका की आधिकारिक नीति बना दिया

बाइडन ने अपना कार्यकाल संभालते ही डब्ल्यूएचओ के साथ अमेरिका की टूटी कड़ी जोड़कर अपने पूर्ववर्ती ट्रंप द्वारा इस संस्था में सुधार के लिए बनाए गए दबाव को व्यर्थ कर दिया। बाइडन ने 26 जनवरी को एक नोटिस पर हस्ताक्षर किए, जिसमें महामारी के उद्गम को लेकर किसी भौगोलिक पहचान को नस्ली बताने का प्रविधान था। यानी बाइडन ने चीन को वायरस का स्नोत न मानने को अमेरिका की आधिकारिक नीति बना दिया। हालांकि वायरस के विभिन्न प्रतिरूपों के भौगोलिक उद्भव के उल्लेख से परहेज नहीं किया जा रहा।

अमेरिकी एजेंसियों ने चीनी सेना से जुड़ी वुहान की लैब को धनराशि क्यों दी

सवाल यह है कि आखिर अमेरिकी एजेंसियों ने चीनी सेना से जुड़ी वुहान की लैब को धनराशि क्यों दी? इस पर 15 जनवरी को अमेरिकी विदेश विभाग की फैक्टशीट में कहा गया है, अमेरिका को यकीन है कि वुहान लैब ने गुप्त परियोजनाओं पर चीनी सेना के साथ मिलकर काम किया है। ऐसे में नागरिक शोधों पर सहयोग एवं वित्तीय मदद देने वाले देशों का दायित्व है कि वे यह तय करें कि क्या उनके शोध के निष्कर्ष को गुप्त चीनी सैन्य परियोजनाओं को भी भेजा गया। फैक्ट शीट में जैविक हथियारों को लेकर चीन की मंशा पर भी सवाल उठाए गए हैं कि 46 साल पहले जैविक हथियार कन्वेंंशन के अंतर्गत निर्धारित बाध्यताओं के बावजूद चीन ने अपने जैविक हथियार अनुसंधान कार्यक्रम को समाप्त नहीं किया।

चीन से निकली जानलेवा बीमारी ने दुनिया को अपनी जद में लिया

महामारी की जड़ की पड़ताल और भी कई कारणों से महत्वपूर्ण है। दरअसल यह चीन से निकली पहली जानलेवा बीमारी नहीं, जिसने दुनिया को अपनी जद में लिया। इससे पहले भी 1957 के एशियन फ्लू, 1968 के हांगकांग फ्लू और 1977 के रशियन फ्लू जैसी इनफ्लुएंजा महामारियों की शुरुआत चीन से ही हुई थी।

पांच करोड़ लोगों की जान लेने वाला 1918 का स्पेनिश फ्लू भी चीन में ही पनपा था

नए शोध के अनुसार करीब पांच करोड़ लोगों की जान लेने वाला 1918 का स्पेनिश फ्लू भी चीन में ही पनपा था और वहीं से ही दुनिया भर में फैला। कोविड भी चीन से निकली पहली कोरोना वायरस जनित आपदा नहीं है और न ही चीन पहली बार तथ्यों पर पर्दा डालने का काम कर रहा है।

21वीं सदी की पहली महामारी सार्स के मामले में भी चीन तथ्यों पर डाल चुका पर्दा

2002-03 में 21वीं सदी की पहली महामारी सार्स के मामले में भी वह ऐसा कर चुका है। कोरोना वायरस की पूरी कुंडली समझना इसलिए भी आवश्यक है, ताकि भविष्य में ऐसी किसी आपदा से निपटने की पर्याप्त तैयारी की जा सके। चीन अपना दामन बचाने की कोशिश में जुटा है, लेकिन उस पर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का अविश्वास भी बढ़ा है। इसने भी महामारी की पूरी असलियत जानने में दिलचस्पी बढ़ाई है। वुहान लैब से वायरस लीक होने वाली अवधारणा में यकीन करने वाले अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की गिनती में इजाफा होता जा रहा है।

महामारी से हुए नुकसान का चीन से मुआवजा मांगने वालों का किया दमन

महामारी से हुए नुकसान का चीन से मुआवजा मांगने के पक्ष में पिछले साल उठ रही अंतरराष्ट्रीय आवाजों का चीन ने आक्रामक रूप से दमन किया। इस साल ट्रंप के अलावा कोई भी ऐसी मांग नहीं कर रहा, क्योंकि ऐसा कोई भी कदम अव्यावहारिक अधिक है। वहीं बीजिंग की अंतरराष्ट्रीय ताकत और रुतबा भी असर दिखा रहा है। इसे कोविड-19 की मेहरबानी ही कहा जाएगा कि तमाम देशों ने चीन पर निर्भर आपूर्ति शृंखला को लेकर कड़े सबक सीखे हैं।

लैब-लीक थ्योरी मुख्यधारा में जगह बनाती जा रही, चीन से मोहभंग बढ़ा

चीन से अंतरराष्ट्रीय मोहभंग बढ़ा है। बदलते हालात में लैब-लीक थ्योरी मुख्यधारा में जगह बनाती जा रही है। ऐसे में वुहान लैब को लेकर अमेरिका की आधिकारिक जांच कोविड के मूल को लेकर स्थिति स्पष्ट करने में चीन पर दबाव बढ़ाएगी। कुल मिलाकर चीन को अपने कर्मों का अंजाम भुगतना ही पड़ेगा। उसकी प्रतिष्ठा और छवि पर जो ग्रहण लगेगा वह किसी भी हर्जाने से कहीं गहरा होगा।

( लेखक सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं )

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