पंजाब विधानसभा सत्र को लेकर राजनीतिक गलियारों में हो रहा सियासी हंगामा

राज्य विधानसभा के इतिहास में यह मानसून सत्र बेशक सबसे छोटा होगा किंतु इस मुद्दे पर राजनीतिक गलियारों में हो रहा सियासी हंगामा खूब बड़ा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 25 Aug 2020 11:41 AM (IST) Updated:Tue, 25 Aug 2020 11:42 AM (IST)
पंजाब विधानसभा सत्र को लेकर राजनीतिक गलियारों में हो रहा सियासी हंगामा
पंजाब विधानसभा सत्र को लेकर राजनीतिक गलियारों में हो रहा सियासी हंगामा

चंडीगढ़, अमित शर्मा। पंजाब विधानसभा का एक दिवसीय मानसून सत्र 28 अगस्त को दो बैठकों में होगा। राज्य विधानसभा के इतिहास में यह मानसून सत्र बेशक सबसे छोटा होगा, किंतु इस मुद्दे पर राजनीतिक गलियारों में हो रहा सियासी हंगामा खूब बड़ा है। अचानक आक्रामक हुए मुख्य विपक्षी दल आम आदमी पार्टी और अकाली-भाजपा गठबंधन तंज कसते हुए कह रहे हैं कि विधानसभा में प्रतिपक्ष के सवालों का जवाब देने से सरकार घबरा रही है। उनका कहना है कि विधानसभा में चर्चा के लिए सरकार की विफलताओं से जुड़े मसले ज्यादा हैं और सत्र की अवधि बेहद कम। वहीं सरकार की दलील है कि इस समय कोरोना महामारी से हटकर कोई अन्य मुद्दा है ही नहीं, जिस पर चर्चा की जा सके। सत्र बुलाने का एकमात्र मकसद संवैधानिक जरूरत को पूरा करना है।

खैर असल वजह कुछ भी हो, मूल बात यह है कि सत्र की अवधि घटाने को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों के बीच शुरू हुई इस सियासी जंग ने हमेशा की तरह एक बार फिर सूबे के उन दोनों ज्वलंत मसलों को पीछे धकेल दिया है जिन्हें लेकर हर पंजाबी चिंतित है। इस समय जहां एक तरफ राज्य में कोरोना संक्रमण ऐसे नाजुक दौर में है कि राज्य के चार बड़े नगरों में मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से अधिक हो गई है, वहीं सूबे के युवाओं का एक प्रतिबंधित आतंकी संगठन के उकसावे में आकर अलगाववादी गतिविधियों में शामिल होना चिंतन का विषय बनता जा रहा है। लेकिन यहां इन दोनों संवेदनशील विषयों पर भी राजनीतिक गाली-गलौज उसी तरह जारी है जिस तरह शराब तस्करी जैसे अन्य मसलों पर कई वर्षो से होता आया है।

कोरोना संक्रमण की बढ़ती रफ्तार पर प्रदेश सरकार की संजीदगी का प्रमाण देने हेतु मुख्यमंत्री बस बहुत हुआ कहते हुए फेसबुक पर लाइव होकर कफ्यरू, वीकएंड लॉकडाउन और मास्क पहनने की अनिवार्यता की घोषणा तो कर रहे हैं, लेकिन उसका असर धरातल पर कम और कांग्रेसी नेताओं और अधिकारियों की फेसबुक वाल पर ज्यादा होता दिखता है। मुख्यमंत्री की ऐसी घोषणाओं के जमीनी स्तर पर असर की हाल ही में एक तस्वीर पेश की है मुख्यमंत्री की मेडिकल सलाहकार टीम के सदस्य और प्रदेश की मेडिकल यूनिवर्सटिी के उपकुलपति डॉ. राज बहादुर ने, जिन्होंने बिना मास्क पहने 15 अगस्त समेत कई अन्य कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। नतीजतन तीन दिन बाद इनके साथ ही अन्य कई अधिकारी भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए। कोरोना को लेकर विपक्षी दलों का रवैया भी कुछ ऐसा ही है।

कोविड के फैलाव पर सरकार को सख्ती बरतने की बड़ी-बड़ी नसीहतें देने वाले विपक्षी दल पिछले दो सप्ताह से लगातार धरने-प्रदर्शन कर नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। कोरोना संकट के बीच ही एक प्रतिबंधित आतंकी संगठन के उकसावे में आकर यहां के युवाओं का अलगाववादी गतिविधियों में शामिल होना हर पंजाबी के लिए चिंता का विषय बनने लगा है। बीते सप्ताह एक पुलिस अफसर के बेटे संग तीन अन्य युवकों द्वारा मोगा स्थित जिला सचिवालय के प्रांगण में दिन दिहाड़े तिरंगा हटाकर अलगाववादी संगठन का झंडा लहराने का वीडियो वायरल करने की घटना से लेकर इसी रविवार अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर समेत दो अन्य धाíमक स्थलों में खालिस्तान के लिए अरदास करने जैसे अनचाहे प्रसंग व्यावहारिकता में इसी संकट की ओर इंगित करते हैं।

लेकिन अफसोस कि इस मसले को लेकर भी पक्ष व विपक्ष दोनों अलग-अलग दिशा में बात कर रहे हैं। सख्त कानूनी कार्रवाई की बात करते हुए जब-जब मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस अलगाववादी संगठन के मुखिया को ललकार उसके बहकावे में आए युवकों पर कानूनी शिकंजा कसने की कोशिश की है, तब-तब विपक्षी दलों समेत शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी जैसी सर्वोच्च धाíमक संस्थाओं ने इसका विरोध करते हुए गिरफ्तारियों को राजनीतिक रंगत देने का प्रयास किया है।

मानसून सत्र की घोषणा के साथ ही यह उम्मीद जगी थी कि जहरीली शराब, अवैध खनन, भ्रष्टाचार और अन्य मसलों पर न सही, कम से कम इन दोनों ज्वलंत मुद्दों पर पक्ष-विपक्ष सदन में चर्चा के जरिये एकमत होकर हल अवश्य तलाशेंगे। लेकिन पक्ष-प्रतिपक्ष के विधायक आज जिस तरह सड़कों पर आकर सत्र पर सवाल खड़े कर अपनी सियासत चमकाने में मशगूल हैं, ऐसे में उनसे किसी सार्थक संवाद की उम्मीद रखना उसी तरह बेमानी है, जैसा कभी मरहूम शायर राहत इंदौरी ने कहा था, चरागों का घराना चल रहा है, हवा से दोस्ताना चल रहा है। नए किरदार आते जा रहे हैं, मगर नाटक वही पुराना चल रहा है।

[स्थानीय संपादक, पंजाब]

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