इस हफ्ते वाशिंगटन में क्वाड देशों की पहली बैठक, अंतर्विरोध दूर करने की होगी चुनौती

इस सप्ताह वाशिंगटन में क्वाड देशों की पहली वैयक्तिक शिखर बैठक विश्व राजनीति की दशा-दिशा बदलने वाली साबित हो सकती है। समन्वय मजबूत करें तो स्वाभाविक है कि जिसे खबरदार किया जा रहा है उसके कानों में चेतावनी गूंजेगी।

By Pooja SinghEdited By: Publish:Mon, 20 Sep 2021 09:49 AM (IST) Updated:Mon, 20 Sep 2021 09:57 AM (IST)
इस हफ्ते वाशिंगटन में क्वाड देशों की पहली बैठक, अंतर्विरोध दूर करने की होगी चुनौती
इस हफ्ते वाशिंगटन में क्वाड देशों की पहली बैठक, अंतर्विरोध दूर करने की होगी चुनौती

श्रीराम चौलिया। इस सप्ताह वाशिंगटन में क्वाड देशों की पहली वैयक्तिक शिखर बैठक विश्व राजनीति की दशा-दिशा बदलने वाली साबित हो सकती है। भारत, जापान, आस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसी एक महाशक्ति और तीन मध्य शक्तियों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सामरिक एकता का प्रदर्शन करते हुए कंधे से कंधा मिलाकर हिंद प्रशांत में समन्वय मजबूत करें तो स्वाभाविक है कि जिसे खबरदार किया जा रहा है, उसके कानों में चेतावनी गूंजेगी।

क्वाड का मकसद चीन के नायकत्व और विस्तारवाद को नियंत्रण में लाना

क्वाड ऐसा समूह है जिसके सभी सदस्यों का अनकहा मगर दृढ़ मकसद है चीन के नायकत्व और विस्तारवाद को नियंत्रण में लाना। साझा लक्ष्य को हासिल करने की ओर क्वाड ने कुछ महत्वपूर्ण पहल भी की है। मालाबार नौसैनिक युद्धाभ्यास, जो पहले भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय आधार पर होता थी, अब चतुर्भुज आकार में हो रहा है। इसके अलावा, क्वाड के सदस्य फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड और न्यूजीलैंड जैसे अन्य सामान सोच रखते देशों के साथ आपस में अनेक समीकरणों के साथ युद्धाभ्यास कर रहे हैं, ताकि चीन को साल भर किसी न किसी प्रकार की समुद्री चुनौती ङोलनी पड़े और उसके छोटे देशों पर अवैध दबाव पर अंकुश आ जाए।

हालांकि, जिस दबंगई से चीन फिलीपींस, वियतनाम और ताइवान को सैन्य उकसावे से परेशान कर रहा है, उससे स्पष्ट है कि क्वाड और ‘क्वाड-प्लस’ अब तक भू राजनैतिक लिहाज से उसे दबाव में नहीं ला सके हैं। दरअसल, दक्षिण-पूर्वी एशिया के देश क्वाड में शामिल होने या उसके साथ खड़े होने में संकोच करते हैं। आसियान देश चीन पर आर्थिक तौर पर निर्भर हैं और वे चीन के भय से क्वाड से जुड़ते नजर नहीं आना चाहते। क्वाड देश आसियान को हिंदू-प्रशांत का केंद्र बिंदु कहते हैं, परंतु अब तक इन देशों को क्वाड की तरफ से उतनी ठोस सुरक्षात्मक और आर्थ गारंटी नही मिली है जिसके बदौलत वो चीन को ठुकरा सकें। आसियान केंद्रित हिंदू-प्रशांत तभी कारगर होगी जब क्वाड रचनात्मक रणनीति से चीन के साये मे घबराये हुए देशों को विकल्प प्रदान करें।

यह विकल्प महज सैन्य या व्यापारिक आयामों में ही नहीं होना चाहिए। चीन से फैली महामारी के विरुद्ध संग्राम में क्वाड देशों ने प्रण लिया है कि 2022 के अंत तक एक अरब टीके भारत में उत्पादन करेंगे और उन्हें हिंदू-प्रशांत के पीड़ित देशों को मुहैया कराएंगे। आसियान और पैसिफिक द्वीप देशों में जनजीवन सामान्य करने में यह अपरिहार्य योगदान होगा। चीन ने अपने टीके समस्त प्रांत में भेज रखे हैं, पर उनकी गुणवत्ता और प्रभाव से सभी देश निराश हैं। क्वाड द्वारा वित्तपोषित भारतीय वैक्सीन की आपूर्ति से पूरे क्षेत्र के भाग्य बदलेंगे।

चीन के विस्तारवादी यंत्रों में सबसे प्रबल है इन्फ्रास्ट्रक्चर। ‘बेल्ट एंड रोड’ योजना के तहत चीन ने पूरे विकासशील विश्व मे ऐसा जाल बुना है कि कोई गरीब देश चाहकर भी चीनी निवेश और ऋण मन नहीं करता। क्वाड के देशों में सहमति है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्णायक विषय है और उन्हें मिलकर हिंदू-प्रशांत में परियोजनाएं आरंभ करनी चाहिए जो चीन के मुकाबले अधिक विश्वसनीय, लोकतांत्रिक और पारदर्शी हो।

यूरोपीय संघ ने भी कनेक्टविटी और इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए हिंदू-प्रशांत में भूमिका निभाने का एलान किया है। पर समस्या यह है कि अमेरिका और यूरोप अपने संसाधनों को एकत्र करके चीन से प्रतिस्पर्धा अब तक नही कर पाए हैं। बीते दिनों फ्रांस अमेरिका से खफा हो गया क्योंकि उसने आस्ट्रेलिया से 66 अरब डालर कीमत वाले नौसेनिक पनडुब्बी सौदे को खारिज करवाकर अपने पनडुब्बी बेचने का छलावा किया। चीन जैसी महाशक्ति को पीछे धकेलना हो तो पश्चिमी देशों के भीतर विरोधाभास हानिकारक है। ‘क्वाड-प्लस’ में फ्रांस का अव्वल स्थान होना चाहिए, क्योंकि उसके हिंदू-प्रशांत में सामरिक भूखंड और संपत्तियां हैं, जिनका लाभ चीन से उत्पीड़ित सभी देशों को मिलने में ही भलाई है।

अफगानिस्तान से जिस प्रकार अमेरिका ने शर्मनाक कूच की, उससे बाइडेन के प्रति मित्रों और साङोदारों मे शंकाएं पैदा हो गयी हैं। कम से कम हिंदू-प्रशांत में आशा है कि बाइडेन संकीर्ण सोच से ऊपर उठकर एक विशाल महागठबंधन रचने का कार्य करेंगे। उनके अपने शब्दों मे वे ‘2021 के खतरों’ से निपटने में जुटे हैं। यानी चीन की तेज रफ्तार आक्रामकता पर ब्रेक लगाना ही उनके विदेश नीति की कसौटी है। क्वाड के सब सदस्यों ने मन बना लिया है कि चीन को हर हाल मे पीछे हटाना होगा। क्वाड देशों के पारस्परिक हित, तालमेल और सूझबूझ की कमियां इस संस्थान के विस्तार में अड़चनें डाल रहे है। इन पर ध्यान देकर ही सामूहिक रूप से चीन की चुनौती का सामना करना संभव होगा।

लेखक सोनीपत जिंदल स्कूल आफ इंटरनेशनल अफेयर्स के प्रोफेसर और डीन हैं।

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