Pulwama Terror Attack: पाक की जमीन पर लड़नी होगी लड़ाई

विशेषज्ञ मानते हैं, सर्जिकल स्ट्राइक के बाद उसे दोहराना चाहिए था, लेकिन हमने उसका उत्सव मनाने में ज्यादा समय गुजारा दिया। इसलिए पाक प्रायोजित हमलों का सिलसिला टूट नहीं रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 16 Feb 2019 01:04 PM (IST) Updated:Sat, 16 Feb 2019 02:44 PM (IST)
Pulwama Terror Attack: पाक की जमीन पर लड़नी होगी लड़ाई
Pulwama Terror Attack: पाक की जमीन पर लड़नी होगी लड़ाई

[प्रमोद भार्गव]। इतिहास के पन्नों को देखें तो अपनी रक्षात्मक नीति के कारण भारत ने जीत से ज्यादा हार का सामना किया है। लिहाजा 2016 में पाक अधिकृत कश्मीर में घुसकर भारत ने आतंकी शिविरों पर जो हमला बोला था, उसे पाक की जमीन पर जारी रखना होगा। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद हमने उसे दोहराने की बजाय उसका उत्सव मनाने में ज्यादा समय गुजारा। नतीजन पाक प्रायोजित हमलों का सिलसिला टूट नहीं रहा है।

हालिया आत्मघाती हमला एक कार में करीब 300 किलो विस्फोटक लेकर जवानों से भरी बस से टकराकर किया गया। हमले के बाद वहां छिपे आतंकियों ने सुरक्षाबलों के काफीले पर हमला भी किया। हमले के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल सुरक्षा समिति की बैठक में पाकिस्तान को सबक सिखाने की दृष्टि से दो अहम फैसले लिए गए हैं। पाक को मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा वापस लेना और सेना को पूर्ण स्वतंत्रता देना। इससे यह उम्मीद जगी है कि मोदी सरकार पाकिस्तान के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करेगी।

समय आ गया है इस लड़ाई को निर्णायक लड़ाई में बदला जाए। यह लड़ाई पाकिस्तान की जमीन पर होनी चाहिए। अब तक अपनी जमीन पर लड़ाई लड़ते हुए हम 45,000 से भी ज्यादा भारतीयों के प्राण गंवा चुके हैं और हमारे ही युवा आतंकी पाठशालाओं में प्रशिक्षित होकर बड़ी चुनौती बन गए हैं। दुर्भाग्य यह कि जो अलगाववादी आतंकियों को शह देते हैं, उनकी सुरक्षा में भी सुरक्षाबल और स्थानीय पुलिस लगी है। अलगाववादियों के तार पाकिस्तान से जुड़े होने के सबूत मिलने के बावजूद हमने उन्हें नजरबंद तो किया, लेकिन कड़ी कानूनी कार्रवाई से वे अब तक बचे हुए हैं? नतीजन उनके हौसले बुलंद हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैश्विक फलक पर भले ही कूटनीति के रंग दिखाने में सफल रहे हों, पर देश की आंतरिक स्थिति को सुधारने और पाकिस्तान को सबक सिखाने की दृष्टि से उनकी रणनीति नाकाम ही रही है। शोपियां में सेना की पत्थरबाजों से रक्षा में चलाई गोली के बदले मेजर आदित्य कुमार पर एफआइआर दर्ज होना और उनके परिजनों द्वारा अदालत के चक्कर काटना, इस बात का संकेत है कि आतंकवाद के विरुद्ध अभी तक हम कोई ठोस नीति नहीं बना पाए हैं। करीब 1,000 पत्थरबाजों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने की कार्रवाइयों ने सेना का मनोबल गिराने का काम किया है। ये दोनों कार्रवाइयां इसलिए हैरतअंगेज थीं, क्योंकि जिस पीडीपी की मुख्यमंत्री रहीं महबूबा मुफ्ती ने इसे अंजाम दिया था, उस सरकार में भाजपा की भी भागीदारी थी।

सैन्य ठिकानों पर आतंकी हमलों की सूची लंबी होती जा रही है। रिश्तों में सुधार की भारत की ओर से तमाम कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान ने साफ कर दिया है कि वह शांति कायम रखने और निर्धारित शर्तों को मानने के लिए गंभीर नहीं हैं। और हम हैं कि मुंहतोड़ जवाब देने की बजाए मुंह ताक रहे हैं? दुर्भाग्यपूर्ण यह भी कि भारत इन घटनाओं को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने का साहस नहीं दिखा पाता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए 56 इंची सीना तानकर हुंकारें तो खूब भरीं, लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं। मोदी ने सिंधु जल संधि पर विराम लगाने की पहल की थी, लेकिन कूटनीति के स्तर पर कोई अमल नहीं किया। यदि सिंधु नदी से पाक को दिया जाने वाला पानी रोक दिया जाए तो पाक में पेयजल संकट पैदा होगा। लेकिन भारत यह कूटनीतिक जवाब देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है?

पाक के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के स्तर पर यह स्पष्ट किया गया था कि आतंकवाद और शांतिवार्ता एक साथ नहीं चल सकते हैं। लेकिन यह भी बीच-बीच में शुरू हो जाते हैं। पाक से व्यापार रोक देना चाहिए। अब उसे ताकत की भाषा से सबक सिखाने की जरूरत है। पाक की अर्थव्यस्था इस समय चरमरा रही है, इसलिए यह गरम लोहे पर चोट करने का मुनासिब समय है। पाक के साथ निर्णायक और बहुकोणीय लड़ाई की जरूरत है जिसमें सेना, सीआरपीएफ, बीएसएफ और कश्मीर पुलिस को एक साथ समन्वय बिठाकर लड़ना होगा। सुरक्षाबलों को पत्थरबाजों पर पैलेट गन दागने की इजाजत देनी होगी। इस हमले ने देशवासियों के सब्र का बांध तोड़ दिया है। इसलिए अब जरूरत है कि मोदी की काया में यदि वाकई 56 इंची सीना है, तो देश की आंखें अब इस सीने को देखने के लिए तरस रही हैं।

chat bot
आपका साथी