पीएम मोदी के व्यक्तित्व और नेतृत्व को जनता करती है पसंद, आज का विपक्ष यह समझने को नहीं है तैयार

क्या योग्य नेतृत्व का अर्थ यह है कि कोई समस्या ही उत्पन्न न हो या नेतृत्व वह होता है जो समस्या पर विजय के लिए जुझारूपन दिखाए?

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Fri, 03 Jul 2020 12:49 AM (IST) Updated:Fri, 03 Jul 2020 01:31 AM (IST)
पीएम मोदी के व्यक्तित्व और नेतृत्व को जनता करती है पसंद, आज का विपक्ष यह समझने को नहीं है तैयार
पीएम मोदी के व्यक्तित्व और नेतृत्व को जनता करती है पसंद, आज का विपक्ष यह समझने को नहीं है तैयार

[डॉ. एके वर्मा]। जो लोग नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर प्रश्न उठाते रहते हैं, उनमें गैर- लोकतांत्रिक प्रवृत्तियां देखते हैं, सरकार, पार्टी, मीडिया, विपक्ष पर उनका एकछत्र नियंत्रण देखते हैं और उन्हें लार्ड कर्जन के बाद सबसे शक्तिशाली नेता बताते हैं, वे शायद यथा-राजा तथा-प्रजा वाली उक्ति भूल गए हैं। मोदी का नेतृत्व भारत और उसकी जनता का प्रतिबिंब है। लोकतंत्र और संविधान यांत्रिक नहीं होते। वे समय, समस्या और समाधान करने वाले नेतृत्व से परिभाषित होते हैं। नेहरू और इंदिरा जैसे सशक्त प्रधानमंत्रियों के व्यक्तित्व से भी यह प्रमाणित होता है। यह बात और है कि उस समय अटल बिहारी वाजपेयी जैसा विशाल व्यक्तित्व विपक्ष में था जिसमें उनके शक्तिशाली नेतृत्व को स्वीकारने, उसकी प्रशंसा करने और उससे गौरवान्वित होने का दम था। आज न वैसा विपक्ष है और न ही वैसा कोई विपक्षी नेता जिसमें मोदी की योग्यता, उनके व्यक्तित्व, उनके समर्पण और नेतृत्व को स्वीकार करने की क्षमता हो। आज का विपक्ष यह समझने को तैयार नहीं कि आखिर कुछ तो है मोदी के व्यक्तित्व और नेतृत्व में जिसे जनता पसंद करती है।

चीन को लेकर राहुल गांधी लगातार घेर रहे मोदी को 

मोदी ने यदि राजनीतिक विमर्श बदल दिया है तो इस बदलाव में कांग्रेसी नेताओं और खासकर राहुल गांधी का भी योगदान है। वह एक अर्से से यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि मोदी अयोग्य, भष्ट और कमजोर नेता हैं, लेकिन इसका कोई असर होता नहीं दिख रहा है। इसके बावजूद वह चीन से विवाद को लेकर मोदी को लगातार घेर रहे हैं। उन्हें याद करना चाहिए कि मोदी पर अनावश्यक हमले करने से उन्हें क्या हासिल हुआ? मोदी ने शुरू में उपहार में प्राप्त सूट क्या पहन लिया कि राहुल ने मोदी सरकार को सूट-बूट की सरकार का खिताब दे डाला।

किसानों के हित साधने वाली स्कीमों की मोदी सरकार ने लगाई झड़ी

इसका प्रत्युत्तर मोदी ने गरीबोन्मुखी नीतियां बना कर दिया। इसके बाद उन्होंने जनधन, उज्ज्वला, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, स्वच्छता, आयुष आदि योजनाओं द्वारा उस भ्रम को तोड़ा। कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर ने मोदी को चायवाला कह कर अभद्रता की जिसे मोदी ने तत्काल पिछड़ों से कनेक्ट कर उन्हें भाजपा की ओर मोड़ दिया। पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों द्वारा दी जाने वाली इफ्तार पार्टी न करने पर मुस्लिम विरोधी कहे जाने पर मोदी ने मुस्लिम महिलाओं के जीवन में सुधार के लिए तीन-तलाक कानून बनाया जिससे उनका एक तबका भाजपा की ओर आकृष्ट हो गया। किसानों की आत्महत्या को आधार बना राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर किसान-विरोधी होने का आरोप लगाया, लेकिन मोदी ने किसानों के हित साधने वाली स्कीमों की झड़ी लगा दी। इस प्रकार मोदी ने अपने नेतृत्व में देश का राजनीतिक विमर्श बदल दिया। वे उसे अमीरों, जातिवाद, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और घोटाले-भ्रष्टाचार आदि के चंगुल से निकाल कर गरीबों, दलित-वंचित-शोषितों, अल्पसंख्यकों, राजनीतिक शुचिता, विकास और समावेशी राजनीति के केंद्र में ले आए। इसके लिए मोदी ने पॉपुलिस्ट नीतियां नहीं अपनाईं, वरन जनहित और देशहित में कठोर निर्णय लिए।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कभी जनता से नहीं हुए कनेक्ट

जनवरी 2014 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि मोदी का प्रधानमंत्री होना देश के लिए एक आपदा होगी। जनता ने उसे खारिज कर दिया और पहले 2014 और फिर 2019 में उन्हें देश का नेतृत्व सौपा। हैरत नहीं कि मनमोहन सिंह ने मोदी के नेतृत्व को देश के लिए आपदा कहने के लिए 2018 में खेद व्यक्त किया। ध्यान रहे कि मनमोहन सिंह को जनता सोनिया गांधी की कठपुतली प्रधानमंत्री मानती थी। वह कभी जनता से कनेक्ट नहीं हुए। मोदी के नेतृत्व से लोगों में उम्मीद जगी और जनता को उनके नेतृत्व पर विश्वास बढ़ा। एक तथ्य यह भी है कि कोई भी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय पार्टी मोदी के मुकाबले वैकल्पिक नेतृत्व पेश नहीं कर सकी है। कांग्रेस के राहुल गांधी अपने कथनों और व्यवहार से कभी मनोरंजन, कभी उपेक्षा तो कभी जनता के कोप का पात्र बनते हैं। सोनिया गांधी को कांग्रेस के अलावा जनता तो क्या राजनीतिक दलों ने भी कभी नेतृत्व के योग्य नहीं माना। चीन से विवाद पर कांग्रेस ने जैसा रवैया अपनाया उससे वह अलग-थलग ही पड़ी है।

कोरोना महामारी में पीएम मोदी ने पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधा 

कोरोना जैसी महामारी से मुकाबले के लिए मोदी ने जिस तरह सभी मुख्यमंत्रियों को एक सूत्र में पिरोकर रखा, जिस तरह पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधा, वह उनके नेतृत्व की उपलब्धि नहीं तो क्या है? जब अमेरिका जैसे विकसित देश में एक लाख से ज्यादा लोग कोरोना से मर गए तब उससे तीन गुना ज्यादा जनसंख्या वाले भारत में कोरोना मृत्यु को सीमित करना क्या है? क्या योग्य नेतृत्व का अर्थ यह है कि कोई समस्या ही उत्पन्न न हो या नेतृत्व वह होता है जो समस्या पर विजय के लिए जुझारूपन दिखाए? क्या मोदी कोरोना महामारी के साथ चीन की चुनौती से जूझते नहीं दिख रहे हैं?

सर्टिफिकेट देने वाले लोग किसके भक्त हैं 

वास्तव में अधिकतर आलोचकों ने मोदी के साथ न्याय नहीं किया। वे यह मानकर चलते हैं कि मोदी अयोग्य हैं, सांप्रदायिक हैं, मुस्लिम विरोधी हैं और उनमें अधिनायकवादी प्रवृत्तियां हैं। इतना ही नहीं जो समीक्षक मोदी के बारे में सकारात्मक विचार व्यक्त करता है उसे वे मोदी-भक्त का र्सिटफिकेट दे देते हैं। इस भय से अनेक समीक्षक मोदी और उनकी सरकार की वस्तुनिष्ठ समीक्षा नहीं करते। किसी ने कभी यह नहीं पूछा कि आखिर ये सर्टिफिकेट देने वाले लोग किसके भक्त हैं? वे वाम-भक्त हैं, सोनिया-भक्त हैं या संप्रदाय-विशेष के भक्त हैं?

एक योग्य नेतृत्व जनता में उम्मीद और उत्साह का संचार करता है। विश्व में कितने नेता हैं जो ऐसा करने में सक्षम हैं? मन-की-बात, नमोएप और हाल के दिनों में राष्ट्र के नाम संबोधन से मोदी जनता से जुड़ते रहते रहे हैं। अपने बदले विमर्श से मोदी ने स्थापित दलीय व्यवहार और राजनीतिक संरचनाओं को लांघकर सीधे जनता से जुड़ने में सफलता हासिल की है। यह हमारे लोकतंत्र का दुर्भाग्य अवश्य है कि विपक्षी दलों के पास इसके प्रतिकार के लिए न तो कोई वैकल्पिक विमर्श है और न ही कोई वैकल्पिक नेतृत्व। विपक्ष को यह समझना होगा कि केवल निंदा-आलोचना से वैकल्पिक विमर्श तैयार नहीं हो सकता।

  

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक हैं)

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