प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून के बिना रामराज्य नामुमकिन, चार दशक बाद भी है इंतजार

भारत जैसे देश में प्रभा‍वी जनसंख्‍या नियंत्रण कानून के बिना कुछ नहीं हो सकता है। इसके लिए कड़े कानून की सख्‍त जरूरत है। जो इसका उल्‍लंघन करे उसपर भी कार्रवाई होनी चाहिए।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Thu, 02 Jan 2020 11:27 AM (IST) Updated:Fri, 03 Jan 2020 06:17 AM (IST)
प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून के बिना रामराज्य नामुमकिन, चार दशक बाद भी है इंतजार
प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून के बिना रामराज्य नामुमकिन, चार दशक बाद भी है इंतजार

अश्विनी उपाध्याय। वर्तमान में सवा सौ करोड़ भारतीयों के पास ‘आधार’ है। देश भर में बड़ी संख्या में नागरिक बिना आधार के हैं। लगभग पांच करोड़ बंगलादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिये अवैध रूप से भारत में रहते हैं। इससे स्पष्ट है कि देश की जनसंख्या सवा सौ करोड़ से कहीं बहुत अधिक है। यदि संसाधनों की बात करें तो हमारे पास कृषि योग्य भूमि दुनिया की लगभग दो प्रतिशत है, पीने योग्य पानी लगभग चार प्रतिशत है, और जनसंख्या दुनिया की 18 प्रतिशत है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स, साक्षरता दर, रोजगार दर व जीवन की गुणवत्ता जैसे अनेक वैश्विक इंडेक्स में हम बहुत पीछे हैं। इसका बड़ा कारण देश के संसाधनों पर अत्यधिक भार ही है।

वर्ष 1976 में संसद के दोनों सदनों में विस्तृत चर्चा और विचार विमर्श के बाद 42वां संविधान संशोधन विधेयक पास हुआ था और संविधान की सातवीं अनुसूची की तीसरी सूची (समवर्ती सूची) में ‘जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन’ वाक्य जोड़ा गया। 42वें संविधान संशोधन द्वारा केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को ‘जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन’ के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया, पर इतने वर्षो बाद भी प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं बन पाया है।

इस संबंध में पहली बार सार्थक पहल अटल बिहारी वाजपेयी सराकर द्वारा की गई जब 11 सदस्यीय संविधान समीक्षा आयोग (वेंकटचलैया आयोग) ने दो वर्ष तक विचार-विमर्श के बाद संविधान में आर्टिकल 47ए जोड़ने और जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का सुझाव दिया था, लेकिन उसे भी आज तक लागू नहीं किया गया। अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा 20 फरवरी 2000 को बनाया गया संविधान समीक्षा आयोग आजाद भारत का सबसे प्रतिष्ठित आयोग है। सुप्रीम कोर्ट के तब के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस वेंकटचलैया इसके अध्यक्ष तथा जस्टिस सरकारिया, जस्टिस जीवन रेड्डी और जस्टिस पुन्नैया इसके सदस्य थे। भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल और संविधान विशेषज्ञ केशव परासरन तथा सोली सोराबजी और लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप इसके सदस्य थे। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा इसके सदस्य थे।

वेंकटचलैया आयोग द्वारा चुनाव सुधार, प्रशासनिक सुधार और न्यायिक सुधार के लिए दिए गए सुझाव भी आज तक लंबित हैं। अधिकांश राजनीतिक दलों के नेता सांसद और विधायक, बुद्धिजीवी, समाजशास्त्री, पर्यावारणविद, शिक्षाविद, न्यायविद, विचारक और पत्रकार इस बात से सहमत हैं कि देश की 50 प्रतिशत से ज्यादा समस्याओं का मूल कारण जनसंख्या विस्फोट है। टैक्स देने वाले ‘हम दो-हमारे दो’ नियम का पालन करते हैं, लेकिन मुफ्त में रोटी कपड़ा मकान लेने वाले आबादी को अनियंत्रित कर रहे हैं।

जब तक दो करोड़ बेघरों को घर दिया जाएगा तब तक 10 करोड़ बेघर और पैदा हो जाएंगे इसलिए एक नया कानून ड्राफ्ट करने में समय खराब करने की बजाय चीन के जनसंख्या नियंत्रण कानून में ही आवश्यक संशोधन कर उसे संसद में पेश करना चाहिए। कानून मजबूत और प्रभावी होना चाहिए और जो व्यक्ति इस कानून का उल्लंघन करे उसका राशन कार्ड, वोटर कार्ड, आधार कार्ड, बैंक खाता, बिजली कनेक्शन और मोबाइल कनेक्शन बंद करना चाहिए। इसके साथ सरकारी नौकरी और चुनाव लड़ने तथा पार्टी पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाना चाहिए। ऐसे लोगों को सरकारी स्कूल, हॉस्पिटल सहित अन्य सरकारी सुविधाओं से वंचित करना चाहिए। एक प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून के बिना रामराज्य नामुमकिन है, इसलिए सरकार को आगामी सत्र में चीन की तर्ज पर एक मजबूत और प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाना चाहिए।

(लेखक सुप्रीम कोर्ट अधिवक्‍ता हैं)

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