कैबिनेट विस्तार का राजनीतिक संदेश, समय के साथ भाजपा ने तय की समावेशन की एक शानदार यात्रा

कभी ब्राह्मण-बनियों की पार्टी मानी गई भाजपा ने समय के साथ समावेशन की एक शानदार यात्रा तय की है। पूरे देश में राजनीतिक संतुलन के साथ सुशासन के पैमाने पर नरेंद्र मोदी की दूसरी पारी अब शुरू हुई है।

By Shashank PandeyEdited By: Publish:Fri, 09 Jul 2021 08:55 AM (IST) Updated:Fri, 09 Jul 2021 09:04 AM (IST)
कैबिनेट विस्तार का राजनीतिक संदेश, समय के साथ भाजपा ने तय की समावेशन की एक शानदार यात्रा
मंत्रिपरिषद विस्तार में साधे गए कई समीकरण। (फोटो: एएनआइ)

हर्ष वर्धन त्रिपाठी। गुजरात में 1998 तक सहकारी संस्थानों, बैंकों में कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था। सिर्फ एक सहकारी बैंक पर भाजपा काबिज थी। अमित शाह ने सहकारी संस्थानों से कांग्रेस को बेदखल करने की योजना तैयार की। धीरे-धीरे कांग्रेस गुजरात के सहकारी संस्थानों से पूरी तरह गायब हो गई। अब जब नरेंद्र मोदी ने नया सहकारिता मंत्रलय बनाया तो उसके मंत्री के तौर पर अमित शाह को नियुक्त किया। दरअसल यह दृष्टांत ही तय कर देता है कि मोदी के इस सबसे बड़े बदलाव के मूल में क्या है? पारंपरिक तरीके से राजनीति को देखने पर शायद ही समझ में आए कि गृह मंत्रलय के साथ सहकारिता मंत्रलय एक ही व्यक्ति को भला कैसे दिया जा सकता है, लेकिन इसी सोच के तहत मनसुख मांडविया नए स्वास्थ्य मंत्री बने हैं। रसायन एवं उर्वरक मंत्रलय के साथ स्वास्थ्य मंत्रलय जैसे महत्वपूर्ण मंत्रलय का जिम्मा वह किस प्रकार ठीक से संभाल पाएंगे, इसे समझने के लिए उस प्रसंग को याद करें जब नितिन गडकरी को स्पष्ट करना पड़ा था कि, वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने को लेकर मैंने कुछ सुझाव दिए थे, पर मुङो जानकारी नहीं थी कि मांडविया पहले ही बता चुके थे कि यह सब हो चुका है।

स्वास्थ्य और सहकारिता मंत्रलय की ही तरह दूसरे मंत्रलयों का जिम्मा जिन मंत्रियों को दिया गया है, उसके पीछे बहुत सोची समझी रणनीति है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि मंत्रिमंडल से हटाए गए मंत्रियों रविशंकर प्रसाद, रमेश पोखरियाल निशंक, प्रकाश जावडेकर और डॉ. हर्षवर्धन को हटाने के पीछे यह एक सूत्र है कि वे मोदी सरकार के राष्ट्रीय विमर्श को स्थापित करने में कामयाब नहीं रहे। मोदी सरकार के बारे में एक बात पक्के तौर पर कही जाती है कि वह फीडबैक पर काम करने वाली सरकार है और विशेषकर जनता क्या सोचती है, यह उसके लिए बहुत महत्व रखता है। किसी भी सरकार के वैचारिक विमर्श को स्थापित करने में सूचना प्रसारण मंत्री की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन जावडेकर उस भूमिका से न्याय नहीं कर पाए और अब अनुराग सिंह ठाकुर को यह जिम्मा सौंपा गया है। शिक्षा मंत्री के तौर पर निशंक का पूरा समय सिर्फ विवादों और टालमटोली में ही बीतता रहा। देश के आधे से अधिक केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुलपति नहीं हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करके राष्ट्रीय विमर्श को आगे बढ़ाने की दिशा में भी शिक्षा मंत्रलय कुछ खास नहीं कर सका।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सबसे पैनी दृष्टि भी इसी मंत्रलय के कामकाज पर रहती है, फिर भी शैक्षणिक संस्थानों में विरोधी विचार का कब्जा बना रहा। इसे संघ ने बहुत गंभीरता से लिया। इन हालात को बदलने की जिम्मेदारी अब धर्मेंद्र प्रधान को सौंपी गई है। प्रधान लंबे समय तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे हैं। वहीं पेट्रोलियम मंत्रलय में प्रधान की विरासत को अब हरदीप सिंह पुरी आगे बढ़ाएंगे। पुरी के पास आवास और शहरी विकास का प्रभार पहले से ही है। पंजाब चुनाव से पहले सिख चेहरे के तौर पर और सेंट्रल विस्टा परियोजना पर कांग्रेस के दुष्प्रचार को ध्वस्त करने के लिहाज से विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी पुरी की खास उपयोगिता है।

बुधवार को शामिल किए गए 43 नए मंत्रियों में असम, त्रिपुरा, अरुणाचल और मणिपुर से एक-एक प्रतिनिधि जोड़े गए हैं, जो पूवरेत्तर के प्रति मोदी की दृष्टि को प्रमाणित करता है। चीन से सटे अरुणाचल प्रदेश के किरण रिजिजू को केंद्रीय कानून मंत्री की कुर्सी देना दिखाता है कि प्रधानमंत्री के लिए रिजिजू रणनीतिक तौर पर कितने महत्वपूर्ण हो गए हैं। पूर्व नौकरशाह अश्विनी वैष्णव को रेलवे, कम्युनिकेशंस, इलेक्ट्रॉनिक्स और आइटी मंत्रलय देने के पीछे बहुत स्पष्ट वजह है। वह वाजपेयी सरकार में उपसचिव रहे हैं। दो पूर्व नौकरशाह और 24 पेशेवर मोदी सरकार में बदलाव का हिस्सा बने हैं। 43 नए मंत्रियों में 61 प्रतिशत मंत्री अन्य पिछड़े, अनुसूचित जाति और जनजाति से हैं। 27 ओबीसी, 12 एससी और आठ एसटी मंत्रियों को मोदी ने शामिल किया तो कई चैनलों ने ‘अबकी बार-ओबीसी सरकार’ तक लिख दिया। एक समय मुख्य रूप से ब्राह्मण-बनियों की पार्टी मानी जाने वाली भाजपा ने समय के साथ कितनी शानदार यात्रा की है, इससे आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है।

महाराष्ट्र में पूर्व शिवसैनिक और आक्रामक नेता नारायण राणो को एमएसएमई मंत्री बनाकर मोदी ने शिवसेना को स्पष्ट संदेश दे दिया है। दिल्ली से डॉ. हर्षवर्धन गए तो मीनाक्षी लेखी आईं और इसी तरह उत्तराखंड से ब्राह्मण रमेश पोखरियाल निशंक गए तो अजय भट्ट आए, लेकिन सबसे शानदार तरीके से जाति और क्षेत्र का संतुलन बैठाने में मोदी को उत्तर प्रदेश में कामयाबी मिली है। सपा-बसपा से आए आगरा के सांसद एसपीएस बघेल हों या फिर मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर। किशोर ने योगी सरकार के कोरोना प्रबंधन पर सवाल भी उठाए थे, लेकिन उन्हें मंत्री बनाया गया। बघेल और पासवान समाज के बड़े नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल करके मोदी ने दो संदेश दिए हैं। पहला-सामाजिक समीकरणों का पूरा ध्यान रखा गया, दूसरा-किसी भी पार्टी के ताकतवर नेता के लिए भाजपा में सम्मानपूर्वक रहने का पूरा अवसर है। मोदी ने लखीमपुर खीरी से दो बार के भाजपा सांसद अजय कुमार मिश्र को मंत्री बनाकर इसका जवाब दे दिया कि क्या भाजपा के पास ब्राह्मण नेता नहीं हैं? अनुप्रिया पटेल को सहयोगी और पटेलों में संदेश देने के लिए मंत्री बनाया तो लगे हाथ महाराजगंज से लगातार सांसद बनने वाले कुर्मी नेता पंकज चौधरी को मंत्री बनाकर यह भी स्पष्ट किया कि भाजपा में किसी भी जाति के नेताओं की कमी नहीं है। सही मायने में पूरे देश में राजनीतिक संतुलन के साथ सुशासन के पैमाने पर नरेंद्र मोदी की दूसरी पारी अब शुरू हुई है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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