UNSC: भारत को स्थायी सदस्यता मिलने से सुरक्षा परिषद की गरिमा बढ़ेगी

21वीं शताब्दी में विनाशकारी एवं विघटनकारी परिवर्तनों पर काबू पाने के लिए और संयुक्त राष्ट्र की क्षमता में वृद्धि के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार अपरिहार्य हो गया है। इसके विस्तार से जहां इसको नया कलेवर मिलेगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 30 Sep 2020 09:10 AM (IST) Updated:Wed, 30 Sep 2020 09:12 AM (IST)
UNSC: भारत को स्थायी सदस्यता मिलने से सुरक्षा परिषद की गरिमा बढ़ेगी
संयुक्त राष्ट्र की क्षमता में वृद्धि के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार अपरिहार्य हो गया है।

राहुल लाल। संयुक्त राष्ट्र के 75 वर्ष पूर्ण होने पर एक बार फिर उसमें सुधार की मांग जोर पकड़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए कहा भी है कि व्यापक सुधारों के बिना संयुक्त राष्ट्र विश्वसनीयता के संकट का सामना कर रहा है। दुनिया को एक सुधारवादी बहुपक्षीय मंच की जरूरत है, जो आज की हकीकत को प्रतिबंबित करे, सबको अपनी बात रखने का मौका दे और समकालीन चुनौतियों का समाधान कर मानव कल्याण पर ध्यान दे।

द्वितीय विश्व युद्ध का विध्वंसक रूप देखने के बाद भविष्य के युद्धों को रोकने तथा शांति स्थापित करने के लिए 24 अक्टूबर, 1945 को इसकी स्थापना की गई थी। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद से आज संपूर्ण विश्व पूरी तरह बदल चुका है। महाशक्तियों के मायने बदल गए हैं। कई देश सैन्य और आíथक ताकत के रूप में उभरे हैं। इसलिए इस बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में सबसे ज्यादा जरूरत शक्ति संतुलन की महसूस की जा रही है। इसीलिए प्रधानमंत्री ने कहा है कि सभी बदल जाएं और संयुक्त राष्ट्र नहीं बदलेगा की नीति अब नहीं चलेगी।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार क्यों जरूरी : भारत संयुक्त राष्ट्र में व्यापक सुधारों का सदैव समर्थक रहा है। सुरक्षा परिषद में सुधार 1993 से ही संयुक्त राष्ट्र के एजेंडे में है। संयुक्त राष्ट्र का अस्तित्व ही सुरक्षा परिषद पर आधारित है। उसके सारे कार्यक्रम तब तक कार्यरूप नहीं ले सकते, जब तक सुरक्षा परिषद की उस पर स्वीकृति नहीं हो। संयुक्त राष्ट्र का बजट भी सुरक्षा परिषद के अधीन है। उसकी स्वीकृति के बिना बजट के लिए न तो धन की आपूíत हो सकती है और न ही तमाम बिखरे कार्य ही पूरे किए जा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र का जब गठन हुआ था, तब 51 देश इसके सदस्य थे, परंतु अब यह संख्या 193 हो चुकी है। ऐसे में सुरक्षा परिषद के विस्तार की अपरिहार्यता समझी जा सकती है। हालांकि 1965 में इसका एक बार विस्तार किया गया था। मूल रूप से इसमें 11 सीटें थीं-5 स्थायी और 6 अस्थायी। विस्तार के बाद सुरक्षा परिषद में कुल 15 सीटें हो गईं, जिसमें 4 अस्थायी सीटों को जोड़ा गया, लेकिन स्थायी सीटों की संख्या पूर्ववत ही रही। तब से सुरक्षा परिषद का विस्तार नहीं हुआ है। सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधित्व के मामले में जहां तक स्थायी सदस्यों (चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और रूस) का सवाल है, वह आनुपातिक नहीं है। न तो भौगोलिक दृष्टि से और न ही क्षेत्रफल तथा संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों की संख्या या आबादी की दृष्टि से। इस तथ्य के बावजूद की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का 75 प्रतिशत कार्य अफ्रीका पर केंद्रित है, फिर भी इसमें अफ्रीका का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। यही कारण है कि अफ्रीकी देशों का भी एक गुट ‘सी-10’ किसी अफ्रीकी देश को इसमें शामिल करने की वकालत कर रहा है।

महाशक्तियों में मतभेद की स्थिति में वीटो पावर भी अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के लोकतांत्रीकरण द्वारा इसका भी हल निकाला जा सकता है। किसी मुद्दे पर दो स्थायी सदस्यों में मतभेद हो तो उसे संयुक्त राष्ट्र महासभा में लाया जाए। फिर बहुमत के फैसले को सुरक्षा परिषद लागू करे, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली में इतना बड़ा परिवर्तन कभी आ पाएगा, यह अपने आप में बड़ा सवाल है। भारत सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए जी-4 देशों के प्रस्ताव का समर्थन करता है। इसमें भारत, जर्मनी, ब्राजील और जापान शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बुनियादी ढांचे में बदलाव के लिए 2005 में जी-4 की नींव रखी गई थी।

सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारतीय दावेदारी के आधार : सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारतीय दावेदारी को कुछ तथ्यों के आधार पर समझा जा सकता है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जनसंख्या वाला देश भी है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा ऐसा लोकतांत्रिक देश है, जहां विश्व की 18 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या रहती है, जहां सैकड़ों भाषाएं और बोलियां हैं, कई पंथ और विचारधाराएं हैं। ऐसे में भारतीय प्रतिनिधित्व के बिना सुरक्षा परिषद में संपूर्ण वैश्विक प्रतिनिधित्व का सपना अधूरा ही रह जाएगा। भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। साथ ही विश्व की समृद्धि में भारत की भूमिका अग्रणी है। अभी संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के सैनिकों में भारत का तीसरा सबसे बड़ा योगदान है। संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा कि भारत ने 50 से ज्यादा पीस कीपिंग मिशन में अपने जांबाज सैनिकों को भेजा है। भारत ने इसमें अपने वीर सैनिकों को सबसे ज्यादा खोया है। प्राचीन संस्कृति होने के साथ भारत आत्मनिर्भर, शक्तिसंपन्न और अपनी एकता, अखंडता, सार्वभौमिकता की रक्षा करने में सक्षम देश है। इस दृष्टि से भी भारतीय दावेदारी की प्रबलता को समझा जा सकता है।

इसके अतिरिक्त भारत जर्मनी, ब्राजील और जापान की भी सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का समर्थन करता है। संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट में जापान दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता देश है, जबकि जर्मनी का इसमें तीसरा स्थान है। लैटिन अमेरिका में ब्राजील न केवल क्षेत्रफल, अपितु आबादी एवं अर्थव्यवस्था के मामले में भी सबसे बड़ा देश है। यही कारण है कि भारत, ब्राजील सहित संपूर्ण जी-4 का समर्थन करता है। जी-4 के अतिरिक्त इटली के नेतृत्व में ‘यूनाइटिंग फॉर कंसेंसस’ भी सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग करता है। इसके अतिरिक्त सिंगापुर, स्विट्जरलैंड, कोस्टारिका इत्यादि देशों का एक छोटा समूह ‘स्मॉल-5’ सुरक्षा परिषद में पारदर्शिता लाने की मांग कर रहा है। भारत की नीति एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका के 42 देशों के गुट को, जिसे ‘एल-69’ ग्रुप कहते हैं एवं अफ्रीकन यूनियन के 55 सदस्य देशों को साथ लेकर सुरक्षा परिषद में सुधारों की साझा रणनीति बनाने की थी, जो काफी सफल भी रही है। यही कारण है कि भारत हाल ही में 8वीं बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुना गया है। भारत 2021 से सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बनेगा।

निष्कर्ष : कुल मिलाकर महाशक्तियों ने संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था को जहां वीटो के विशेषाधिकार के दुरुपयोग द्वारा अप्रासंगिक बना दिया है, वहीं भारत अपनी पूर्ण क्षमता से संयुक्त राष्ट्र को मजबूत करने में लगा है। यही कारण है कि कोरोना के इस भीषण महामारी में भी भारत के दवा उद्योग ने 150 से अधिक देशों को जरूरी दवाइयां भेजी हैं। वैश्विक शांति, सुरक्षा, मानवाधिकार, अंतरराष्ट्रीय कानूनों का क्रियान्वयन, जलवायु परिवर्तन और सतत विकास जैसे लक्ष्यों की पूíत के लिए संयुक्त राष्ट्र को किसी सॉफ्टवेयर की तरह अपडेट करने की जरूरत है।

21वीं शताब्दी में विनाशकारी एवं विघटनकारी परिवर्तनों पर काबू पाने के लिए और संयुक्त राष्ट्र की क्षमता में वृद्धि के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार अपरिहार्य हो गया है। इसके विस्तार से जहां इसको नया कलेवर मिलेगा, वहीं भारत जैसे देश को स्थायी सदस्यता मिलने से सुरक्षा परिषद की गरिमा बढ़ेगी और वैश्विक स्तर पर शांति, समृद्धि एवं मानवीय सरोकारों के प्रति भारत कहीं अधिक प्रभावी एवं अधिकारपूर्ण ढंग से काम कर सकेगा।

[कूटनीतिक मामलों के जानकार]

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