अभिभावकों के चेतने का वक्त, केवल अच्छे स्कूल में एडमिशन व इच्छाएं पूरी करने तक जिम्मेदारी सीमित नहीं

विशेषज्ञों के अनुसार अब बच्चों में न तो धीरज रह गया है और न ही उनमें माता-पिता के प्रति लगाव बचा है। इसका बड़ा कारण है माता-पिता में बच्चों के प्रति उदासीनता का भाव। बच्चे छोटे हों या बड़े वे अपने ढंग से काम करना चाहते हैं।

By TaniskEdited By: Publish:Fri, 29 Jan 2021 01:21 PM (IST) Updated:Fri, 29 Jan 2021 01:21 PM (IST)
अभिभावकों के चेतने का वक्त, केवल अच्छे स्कूल में एडमिशन व इच्छाएं पूरी करने तक जिम्मेदारी सीमित नहीं
अभिभावक अपने दायित्व को समझें व बच्चों को नैतिक मूल्यों की समझ दें।

[डॉ. दर्शनी प्रिय]। हाल ही में दिल्ली एनसीआर में स्थित इंदिरापुरम में घटी एक घटना चिंता पैदा करती है। दरअसल एक अधिकारी के 11 साल के बेटे ने फर्जी ई-मेल आइडी के जरिये अपने पिता से ही 10 करोड़ रुपये अवैध वसूली की मांग की। गहराई से पड़ताल करने पर पता चला कि बच्चे ने कुछ समय पहले स्कूल की ऑनलाइन कंप्यूटर क्लास के दौरान साइबर अपराध और उनसे बचने के संबंध में जानकारी ली थी। उस बच्चे ने यूट्यूब पर कुछ वीडियो देख जानकारी जुटाई और अपने पिता को रकम वसूली वाले धमकी भरे ईमेल भेजे।

यूनिसेफ के एक हालिया आंकड़े के मुताबिक भारत में हर तीन में से दो इंटरनेट यूजर 12 से 29 साल की उम्र के हैं। वहीं दूसरी ओर, बच्चों और किशोरों के कल्याण के लिए गठित स्वयं सेवी संस्थान चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) के एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट से यह पता चला है कि 13 से 18 साल के करीब 28 प्रतिशत बच्चे चार घंटे से भी ज्यादा समय इंटरनेट पर बिताते हैं। साइबर स्टैटिक्स की रिपोर्ट के मुताबिक 80 प्रतिशत किशोर नियमित रूप से इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। कुल मिलकार आज का बच्चा कम उम्र में ही माता-पिता से दूर हो रहा है और दोस्तों को अपनी दुनिया बना रहा है, क्योंकि उसे माता-पिता केवल पैसे कमाने वाली मशीन प्रतीत होते हैं।

थोड़ा अनुशासन और सीमाएं बच्चों के लिए बहुत जरूरी

संबंधित विशेषज्ञों के अनुसार अब बच्चों में न तो धीरज रह गया है और न ही उनमें माता-पिता के प्रति लगाव बचा है। इसका बड़ा कारण है माता-पिता में बच्चों के प्रति उदासीनता का भाव। बच्चे छोटे हों या बड़े, वे अपने ढंग से काम करना चाहते हैं। उनकी बात सुननी जरूर चाहिए, लेकिन वह ठीक है या नहीं यह निर्णय माता-पिता का होना चाहिए। थोड़ा अनुशासन और सीमाएं बच्चों के लिए बहुत जरूरी है। बच्चे का सिर्फ अच्छे स्कूल में नामांकन करवाना, उनकी इच्छाएं पूरी कर देना ही दायित्व की इतिश्री नहीं है। उनकी हरेक गतिविधियों पर नजर बनाए रखना भी अभिभावकों की दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए। एकाकीपन से बच्चों के भीतर भावनाएं खत्म हो रही हैं और वे मशीनी जीवन जीने लगे हैं।

अभिभावकों ने भी अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली है

एक हालिया अध्ययन में यह भी सामने आया है कि स्कूल जाने वाले लगभग 30 प्रतिशत बच्चे इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। एक अन्य अध्ययन से यह भी जानकारी सामने आई है कि करीब 34 प्रतिशत बच्चे अपनी ऑनलाइन गतिविधियों के बारे में अपने माता-पिता से कभी कभार ही बात करते हैं। मां-बाप का अत्यधिक व्यस्त होना या फिर बच्चों में अभिभावकों का डर न होना भी इसके प्रमुख कारण हैं। इसका एक बड़ा कारण निजी स्कूलों का परिवेश भी है, जो अब एक पेड पैकेज के रूप में उभर रहे हैं। दरअसल आज की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था ने शिक्षा से लेकर बच्चों के मानसिक और नैतिक मूल्यों का समूचा दारोमदार इन स्कूलों के चमचमाते कंधों पर डाल दिया है। अभिभावकों ने भी अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली है। मशीनी कार्य संस्कृति का असर बच्चों के जीवन पर पड़ा है। वे एकाकी होते जा रहे है और अभिभावक भारी-भरकम स्कूलों की महंगी फीस भरने वाली मशीन।

बच्चों में अनुशासन का विकास होना भी आवश्यक

समय आ गया है कि अभिभावक अपने दायित्व को समझें व बढ़ते बच्चों में नैतिक मूल्यों के माध्यम से कर्तव्य बोध के बीज अंकुरित करें। स्नेहिल और गुणवत्तापूर्ण परिवेश के साथ-साथ उनमें अनुशासन का विकास होना भी आवश्यक है। उनकी प्रत्येक गतिविधि पर न केवल पैनी नजर रखने की जरूरत है, बल्कि उनके साथ समान बर्ताव करना भी आवश्यक है। यह सब तभी संभव है जब अभिभावक वास्तव में अभिभावक बनें। भौतिक साजो-सामान जुटाने की बजाय वे बच्चों के साथ अमूल्य समय बिताएं। तभी एक सशक्त और सदाचार पीढ़ी का निर्माण किया जा सकता है।

(लेखिका- शिक्षा मामलों की जानकार)

chat bot
आपका साथी