Oxygen Crisis In India: कोरोना की दूसरी लहर में आक्सीजन की कमी प्रशासनिक नाकामी का मुखर साक्ष्य

वर्तमान वैश्विक महामारी के दौर में जब देश के अधिकांश हिस्सों में कोरोना वायरस का घातक असर इंसान की सांसों तक पहुंच गया तो देश में सीमित संसाधनों के साथ अस्पतालों तक मेडिकल आक्सीजन आपूर्ति को एकाएक कई गुना तक बढ़ा पाना बेहद दुष्कर माना जाने लगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 12 May 2021 03:50 PM (IST) Updated:Wed, 12 May 2021 03:52 PM (IST)
Oxygen Crisis In India: कोरोना की दूसरी लहर में आक्सीजन की कमी प्रशासनिक नाकामी का मुखर साक्ष्य
आक्सीजन कीअनियमित सप्लाई से त्रासदीपूर्ण मौतें हो रही हैं। इन मौतों की जवाबदेही किसकी है?

विजय कपूर। भारत हमेशा से ही आक्सीजन के प्रमुख निर्यातकों में रहा है, इसलिए कोरोना संक्रमण की भयंकर दूसरी लहर में आक्सीजन की कमी की जो निरंतर खबरें आ रही हैं, वह भारत की प्रशासनिक नाकामी का सबसे मुखर साक्ष्य है। हालांकि राज्य सरकारें कह रही हैं कि वे मौतों के असल कारण की जांच कर रही हैं, लेकिन इस बात में कोई शक ही नहीं है कि आक्सीजन संकट वास्तिवक में है। आक्सीजन की कमी मुख्यत: प्रशासनिक कारणों से है कि मांग के अनुरूप सप्लाई नहीं है और कालाबाजारी व जमाखोरी को रोकने के लिए सख्त प्रयास नहीं हुए हैं, लेकिन विडंबना यह है कि इस पर भी सियासी झुकाव के अनुसार राजनीति हो रही है।

दरअसल किसी संकट का समाधान तभी किया जा सकता है जब पहले यह स्वीकार कर लिया जाए कि वाकई में संकट है, शुतुरमुर्ग की तरह बालू में सिर घुसा देने से तूफान से कहां बचा जाता है? जब सभी विशेषज्ञों की राय यह थी कि कोविड-19 की दूसरी लहर मार्च-अप्रैल 2021 में आएगी जो पहली लहर से अधिक घातक होगी और उसमें आक्सीजन की ज्यादा जरूरत पड़ेगी तो आक्सीजन निर्यात का दोगुना किया जाना भी प्रशासनिक चूक ही है। वाणिज्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल 2020 और जनवरी 2021 के बीच भारत ने 9,300 मीट्रिक टन से अधिक आक्सीजन का निर्यात किया।

वित्त वर्ष 2020 में भारत ने 4,500 मीट्रिक टन आक्सीजन का निर्यात किया था। जनवरी 2020 में भारत 352 मीट्रिक टन आक्सीजन निर्यात कर रहा था, जिसमें जनवरी 2021 में 734 प्रतिशत की वृद्धि हुई। भारत ने दिसंबर 2020 में 2,193 मीट्रिक टन आक्सीजन निर्यात किया था, जबकि दिसंबर 2019 में निर्यात की मात्रा 538 मीट्रिक टन थी। सरकार का कहना है कि महामारी वर्ष 2020-21 में सिर्फ औद्योगिक आक्सीजन ही निर्यात किया गया था न कि मेडिकल आक्सीजन। लेकिन तथ्य यह है कि अब जब अधिक सांसें उखड़ रही हैं, आक्सीजन की मांग बढ़ती जा रही है और अनेक राज्य इसकी कमी की शिकायत कर रहे हैं, तो अस्पतालों की तरफ औद्योगिक आक्सीजन ही भेजी जा रही है। बहरहाल, आक्सीजन संकट उस समय स्पष्ट हो गया जब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इसका संज्ञान लिया।

एक राज्य की आक्सीजन जरूरत निरंतर बदलती रहती है, क्योंकि मांग केस लोड पर निर्भर करती है। यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी हो जाती है कि वह राज्यों को उनकी जरूरतों के अनुसार आक्सीजन की व्यवस्था करे, विशेषकर जब सोलिसिटर जनरल का दावा है कि देश के लिए पर्याप्त आक्सीजन सप्लाई है, लेकिन कुछ राज्यों में इसकी कमी है। इस पर अलग से बहस की जा सकती है कि आक्सीजन का असंतुलित वितरण है या वास्तव में विकट कमी है, पर चिंता का विषय यह है कि नागरिकों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है और सरकारें अपने नौकरशाहों के जरिये आपस में टकरा रही हैं एक-दूसरे को अक्षम साबित करने के लिए।

देश के कई शहरों में अस्पताल इंटरनेट मीडिया पर हर दिन आग्रह कर रहे हैं आक्सीजन सप्लाई को नियमित किया जाए, क्योंकि अनियमित सप्लाई से त्रासदीपूर्ण मौतें हो रही हैं। इन मौतों की जवाबदेही किसकी है? पिछले कुछ सप्ताह के दौरान इतना तो स्पष्ट हो गया है कि केंद्र व राज्यों ने कोविड की दूसरी लहर के लिए कोई तैयारी नहीं की थी, शायद उनकी प्राथमिकताएं कहीं और थीं। स्थिति बद से बदतर इसलिए भी हो रही है, क्योंकि केंद्र व राज्यों के बीच ही नहीं राज्यों के अपने जिलों में भी समन्वय का अभाव है। इन कमियों को दूर करने की जरूरत है, ताकि जीवनों को बचाया जा सके और आगे आने वाली चुनौतियों के लिए तैयारी की जा सके।

(ईआरसी)

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